भले ही संन्यास वापस हो गया, राखी अब भी गौरी गिरि ही है

  आगरा। प्रयागराज महाकुम्भ में संन्यास लेने और फिर संन्यास से वापस होने के बाद अपने गांव टरकपुर लौटी आगरा की राखी ने अपने नये नाम को ही अपनी पहचान बना लिया है। परिचय में वह अपना नाम गौरी गिरि ही बताती है। इस बीच राखी उर्फ गौरी गिरि ने कहा है कि उसके संन्यास लेने के फैसले में उसके अपने ही विरोधी बन गए।

Jan 18, 2025 - 21:15
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भले ही संन्यास वापस हो गया, राखी अब भी गौरी गिरि ही है
आगरा की राखी जो अब अपना परिचय गौरी गिरि नाम से देती है।

-बोली- मैंने मां-बाप से कह दिया था कि संन्यास न लेने दिया तो गंगा में डूब कर मर जाउंगी, संन्यास लेने पर उसके अपने ही विरोधी बन गए

राखी का कहना है कि मौसा-मौसी, भाई-बहन सब उसके खिलाफ हो गए। उसके पिता के एक बिजनेस पार्टनर ने बेईमानी कर ली थी। पिता ने उसे पड़ोस में रहने वाले अंकल से उठवा लिया था। तभी से वह दुश्मनी मानता है और अब बदला निकाल रहा है। वह तीन साल पहले अपने गुरुजी से तब मिली थी जब वे गांव में भागवत कथा कहने आए थे।

राखी उर्फ गौरी गिरि का कहना है कि गुरुजी पर आरोप लगाने वाले चार लोग हैं। मेरी अखाड़े के संरक्षक हरि गिरि महाराज, प्रेम गिरि महाराज और नारायण गिरि महाराज से हाथ जोड़कर विनती है कि मेरे गुरु पर गलत आरोप लगाए गए हैं। वे ऐसे हैं ही नहीं। उन्हें अखाड़े में वापस लिया जाए।

राखी उर्फ गौरी गिरि का कहना है कि संन्यास लेने का फैसला उसका खुद का फैसला था। उसने परिजनों से कह दिया था कि अगर उसे संन्यास नहीं लेने दिया गया तो वह गंगा में डूब कर जान दे देगी। इसके बाद ही उसके परिवारीजनों ने उसे संन्यास लेने की अनुमति दी थी।

ऱाखी का कहना है कि वह संन्यास लेने के अपने फैसले पर अटल है। वह अखाड़े से बाहर रहकर भी साध्वी के रूप में ही बनी रहेंगी। अब वृंदावन के गुरुकुल में पढ़ाई करेंगी।

राखी ने बताया कि बचपन से ही उसे संन्यास लेने की इच्छा थी, लेकिन परिजनों ने मना कर दिया था। विगत 25 दिसंबर को जब वह परिवार के साथ महाकुंभ पहुंची तो मेरा मन विचलित हो गया। वह खुद को रोक नहीं पाईं। उसकी जिद के आगे परिवार को उसकी इच्छा का मान रखना पड़ा था।

राखी उर्फ गौरी गिरि ने कहा कि महाकुम्भ पहुंचने के बाद उसे लगा कि बचपन की जो इच्छा है, उसे आज ही पूरी कर लूं। घर वालों को बताया तो उनका कहना था कि संन्यास आसान नहीं। साध्वी बनना लोहे के चने चबाने के समान है, लेकिन मैं अपनी जिद पर अटल थी। तब माता-पिता ने गुरुजी से कहा था कि वही करिए जो उनकी बेटी चाहती है। गुरुजी का आशीर्वाद मिलने के बाद ही उसने भगवा वस्त्र धारण कर लिए थे।

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SP_Singh AURGURU Editor