पावर कारपोरेशन का निजी क्षेत्र से गठजोड़ अभियंता संघ को मंजूर नहीं
आगरा। उत्तर प्रदेश पॊवर कारपोरेशन के निरंतर बढ़ते घाटे को देखते हुए बिजली व्यवस्था को निजी क्षेत्र के साथ पार्टनरशिप में चलाने के लिए भले कदम बढ़ाने के बारे में सोचा गया है, लेकिन ये काम इतनी आसानी से हो जाएगा, संभव नहीं दिखता। इस पहल का विरोध भी शुरू हो गया है।
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ के महासचिव जितेन्द्र सिंह गुर्जर ने सरकार की पहल पर त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पॉवर कारपोरेशन द्वारा वितरण क्षेत्रों का उड़ीसा मॉडल की तरह पीपीपी मोड पर निजीकरण न तो उपभोक्ताओं के हित में होगा और न ही कर्मचारियों के। अतः निजीकरण स्वीकार्य नहीं होगा।
बता दें कि बीते कल शक्ति भवन में हुई एक बैठक में प्रदेश के विभिन्न विद्युत वितरण निगमों की खराब वित्तीय हालत की समीक्षा की गयी थी। इसमें निगमों के निदेशकों और मुख्य अभियन्ताओं ने कहा एक राय से कहा था कि हर संभव प्रयास करने के बावजूद न तो राजस्व वसूली में सुधार है और न ही लाइन हानियां कम हो रहीं। कर्मचारियों को निलम्बित करने के साथ विजिलेंस के छापे, डिस्कनेक्शन और यहां तक कि मुकदमे दर्ज कराने के बाद भी हालात जस के तस हैं।
निदेशकों और मुख्य अभियंताओं का मत था कि कोई कठोर कदम उठाया जाना चाहिए नहीं तो हालात और बिगड़ते जाएंगे। बैठक में प्रदेश के सभी वितरण निगमों के प्रबन्ध निदेशक, निदेशक तथा मुख्य अभियन्ताओं के अलावा प्रदेश पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष डा. आशीष कुमार गोयल एवं प्रबन्ध निदेशक पंकज कुमार सहित वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
इस समीक्षा बैठक का सार यह था कि साल दर साल कारपोरेशन को सरकार से आर्थिक सहयोग मांगना पड़ रहा है। इस साल 46 हजार करोड़ सरकार से लेना पड़ा। कारपोरेशन जितनी बिजली खरीद रहा है, उतनी भी वसूली नहीं हो पा रही है। अगले दो साल में सरकार से मदद लेने की स्थिति 60 हजार करोड़ को पार कर जाएगी।
वे सुझाव जो बैठक में अधिकारियों ने सुझाए
-ऐसे क्षेत्र जहां घाटा ज्यादा है उन्हें सहभागिता के आधार पर पार्टनरशिप करके निजी क्षेत्र को जोड़कर सुधार किया जाये। यदि कर्मचारी सहयोग करें तो पार्टनरशिप में उनकी भी सहभागिता दी जाये। इस प्रबन्धन में निजी क्षेत्र का एमडी बनाया जाये और अध्यक्ष सरकार का प्रतिनिधि बने ताकि उपभोक्ता, किसानों और कर्मचारियों के हित सुरक्षित बने रहें। यह सहभागिता के आधार पर विद्युत व्यवस्था की शुरूआत होगी।
-अधिकारियों और कर्मचारियों के सभी हित सुरक्षित रहें। उनको पेंशन सहित सभी देय हित लाभ समय से मिले यह सुनिश्चित किया जाये।
-संविदाकर्मियों के हितों का भी ध्यान रखा जाये। अधिकारियों का मत था कि विद्युत क्षेत्र में मांग को देखते हुए दक्ष मैनपावर की और जरूरत पड़ेगी, जिससे और भी अच्छी सेवा शर्ते होने की सम्भावना रहेगी। सविंदा कर्मियों का हित सुरक्षित रहे और वर्क इन्वायरमेन्ट में सुधार किया जाये।
-जहां घाटा ज्यादा है और सभी कोशिशों के बावजूद स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है उन्हीं क्षेत्रों में इस व्यवस्था को लागू करने पर विचार किया जाये।
-अधिकारियों, कर्मचारियों की सेवा शर्तें, सेवानिवृत्ति लाभ आदि में कोई घटोत्तरी नहीं होगी। अधिकारी कर्मचारियों को तीन विकल्प दिए जाएं। पहला
उसी स्थान पर बने रहें। दूसरा यूपीसीसीएल अथवा या अन्य डिस्काम में आ जाएं और तीसरा आकर्षक वीआरएस ले लें।
-यदि अधिकारी कर्मचारी रिफार्म प्रक्रिया में सहयोग करते हैं तो प्रदेश सरकार नयी कंपनी में उनको हिस्सेदारी देने पर भी विचार करे।
-यह रिफार्म का कार्य ऐसे क्षेत्र में ही किया जाए जहां पर पैरामीटर अच्छे नहीं हैं। जिन क्षेत्रों में अधिकारियों कर्मचारियों ने पैरामीटर्स में सुधार किया है, उन क्षेत्रों को इस प्रक्रिया से बाहर रखा जाए।
अभियंता संघ को यह सब स्वीकार नहीं
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ के महासचिव जितेन्द्र सिंह गुर्जर ने पॉवर कारपोरेशन के बढ़ते घाटे के लिये प्रबन्धन को जिम्मेदार बताते हुए कहा है कि उड़ीसा में पूरी तरह विफल हो चुके मॉडल की तरह उप्र में वितरण का निजीकरण कतई स्वीकार्य नहीं होगा। निजीकरण अप्रैल 2018 और अक्टूबर 2020 के समझौते का खुला उल्लंघन होगा।
श्री गुर्जर ने कहा कि घाटे और कर्ज के नाम पर पॉवर कारपोरेशन को ऋण पाश (Debt Trap) में बताने के पहले जरूरी है कि पॉवर कारपोरेशन प्रबन्धन बिन्दुवार यह बताए कि किन किन कारणों से घाटा हो रहा है और प्रबन्धन ने घाटा कम करने हेतु क्या कदम उठाए हैं।
उन्होंने कहा कि अभियन्ता संघ घाटे के कारणों पर विस्तृत चर्चा करने हेतु हमेशा तैयार है किन्तु अत्यन्त खेद का विषय है कि प्रबन्धन ने आज तक सुधार कार्यक्रमों पर कभी भी संगठनों से वार्ता नहीं की है। उन्होंने कहा कि यदि अभियन्ता और कर्मचारी संघों को विश्वास में लेकर सुधार की कार्य योजना बनाई जाय तो एक वर्ष में ही सकारात्मक परिणाम आने लगेंगे यह हमारी गारंटी है।
उन्होंने कहा कि उड़ीसा का मॉडल पूरी तरीके से विफल हो चुका है। 1998 में उड़ीसा में सभी वितरण कंपनियों का पीपीपी मॉडल के आधार पर निजीकरण किया गया था। 17 साल बाद 2015 के फरवरी में उड़ीसा के विद्युत नियामक आयोग ने पूरी तरह विफल रहने के कारण रिलायंस पावर के विद्युत वितरण के तीनों लाइसेंस रद्द कर दिए थे।
स्पष्ट है कि यह प्रयोग पूरी तरीके से विफल हो गया है। कोरोना काल के दौरान एक बार पुनः उड़ीसा की विद्युत वितरण कंपनियों का काम टाटा पावर को दिया गया है। अभी भी कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुए हैं और इसका उदाहरण देना या इसके उदाहरण के आधार पर उत्तर प्रदेश की विद्युत वितरण कंपनियों का पीपीपी मॉडल पर निजीकरण किया जाना एक विफल प्रयोग को उत्तर प्रदेश में थोपना है जो न ही कर्मचारियों के हित में है और न ही उपभोक्ताओं के हित में।
उन्होंने कहा कि अप्रैल 2018 में तत्कालीन ऊर्जा मंत्री श्रीकान्त शर्मा से वार्ता के बाद हुए लिखित समझौते और अक्टूबर 2020 में तत्कालीन वित्त मंत्री सुरेश खन्ना की अध्यक्षता में मंत्रिमंडलीय उप समिति के साथ हुए लिखित समझौते में स्पष्ट कहा गया है कि उप्र में ऊर्जा क्षेत्र में कोई निजीकरण नहीं किया जाएगा।
अतः यदि उक्त समझौतों का उल्लंघन कर निजीकरण की कवायद की जा रही है तो यह सरकार के साथ हुए समझौते का उल्लंघन होगा। उन्होंने कहा कि घाटे के कारणों पर बिन्दुवार अभियंता संघ विस्तृत प्रपत्र एक दो दिन में जारी करेगा।
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