-तीन दिवसीय 32वीं इंडियन सोसायटी ऑफ ऑटोलॉजी की वार्षिक राष्ट्रीय कार्यशाला में प्रस्तुत किए गए 300 शोध पत्र, 1200 प्रतिनिधियों ने कान की बीमारियों पर किया इलाज की नई तकनीक पर मंथन
फतेहाबाद रोड स्थित होटल जेपी पैलेस में आयोजित तीन दिवसीय आईसोकॉन (इंडियन सोसायटी ऑफ ऑटोलॉजी) की 32वीं राष्ट्रीय वार्षिक कार्यशाला में आज इंडियन सोसायटी ऑफ ऑटोलाजी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विजेन्द्र (बैंगलुरू) ने बताया कि कान की हड्डी गलने पर यदि ऑपरेशन ठीक तरह से न किया जाए तो समस्या दोबारा भी पैदा सकती है।
बठिंडा की डॉ. ग्रेस बुद्धिराजा ने बताया कि कान के ऑपरेशन भी माइक्रोस्कोप के बजाय एंडोस्कोप विधि से अधिक किए जा रहे हैं, जिससे ऑपरेशन के दौरान आने वाली जटिलताओं में कमी आ रही है। डॉ. धर्मेन्द्र गुप्ता ने बताया कि जुकाम सामान्यतः वायरस से होता है, जिसमें दवा लेने के बजाय मरीज को आराम करना चाहिए।
जब तक कफ में पीलापन न हो, जुकाम में दवा लेने की आवश्यकता नहीं है। कफ में पीलापन का मतलब है कि सैकेन्ड्री इनफेक्शन यानि बैक्टीरियल इनफेक्शन है। तभी एंडीबायटिक दवाओं का प्रयोग करना उचित है, वह भी डॉक्टर की सलाह से। बेवजह दवा लेने से कान में समस्या हो सकती है।
आगरा ही नहीं, यूपी में पहली बार हुई ऑटोलॉजी की कार्यशाला
आगरा। उप्र में पहली बार ऑटोलॉजी की कार्यशाला सम्पन्न हुई है, जिसका सौभाग्य ताजनगरी को मिला। तीन दिवसीय आईसोकॉन (इंडियन सोसायटी ऑफ आटोलॉजी) की 32वीं राष्ट्रीय वार्षिक कार्यशाला के सफलता पूर्वक सम्पन्न होने पर आयोजन सचिव डॉ. राजीव पचौरी ने सभी सहयोगियों को स्मृति चिन्ह प्रदान कर धन्यवाद भी अर्पित किया।
आज कार्यशाला में आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ. सतीश जैन द्वारा शांतिवेद हॉस्पीटल से आठ लाइव ऑपरेशन भी किए गए। कार्यशाला में देश विदेश से 1200 से अधिक प्रतिनिधियों ने कान की बीमारी और एडवांस इलाज पर मंथन किया। 300 से अधिक शोधपत्र व पीजी विद्यार्तियों के लिए क्विज का आयोजन भी किया गया।
सभी विजेता प्रतिभागियों को स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया। संचालन डॉ. संजय खन्ना व डॉ. रितु गुप्ता ने किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से डॉ. गौरव खंडेलवाल, डॉ. आलोक मित्तल, डॉ. राकेश अग्रवाल, डॉ. मनीष सिंघल, डॉ. एलके गुप्ता, डॉ. दीपा पचौरी आदि उपस्थित रहे।