इंदिरा जैसा विलक्षण व असाधारण नेता सदियों बाद पैदा होता है
19 नंबर इंदिरा गांधी जन्मदिन दिवस पर विशेष इंदिरा जी जैसा महान विलक्षण व असाधारण नेता सदियों बाद पैदा होता है। 19 नवंबर 1917 को विश्व स्तर के प्रतिष्ठित नेहरू परिवार में इलाहाबाद (प्रयागराज) के वैभवशाली आनंद भवन में एक बहुत ही सुंदर बच्ची का जन्म हुआ। बच्ची के दादा एवं देश के वरिष्ठ बैरिस्टर पंडित मोतीलाल नेहरू ने इस सुंदर बच्ची को प्रियदर्शिनी इंदिरा नाम दिया। महान नेता पंडित जवाहरलाल नेहरू व मां श्रीमती कमला नेहरू की इस इकलौती लाडली का बचपन बहुत ही संघर्षों में बीता। लेकिन यह कहावत कि होनहार बिरवान के होत चीकने पात वाली कहावत प्रियदर्शिनी पर भी चरितार्थ हुई। खेलने की उम्र में ही जब पिता पंडित जवाहर लाल नेहरू स्वतंत्रता आंदोलन में जेल में थे और मां श्रीमती कमला नेहरू गंभीर बीमारी के कारण दुनिया से चली गई। इंदिरा जी अकेली रह गई। पिता नेहरू जेल से ही इस इकलौती लाडली को पत्र लिखते रहते थे।
प्रियदर्शिनी इंदिरा में जन्म से ही देशभक्ति कूट-कूट कर भरी थी। 5 वर्ष की उम्र में ही इंदिरा जी ने अपने स्कूल के साथी बच्चों को लेकर एक वानर सेना बनाई और स्वतंत्रता आंदोलन में सहयोग करने लगी।
स्वातंत्र्यसेनानियों की सूचनाओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाना इंदिरा जी का शौक बन गया। गांधीजी प्रियदर्शिनी को बहुत प्यार करते थे।
इंदिरा जी में अदम्य साहस कूट-कूट कर भरा हुआ था। पिता पंडित नेहरू जब जेल में थे तो अंग्रेजी पुलिस उनके घर की कुर्की करने के लिए आई। नन्ही इंदिरा घर पर अकेली थी। बड़ी निर्भीकता से उन्होंने डटकर पुलिस का विरोध किया और अपने सामान को पुलिस को छूने तक नहीं दिया।
जब पुलिस सामान उठाने लगी तो छोटे-छोटे हाथों से मुक्के मारकर उन पुलिस वालों का सामना कर रही थी और अपने सामान को पुलिस से छीन रहीं थीं। एक दिन प्रियदर्शिनी ने अपनी बानर सेना को लेकर अपने स्कूल में तिरंगा फहराने की ठान ली ।
और आगे आगे झंडा लेकर स्कूल की तरफ बढ़ रही थी ।तभी अंग्रेजी पुलिस ने उनको रोका लेकिन देश भक्त साहसी इंदिरा कहां रुकने वाली थी ।पुलिस ने उन पर डंडे बरसाए । इंदिरा नीचे गिर गई लेकिन तिरंगे को नहीं गिरने दिया और अंत में स्कूल पर जाकर तिरंगा फहरा कर ही दम लिया। इंदिरा जी को विराम शब्द से शायद नफरत सी थी। फिरोज गांधी से शादी के बाद दो बच्चों राजीव और संजय की मां बनी।
1964 में प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद श्री लाल बहादुर शास्त्री जी देश के द्वितीय प्रधानमंत्री बने। शास्त्री जी ने इंदिरा जी की विलक्षण प्रतिभा और जज्बातों को देखते हुए उन्हें अपने मंत्री मंडल में सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में जिम्मेदारी दी ।
लेकिन देश के भाग्य को कुछ और ही मंजूर था ताशकंद वार्ता के दौरान प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्रीजी का अचानक निधन हो गया। देश के सामने नेतृत्व की समस्या पैदा हो गई । तभी इंदिरा जी की बिलक्षण प्रतिभा को देखते हुए उन्हें देश का तीसरा प्रधानमंत्री बनाया गया। और अब उनके विशाल एवं विलक्षण नेतृत्व क्षमता प्रदर्शन का पूरी तरह से उन्हें अवसर भी मिला ।
सन 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में इंदिरा जी स्वयं ठंड में पाकिस्तान सीमा पर मौजूद अपनी सेना के जवानों का मनोबल बढ़ाने के लिए स्वयं रात में जाती थी । वहां पर सेना के अधिकारियों के साथ पूरी रणनीति तैयार करती थीं। तथा देश के बीर सैनिकों का हौसला बढ़ाती थीं । इसी रणनीति व अदम्य साहस के कारण हमारे देश की बहादुर सेना ने पाकिस्तान के दो टुकड़े किए ।
करीब 1 लाख पाकिस्तानी सैनिकों के जनरल नियाजी सहित हथियार डलवा कर आत्मसमर्पण को मजबूर किया । पाकिस्तान के दूसरे टुकड़े को बांग्लादेश की मान्यता भी दुनिया के देशों से दिलवा दी। इंदिरा जी ने बड़े-बड़े राजा महाराजाओं के प्रिवी पर्स खत्म किये। बड़े-बड़े जमीदारों की जमींदारी खत्म कर उनकी जमीन को देश के किसानों में बांटा।
बड़े बड़े सेठों की बैंकों का राष्ट्रीय करण किया। तथा 1974 में पोखरण में दुनिया के तमाम विरोधों के बावजूद परमाणु परीक्षण कर अपने अदम्य साहस से देश की ताकत का दुनिया को एहसास करा दिया। इंदिरा जी के अंदर एक बहुत ही असाधारण और विभिन्न रूपों का समावेश भी देखने को मिलता है, एक संघर्ष राजनीतिक जीवन जीते हुए भी वह कभी भी अपने अंदर छिपे हुए मातृत्व तथा वात्सल्य को अलग न कर सकी।
देश का भार होने के बावजूद कभी भी अपने परिवार व निजी जीवन में किसी प्रकार की कमी नहीं आने दी। प्रधानमंत्री पद पर रहकर उन्होंने पंडित नेहरू द्वारा गठित विश्व के 165 निर्गुट देशों के संगठन का नेतृत्व भी किया । उन 165 निर्गुट देशों का एक विशाल सम्मेलन दिल्ली में आयोजित किया।
9 दिन तक चले इस सम्मेलन की मेजबानी भी की। दिन में उस निर्गुट सम्मेलन की अध्यक्षता और मेजबानी करती थी रात को पूरी रात जाग कर देश की फाइलों को तथा देश की समस्याओं को निपटाती थी । 9 दिन तक इंदिरा जी एक पल के लिए सोई तक नहीं थी ।
लेकिन फिर भी उनके चेहरे पर तनिक भी कहीं कोई लेश मात्र भी शिकन तक नहीं थी । ऐसा था इंदिरा जी का महान व्यक्तित्व ।इंदिरा जी सभी धर्मों का समान आदर करती थी ।जब कहीं भी अपने दौरे पर जाती थी तो मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे व गिरजा घरो में जरूर जाती थी ।तथा समय-समय पर सभी धर्म के आचार्य विद्वानों से भी मिलती रहती थी ।
मां आनंदमई उनकी गुरु थी ।इंदिरा जी को लिखने का भी बड़ा शौक था ।इंदिरा जी ने अपना सारा जीवन देश की सेवा में ही व्यतीत किया और देश के लिए चिंतित रहती थी ।उन्होंने देश के विकास के लिए जो कदम उठाए आज उन्हीं पर देश आगे बढ़ रहा है। इंदिरा जी ने 20 सूत्री कार्यक्रम देकर देश का चौमुखी विकास किया। कड़ी मेहनत दूर दृष्टि पक्का इरादा और ईमानदारी । यह चार बातें इंदिरा जी का मूल मंत्र थे ।और वह हमेशा इन चार बातों पर बहुत बल देती थीं ।
महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार व सम्मान इंदिरा जी की ही देन है ।वह अपने कुशल व सफल नेतृत्व के आधार पर ही देश की नहीं अपितु सारे विश्व की नेता मानी जाती थी। इंदिरा जी का जीवन विविधताओं का संगम था ।उन्होंने अपना सारा जीवन राष्ट्र की सेवा में लगाया और समर्पित भी किया।
राष्ट्र के लिए अपने को हंसते-हंसते न्यौछावर कर दिया ।जब खालिस्तान की मांग को लेकर आतंकी प्रहार हो रहे थे लेकिन इंदिरा जी चूंकि देश के लिए पैदा हुई थी और देश को टूटने से बचाने के लिए उन्होंने अपने जीवन तक की परवाह नहीं की। अपनी हत्या से एक दिन पहले 30 अक्टूबर 1984 को भुवनेश्वर की एक जनसभा में उन्होंने कहा था कि मुझे मालूम है कि एक दिन मेरी जान जाएगी।
लेकिन मैं इस बात की परवाह नहीं करती ।और उन्होंने कहा था कि जब भी मेरी जान जाएगी मेरे खून का एक-एक कतरा देश को और मजबूती देगा ।और इंदिरा जी हंसते हंसते देश के लिए कुर्बान हो गई। आज हम सब अपनी उस देश की महान मिलेनियम नेता के संकल्प को पूरा करने के लिए देश को सांप्रदायिकता और अलगाव बाद से रक्षा कर अखंडता का संकल्प लें । जय हिंद।
रमाशंकर शर्मा, एडवोकेट,
लेखक राजीव गांधी बार एसोसिएशन आगरा के अध्यक्ष हैं
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