नैक की बेहतर ग्रेडिंग के लिए विश्वविद्यालय में घोड़े के आगे गाड़ी जोतने जैसा कारनामा
आगरा। सिविल सोसायटी ऑफ आगरा ने डा. भीमराव आंबेडकर विवि के इस दावे को पूरी तरह गलत बताया है कि विवि में 203 सहायक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर हैं। सच्चाई यह है कि संख्या को 203 तक ले जाने के लिए 109 अतरिक्त पद ही नहीं हैं।
- सिविल सोसाइटी आफ आगरा ने सवाल, यह दावा गलत कि उसके यहां 203 प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर हैं
- वित्तीय और प्रशासनिक अनियमितताओं के बीच ग्रेडिंग अपग्रेड हो भी गई तो छात्रों का कुछ भला नहीं होने वाला
संकायों की प्रकाशित सूची की सावधानीपूर्वक जांच से ही पता चल जाएगा कि उल्लिखित कई सहायक प्रोफेसर विश्वविद्यालय में सेवारत रहे या सेवारत महानुभावों के निकट संबधी या उनके रिश्तेदारों आश्रित हैं। यह स्पष्टत: शिक्षा में सुधार के लिये प्रभावी हो चुकी नीति को नजरअंदाज़ कर किया गया कार्य है। रोस्टर का पालन भी इन पदों पर नहीं दिखाई देता है।
सिविल सोसाइटी आफ आगरा के अध्यक्ष शिरोमणि सिंह, सचिव अनिल शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार राजीव सक्सेना और असलम सलीमी ने प्रेसवार्ता में कहा कि विश्वविद्यालय ने प्रेस में अधिसूचना/विज्ञापन संख्या 3/2009 द्वारा 53 पदों का जो विज्ञापन दिया गया था, वह अवैध है। राज्यपाल कार्यालय से इस विज्ञापन के बारे में स्पष्ट किया जा चुका है कि इसे कुलाधिपति कार्यालय से अनुमति प्राप्त नहीं थी।
विश्वविद्यालय, में रिक्त नियमित पदों पर सहायक प्रोफेसर/एसोसिएट प्रोफेसर/प्रोफेसर की भर्ती के लिए 05 मई, 2022 के आरडब्ल्यू/01/2022 के विज्ञापन को हमने चुनौती दी तो राज्यपाल के कार्यालय ने विश्वविद्यालय के इस दावे का खंडन किया कि विज्ञापन को राज्यपाल की मंजूरी प्राप्त थी। उपरोक्त के संबध में साक्ष्य प्रस्तुत है।
सोसाइटी सदस्यों ने राज्यपाल का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा है कि विश्वविद्यालय उच्च एनएएसी ग्रेडिंग/रेटिंग हासिल करने के लिए भ्रामक और तुच्छ जानकारी प्रस्तुत कर रहा है। विश्वविद्यालय के प्रति भावनात्मक लगाव और उसके स्तर में अनवरत तरक्की की कामना रखने वाले नागरिक और पूर्व छात्रों के रूप में हम यह समझने में विफल हैं कि तथ्यात्मक गलत जानकारियां देकर अगर उच्च एनएएसी रेटिंग /ग्रेडिंग विश्वविद्यालय को मिल भी जाती है तो वह उसके प्रशासन में कैसे बदलाव लाएगी और हितधारकों को इससे कैसे लाभ होगा।
सोसाइटी ने कहा कि ग्रेडिंग अपग्रेड करने को विश्वविद्यालय तंत्र जो तौर तरीके अपना रहा है, वह सरकारी धन और व्यवस्था के दुरुपयोग से अधिक कुछ भी नहीं है। इस प्रकार की ग्रेडिंग से विश्वविद्यालय और छात्रों का कुछ भला नहीं होने वाला। राज्य सरकार ही नहीं, डीम्ड और निजी प्रबंधन के विश्वविद्यालय तक शासन के द्वारा प्रभावी किये गये एक्ट के तहत संचालित किये जाते हैं, लेकिन लगता है कि डा. भीमराव आम्बेडकर विवि आगरा को इन कानूनों और संबंधित एक्ट की कोई परवाह ही नहीं है।
विवि प्रशासन से जुड़े अधिकारी अपनी मनमर्जी से जो चाहते हैं कर डालते हैं। जो चल रहा है, उससे नहीं लगता कि एनएएसी ग्रेडिंग/रेटिंग से विश्वविद्यालय प्रशासन में सुधार होगा। सही बात तो यह है कि विश्वविद्यालय अधिनियमों और संविधियों द्वारा चलाया जाता है न कि विश्वविद्यालय के अधिकारियों की व्यक्तिगत धारणाओं और कल्पनाओं द्वारा। कष्टकारी है कि शिक्षाविदों की बहुतायत वाले आगरा महानगर के सबसे पुराने विवि में घोड़े के आगे गाड़ी जोतने जैसा कारनामा अंजाम दिए जाने की कोशिश बेखौफ की जा रही है।
सोसाइटी ने अपेक्षा की है कि वित्तीय और प्रशासनिक अनियमितताओं को दूर कर छात्रों के हितों को ध्यान में रखते हुए नैक की ग्रेडिंग/रेटिंग कार्यवाही सुधारों के बाद फिर से शुरू की जाए। यदि, नेशनल असेसमेंट एंड एक्रेडिटेशन काउंसिल उच्च ग्रेडिंग/रेटिंग अभी प्रदान करती है तो यह विश्वविद्यालय की अनियमितताओं और कुप्रबंधन का महिमामंडन करना होगा।
सोसाइटी पदाधिकारियों ने बतायि कि वे प्रोफेसर गणेशन कन्नबीरण निदेशक, राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद को भी पत्र प्रेषित कर इन अनियमितताओं के बारे में अवगत कराने के साथ ही अपनी आपत्ति दर्ज करवा चुके हैं।
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