डा. अनुराग शुक्ल का आगरा कालेज प्रिंसिपल पद पर अभ्यर्थन शून्य, जल्द नियुक्त हो सकता है नया प्रिंसिपल
आगरा। उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग ने विगत 11 नवंबर को आगरा कालेज के प्राचार्य डा. अनुराग शुक्ल का पक्ष सुनने के बाद अगले दिन (12 नवंबर को) डा. शुक्ल का अभ्यर्थन शून्य अथवा निरस्त करने का निर्णय ले लिया है। आयोग इस मामले में आपराधिक रिपोर्ट भी दर्ज करा सकता है।
- उच्च शिक्षा आयोग ने भी माना- प्रिंसिपल पद पाने को दिए गए दस्तावेज कूटरचित और असत्य
इसे दूसरे शब्दों में कहें तो आयोग ने मान लिया है कि डा. अनुराग शुक्ल ने प्राचार्य पद पर नियुक्ति कराने के लिए आयोग के समक्ष शोध संबंधी जो दस्तावेज पेश किए, वे फर्जी थे। अगले एक-दो दिन के भीतर आयोग के स्तर से आगरा कालेज के नए प्राचार्य की नियुक्ति की घोषणा कर दी जाए तो आश्चर्य नहीं होगा।
उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग के सचिव ने विगत 28 अक्टूबर को डा. अनुराग शुक्ला को एक पत्र जारी कर 11 नवंबर को आयोग के समक्ष उपस्थित होकर अपना पक्ष रखने को कहा था।
आयोग सचिव के इस पत्र में कहा गया कि आपके (डा. अनुराग शुक्ला) के विरुद्ध कार्यवाहक प्राचार्य एवं आगरा कालेज की प्रबंध समिति के सचिव ने फर्जी एवं कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर चयन प्राप्त करने एवं पद के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए समुचित कार्यवाही किए जाने का अनुरोध शासन से किया था।
शासन द्वारा प्रकरण की गंभीरता के दृष्टिगत शिकायती पत्र में उल्लिखित बिंदुओं की गहनता से तथ्यात्मक जांच कराकर आख्या उपलब्ध कराने के लिए उच्च शिक्षा निदेशक को निर्देशित किया गया था।
उक्त के अनुपालन में उच्च शिक्षा निदेशक द्वारा जांचोपरांत उपलब्ध कराई गई जांच आख्या के परिशीलनोपरांत निष्कर्ष प्राप्त हुआ कि डा. अनुराग शुक्ल विज्ञापन संख्या 49 में विज्ञापित प्राचार्य पद हेतु बिंदु संख्या 6.1.2 (संबंधित संस्था से शोध निर्देशन एवं प्रकाशित कार्य करने के प्रमाण के साथ संबंधित, अंतःसंबद्ध, सुसंगत क्षेत्रों में पीएचडी की उपाधि) में वर्णित न्यूनतम अर्हता धारित नहीं करने एवं उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के समक्ष अर्हता पूर्ण करने के लिए कूटरचित एवं आधारहीन अभिलेखों को प्रस्तुत कर चयन प्राप्त करने के दोषी हैं।
आयोग सचिव के पत्र में कहा गया है कि संदर्भित प्रकरण में उच्च शिक्षा निदेशक की जांच आख्या के आधार पर शासन ने आयोग को आदेशित किया कि आगरा कालेज के प्राचार्य डा. अनुराग शुक्ल के विरुद्ध तत्काल नियमानुसार कार्यवाही करते हुए कृत कार्यवाही से शासन को अवगत कराया जाए।
शासन और उच्च शिक्षा निदेशक के पत्र के क्रम में आयोग की विगत पांच नवंबर को हुई बैठक डा. अनुराग शुक्ल के प्रकरण में निर्णय लेने के लिए पांच सदस्यीय समिति का गठन किया गया। इस जांच समिति के हेड आयोग के वरिष्ठ सदस्य रामशुचि सिंह बनाए गए, जो रिटायर्ड जज भी हैं।
उक्त समिति की आख्या आयोग को विगत 24 अक्टूबर को प्राप्त हुई, जिसे आयोग की इसी दिन हुई बैठक में प्रस्तुत कर इस पर विचार किया गया।
आयोग की पांच सदस्यीय जांच समिति ने भी यही निष्कर्ष निकाला कि डा. अनुराग शुक्ल के प्राचार्य पद के लिए निर्धारित अर्हता की प्रतिपूर्ति में संलग्न किए गए प्रमाण आगरा कालेज के प्राचार्य एवं कालेज प्रबंध समिति के सचिव तथा उच्च शिक्षा निदेशक की जांच में कूटरचित और असत्य पाए गए हैं। यह जांच रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से उल्लेखित है।
डा. शुक्ल के प्राचार्य पद हेतु आयोग में उपलब्ध आवेदन पत्र की जांच में भी इसकी पुष्टि हुई है। आयोग की जांच समिति ने अभिमत दिया था कि इस संबंध में डा. अनुराग शुक्ल को तथ्यों की पुष्टि के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर अपना पक्ष रखने का अवसर प्रदान किया जाए।
इसी के तहत आयोग ने डा. अनुराग शुक्ल को अपना पक्ष रखने के लिए विगत 11 नवंबर को बुलाया था। 11 नवम्बर को डा. अनुराग शुक्ल उच्च शिक्षा आयोग में व्यक्तिगत रूप से पेश हुए और अपना पक्ष रखा।
भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि 12 नवंबर को आयोग की बैठक हुई, जिसमें डा. शुक्ल के पक्ष से असंतुष्टि जताते हुए उनका अभ्यर्थन शून्य घोषित करने का निर्णय ले लिया गया। सूत्रों की मानें तो आयोग ने अपने फैसले के बारे में शासन को भी अवगत करा दिया है।
बमुश्किल रिसीव हो सका पत्र
उच्च शिक्षा आयोग द्वारा अपना पक्ष रखने के लिए डा. अनुराग शुक्ल के नाम जारी किया गया पत्र उन्हें बमुश्किल रिसीव कराया जा सका। बताते हैं कि आयोग की ओर से डा. शुक्ल के व्यक्तिगत ईमेल के अलावा आगरा कालेज प्रिंसिपल के आफिशियल ईमेल पर यह पत्र भेजा गया, लेकिन नहीं देखा गया। इसके बाद आयोग से यह पत्र भेजा भी गया।
रिसीविंग प्राप्त न हो पाने पर आयोग ने आगरा के जिलाधिकारी और पुलिस आयुक्त को यह पत्र भेजकर डा. शुक्ल को रिसीव कराने को कहा। इसके बाद पुलिस फोर्स ने आगरा में ही डा. अनुराग शुक्ल को यह पत्र रिसीव कराया।
पिछले साल उठा था बवंडर
आगरा कालेज के प्रिंसिपल डा. अनुराग शुक्ला के खिलाफ पिछले साल जून में बवंडर उठा जो लगभग 17 महीने बाद उनकी नियुक्ति के शून्य होने की परिणिति तक जा पहुंचा। पिछले साल डा. शुक्ला के खिलाफ कालेज प्रबंध समिति की अध्यक्ष एवं मंडलायुक्त से शिकायत की गई थी। मंडलायुक्त ने इस बारे में शासन से जांच कराने की संस्तुति की थी।
जून 2023 में उच्च शिक्षा के संयुक्त निदेशक के नेतृत्व में आगरा आई उच्चस्तरीय कमेटी ने दो दिन आगरा में रुककर डा. शुक्ल पर लगे आरोपों की जांच की थी। इसके बाद डा. शुक्ल को निलंबित कर कालेज के ही डा. सीके गौतम को कार्यवाहक प्राचार्य बना दिया गया था।
डा. सीके गौतम के प्राचार्य काल में भी चार सीनियर प्रोफेसर्स की टीम ने मंडलायुक्त के आदेश पर घपलों की जांच कर अपनी रिपोर्ट तैयार की थी।
इसी साल 25 और 26 अप्रैल को उच्च शिक्षा निदेशक के नेतृत्व में एक और जांच टीम ने आगरा में दो दिन रुककर आगरा कालेज प्रिंसिपल डा. अनुराग शुक्ल पर लगे आरोपों की जांच की थी। निदेशक की जांच रिपोर्ट के आधार पर ही शासन ने उच्च शिक्षा सेवा आयोग को इस मामले में तत्काल कार्रवाई करने को कहा था।
पिछले महीने कोर्ट के आदेश पर दर्ज हुआ मुकदमा
शासन स्तर से यह जांच प्रक्रियाएं चल ही रही थीं कि आगरा कालेज बोर्ड आफ ट्रस्टीज के सदस्य सुभाष ढल ने बीते माह आगरा के सीजेएम के यहां आगरा कालेज प्रिंसिपल डा. अनुराग शुक्ल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए प्रार्थना पत्र दिया।
सीजेएम ने सबूतों को देखने के बाद डा. शुक्ल के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का आदेश थाना लोहामंडी पुलिस को अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में दिया था। कोर्ट का यह आदेश होने के चंद घंटों बाद ही डा. शुक्ल परिवार समेत आगरा से बाहर चले गए थे। इसके बाद वे लगभग 40 दिन तक अवकाश पर रहे।
हाईकोर्ट से भी नहीं मिली राहत
आगरा में अपने खिलाफ दर्ज मुकदमे के खिलाफ आगरा कालेज प्रिंसिपल डा. अनुराग शुक्ल हाईकोर्ट भी गए। पहले यह मामला हाईकोर्ट की सिंगिल बेंच ने सुना। तथ्यों को देखने के बाद हाईकोर्ट ने डा. शुक्ल को कोई राहत नहीं दी। इसके बाद वे इस मामले को मुख्य न्यायाधीश की कोर्ट में ले गए, लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने भी तीखी टिप्पणी करते हुए उनका यह मामला तुरंत सुनने से इंकार कर दिया था।
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