दो माननीयों की अदावतः दो पाटों के बीच जैसी स्थिति में है विश्वविद्यालय

फतेहपुरसीकरी क्षेत्र के दो दिग्गज नेताओं के बीच लांग डांग कोई नयी नहीं है। विश्वविद्यालय में परीक्षा केंद्र को लेकर हुई खींचतान अचानक नहीं हुई। इसकी शुरूआत एक माननीय के पक्ष से हुई। अपनी धाक जमाने के लिए दूसरे माननीय को अड़ना पड़ गया।

Nov 24, 2024 - 15:40
Nov 24, 2024 - 17:41
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दो माननीयों की अदावतः दो पाटों के बीच जैसी स्थिति में है विश्वविद्यालय

आगरा। फतेहपुरसीकरी क्षेत्र के दो दिग्गज नेताओं के बीच लांग डांग कोई नयी नहीं है। विश्वविद्यालय में परीक्षा केंद्र को लेकर हुई खींचतान अचानक नहीं हुई। इसकी शुरूआत एक माननीय के पक्ष से हुई। प्रतिक्रिया दूसरे माननीय के स्तर से हुई और उन्हें अपनी बात मनवाने को अड़ना पड़ा। 


कहानी यह है कि फतेहपुरसीकरी क्षेत्र में भाजपा के एक नेता पूर्व जिला पंचायत सदस्य यशपाल चौधरी का पनवारी गांव में कालेज है। लोकसभा चुनाव में यहां से एक माननीय के पुत्र के चुनाव लड़ने के कारण पूरा गांव दूसरे माननीय के विरोध में था। उस दौरान यशपाल चौधरी ने अपने महाविद्यालय पर दूसरे माननीय को बुलाकर स्वागत किया था। इस बात की फांस पहले माननीय के दिल में तभी से चुभ गई थी।

यशपाल चौधरी का पनवारी में श्री राम आदर्श महाविद्यालय है। विवि द्वारा इसे कई महाविद्यालयों के छात्रों का परीक्षा केंद्र बनाया गया था।यहां कई महाविद्यालयों के छात्रों को परीक्षा देनी थी। एक माननीय को जब यह पता चला तो उन्हें नागवार गुजरा। उक्त माननीय  ने अपने प्रभाव और प्रदेश सरकार में एक मंत्री से अपनी नजदीकी के चलते रातों रात इस परीक्षा केंद्र पर जिन महाविद्यालय के छात्रों का परीक्षा होनी थी, उनका परीक्षा केंद्र श्री राम आदर्श महाविद्यालय से बदल कर अपने महाविद्यालय में करा लिया।

 इस बात की जानकारी जब दूसरे माननीय को हुई तो उनकी भ्रकुटी तन गई। उन्होंने कुलपति से आपत्ति जताई। कुलपति रातोंरात केंद्र बदलने के लिए तैयार नहीं थीं, लेकिन दूसरे माननीय का दबाव ऐसा था कि उन्हें परीक्षा केंद्र बदलने का निर्देश परीक्षा नियंत्रक को देना पड़ गया।

अब न केवल विवि और शिक्षा जगत अपितु राजनीतिक हलकों में भी इन दोनों माननीयों की अदावत और इसमें पिस रहे विश्वविद्यालय की चर्चा आम हो चली है। विवि के अधिकारियों को समझ में नहीं आ रहा कि किसे खुश रखें और किसे नाराज करें। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में भी विश्वविद्यालय प्रशासन को ऐसे हालातों से गुजरना पड़ेगा।  

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