भाजपा जिलाध्यक्ष पद के लिए जिला पंचायत चुनाव जैसे हथकंडे
आगरा। भारतीय जनता पार्टी में जिलाध्यक्ष पद के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होते ही जैसी खींचतान दिख रही है, वह बहुत कुछ वैसा ही है जैसा कि जिला पंचायत अध्य़क्ष या फिर ब्लॊक प्रमुखों के चुनाव में देखने को मिलता है। जिलाध्यक्ष का चुनाव मंडल अध्यक्षों और जिला प्रतिनिधियों को करना होता है। इन हथकंडों के बारे में सूचनाएं मिलने पर प्रदेश भाजपा भी चौकन्नी हो गई है और संभव है कि नामांकन के साथ चार प्रस्तावकों की अनिवार्यता को खत्म कर दिया जाए। यह भी संभव कि सभी के नामांकन स्वीकार कर लिए जाएं।
-मंडल अध्यक्ष और जिला प्रतिनिधि वोटर हैं, इन्हें वैसे ही घेरा जा रहा जैसे जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में वोटरों की घेरेबंदी होती है
- इन हथकंडों से भाजपा चौकन्नी, नामांकनों संग चार प्रस्तावकों की शर्त से बनी यह स्थिति, चुनाव अधिकारियों को जल्द नए निर्देश संभव
वोटर मंडल अध्यक्षों और जिला प्रतिनिधियों की घेरेबंदी बिल्कुल वैसे ही हो रही है जैसे जिला पंचायत या क्षेत्र पंचायत सदस्यों की होती है। यूपी के कई जिलों में तो धनबल और बाहुबल का भी सहारा लिया जा रहा है। कुल मिलाकर वोटर मंडल अध्यक्षों और जिला प्रतिनिधियों के लिए मुसीबत खड़ी हो गई है।
यह स्थिति इसीलिए पैदा हुई है क्योंकि भाजपा नेतृत्व ने इस बार जिलाध्यक्ष पद के नामांकन के साथ चार प्रस्तावकों की शर्त लगा दी है। प्रस्तावक मंडल अध्यक्ष अथवा जिला प्रतिनिधि ही बन सकते हैं, इसलिए जिलाध्यक्ष पद के दावेदारों ने वे सारे हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए हैं जो जिला पंचायत अध्यक्ष अथवा ब्लॊक प्रमुखों के चुनाव में अपनाए जाते हैं।
पूर्वांचल के कई जिलों के बारे में तो यहां तक रिपोर्ट मिल रही है कि जिलाध्यक्ष पद के साधन संपन्न भाजपा नेताओं ने मंडल अध्यक्षों और जिला प्रतिनिधियों को पैसों के बल पर अपने साथ खड़े होने की मुहिम शुरू की हुई है। सूचनाएं तो यहां तक हैं कि बहुत से दावेदारों ने वोटर मंडल अध्यक्षों और जिला प्रतिनिधियों को अपने साथ जोड़कर कहीं सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया है ताकि दूसरे दावेदार उनसे सम्पर्क तक न कर सकें।
जिलाध्यक्ष पद की हथकंडेबाजी में कुछ दावेदार नेता तो इस कोशिश में भी लगे हुए हैं कि अपने जिले के कुल मंडल अध्यक्षों और जिला प्रतिनिधियों में से आधे से अधिक के अपने पक्ष में हस्ताक्षर कराकर जिला चुनाव अधिकारी के समक्ष रख दें ताकि उन्हें जिलाध्यक्ष बनाना मजबूरी बन जाए।
समूची यूपी में निर्वाचित घोषित किए गए मंडल अध्यक्ष और जिला प्रतिनिधि अधिकांशतः विधायकों की पसंद के हैं। जिलाध्यक्ष पद के दावेदार जब मंडल अध्यक्षों और जिला प्रतिनिधियों का समर्थन मांगने पहुंचते हैं तो वे गेंद को विधायक के पाले में सरकाकर अपना पिंड छुड़ा रहे हैं। मंडल अध्यक्षों और जिला प्रतिनिधियों की हालत यह हो गई है कि वे किस-किस से बुराई मोल लें।
प्रदेश भर में जिलाध्यक्ष पद हासिल करने के लिए भाजपा नेताओं द्वारा अपनाए जा रहे हथकंडों के बारे में प्रदेश नेतृत्व तक भी सूचनाएं पहुंचने लगी हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि बहुत जल्द प्रदेश के चुनाव अधिकारी के स्तर से नामांकन के साथ चार प्रस्तावकों की शर्त को हटाया भी जा सकता है। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि पार्टी यह घोषणा कर दे कि वे नामांकन भी वैध माने जाएंगे जिनके साथ चार प्रस्तावकों के नाम नहीं होंगे।
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