द्वापर से होती आ रही गोवर्धन पूजा, ये है विधि विधान
आगरा। गोवर्धन पूजा केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि प्रकृति संरक्षण, गौ संवर्धन और गौ रक्षण का पर्व है। पूजा का सबसे बेहतर समय दोपहर 1.45 से 3.14 तक है। शाम को 6.18 मिनट से 8.15 तक का अति शुभ समय माना गया है।
ज्योतिषाचार्य अरविंद मिश्र के अनुसार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को यानि दीपावली के अगले दिन अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है। इस दिन बलि पूजा ,गोवर्धन पूजा, मार्ग पाली आदि उत्सव भी संपन्न होते हैं । इस दिन गोबर का गोवर्धन बनाकर गोवर्धन के समीप विराजमान श्री कृष्ण के सम्मुख गाय तथा ग्वाल बाल आदि बनाए जाते हैं। यह बृजवासियों का प्रमुख त्यौहार है। इस दिन मंदिरों में विविध प्रकार की खाद्य सामग्रियों से भगवान का भोग लगाया जाता है ।
पूजा विधि विधान
ज्योतिषाचार्य अरविंद मिश्र ने पूजन विधि के बारे में बताया कि इस दिन सुबह अन्नकूट की रसोई बनाएं और सब तरह की मिठाई बनाकर भगवान का भोग लगाएं। ब्राह्मण को भोजन कराएं। गोवर्धन पर जल, रोली, मोली, चावल, फूल , दही चढ़ाएं। तेल में भिगोकर रुई, तेल का दिया जलाए। मूंग की दाल, चीनी, चार गुड़ की सुहाली (मीठी पुड़ी) , दक्षिणा ,सफेद कपड़ा अर्पित करें। गोवर्धन के सिर पर झरना रख दें।
पूजा करने के बाद गोवर्धन की चार परिक्रमा लगाएं। गोवर्धन की परिक्रमा लगाने से पुण्य प्राप्त होता है। गोवर्धन महाराज और भगवान श्री कृष्ण के गीत गाएं और पूजा आराधना करें।
पूजा का चढ़ावा घर की नौकरानी को दें और गोवर्धन के सिर पे रखे झरने को बाद में उठाकर घर में रख लें।
पूजा का अति शुभ समय
दोपहर 1.45 से 3.14 मिनट तक ।
शुभ समय:- दोपहर 3.14 मिनट से सायं 4.41 मिनट तक।
शाम का अति शुभ समय - सायं 6.18 मिनट से रात्रि 8.15 मिनट तक।
शुभ समय:- रात्रि 8.15 मिनट से रात्रि 10.29 मिनट तक।
इसलिए की जाती है गोवर्धन महाराज की पूजा
इसकी कथा के बारे में वह बताते हैं कि एक दिन भगवान कृष्ण ने देखा कि पूरे ब्रज में तरह-तरह के मिष्ठान तथा पकवान बनाये जा रहे हैं। पूछने पर ज्ञात हुआ कि यह सब वक्रासुर संहारक, मेघदेवता देवराज इन्द्र की पूजा के लिए तैयार हो रहा है। इन्द्र की प्रसन्नता से वर्षा होगी। गायों को चारा मिलेगा तथा जीविकोपार्जन की समस्या हल होगी।
यह सुनकर भगवान श्रीकृष्ण ने इन्द्र की निंदा करते हुए कहा कि उस देवता की पूजा करनी चाहिए, जो प्रत्यक्ष आकर पूजन सामग्री स्वीकार करे। गोपों ने यह वचन सुन कर कहा कि कोटि-कोटि देवताओं के राजा की इस तरह से आपको निंदा नहीं करनी चाहिए। कृष्ण ने कहा- इन्द्र में क्या शक्ति जो पानी बरसा कर हमारी सहायता करेगा। उससे तो शक्तिशाली तथा सुन्दर यह गोवर्धन पर्वत है, जो वर्षा का मूल कारण है, इसकी हमें पूजा करनी चाहिए।
भगवान श्रीकृष्ण के सबको इक्कठा कर सभी ब्रजवासियों ने गोवर्धन पूजा के लिए चारों ओर धूम मचा दी । तत्पश्चात नन्दजी के ग्वाल, गोपांगनाओं सहित एक सभा में श्री कृष्ण से पूछा कि-इन्द्रजन से तो दुर्भिक्ष उत्पीड़न समाप्त होगा। चौमासे के सुन्दर दिन आयेंगे, मगर गोवर्धन पूजा से क्या लाभ होगा ?
उत्तर में श्रीकृष्णजी ने गोवर्धन की भूरि-भूरि प्रशंसा की तथा गोप-गोपियों की आजीविका का एकमात्र सहारा सिद्ध किया। भगवान की बात सुनकर समस्त ब्रजमंडल बहुत प्रभावित हुआ तथा स्वगृह जा-जा कर सुमधुर मिष्ठान पकवानों सहित पर्वत तराई में कृष्ण द्वारा बताई विधि से गोवर्धन की पूजा की।
भगवान की कृपा से ब्रजवासियों द्वारा अर्पित समस्त पूजन सामग्री को गिरिराज ने स्वीकार करते हुए खूब आशीर्वाद दिया। सभी जन अपना पूजन सफल समझकर प्रसन्न हो रहे थे, तभी नारद इन्द्र महोत्सव देखने की इच्छा से ब्रज आ गए। पूछने पर ब्रज के ग्वालों ने बताया कि श्रीकृष्ण की आज्ञा से इस वर्ष इन्द्र महोत्सव समाप्त कर दिया गया है।
उसके स्थान पर गोवर्धन पूजा की जा रही है। यह - सुनते ही नारद उल्टे पांव इन्द्रलोक गये तथा खिन्न मुख मुद्रा में - बोले- हे राजन! तुम महलों में सुख की नींद की खुमारी ले रहे हो उधर ब्रज मंडल में तुम्हारी पूजा समाप्त करके गोवर्धन की पूजा हो रही हैं ।
इसमें इन्द्र ने अपनी मानहानि समझ कर मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर प्रलयकारी मूसलाधार वर्षा से पूरा गांव तरस-नहस कर दें। पर्वताकार प्रलयकारी बादल ब्रज की ओर उमड़ पड़ें। भयानक वर्षा देखकर ब्रज मंडल घबरा गया। सभी ब्रजवासी श्रीकृष्ण की शरण में जाकर बोले- हे भगवन, इन्द्र हमारी नगरी को डुबाना चाहता है, अब क्या किया जाए ?
श्रीकृष्ण ने सांत्वना देते हुए कहा कि तुम लोग गउओं सहित गोवर्धन की शरण में चलो, वही तुम्हारी रक्षा करेगा। इस तरह से समस्त ग्वाल-बाल गोवर्धन की तराई में पहुंच गए। श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को कनिष्ठा उंगली पर उठा लिया और सात - दिन तक गोप-गोपिकायें उसी छाया में सुखपूर्वक रहे। भगवान की कृपा से उनको एक छींटा भी न लगा।
इससे इन्द्र को महानआश्चर्य हुआ। तब भगवान की महिमा को समझकर तथा अपना गर्व नष्ट जानकर वह स्वयं ब्रज में गए और भगवान कृष्ण के चरणों में गिर कर अपनी मूर्खता पर महान पश्चाताप किया। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखकर इसी भाँति प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा है।
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