डाक्टर सोच रहे हैं कि मरणासन्न लोगों को आसान मौत कैसे दी जाए

सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के अनुसार देश के चिकित्सक चिंतन कर रहे हैं कि ऐसे मरीज जिनको मौत से बचाना असंभव है उन्हें आईसीयू में लाइफ सपोर्ट इंस्ट्रूमेंट की मदद से जिंदा रखने का कोई फायदा नहीं है। उनको यह सपोर्ट हटाकर आसान मौत मिलनी चाहिए। इसके वे हकदार हैं।

Oct 4, 2024 - 15:27
 0  124
डाक्टर सोच रहे हैं कि मरणासन्न लोगों को आसान मौत कैसे दी जाए

नई दिल्ली। देश के चुने हुए 25 डाक्टर्स ने कई बैठक कर और देश के चिकित्सकों से राय मशविरा कर मरणासन्न रोगियों के लिए एक मसौदा तैयार किया है कि  किस तरह से ऐसे मरीजों से लाइफ सपोर्ट हटाकर उन्हें आसान मौत दी जा सके।

एम्स की आईआरसीएच कैंसर की चीफ डा. सुषमा भटनागर ने बताया कि चिकित्सकों ने ऐसे मरीज जिनको ठीक न किया जा सके या  जिसकी स्थिति में सुधार न आ सके, ऐसी स्थिति को टर्मिनल इलनेस की संज्ञा दी है। यह ऐसी स्थिति बताई गई है जहां मौत को टाला न जा सके और मरीज के जिंदा बचने की कोई संभावना न बची हो।

ऐसे मरीजों को लाइफ  सपोर्ट हटाकर आसान मौत देने की वकालत की है। चिकित्सकों से यह गाइडलाइन बनाने के लिए यूनियन हेल्थ मिनिस्ट्री ने अनुरोध किया था। 


डा. भटनागर ने कहा कि चिकित्सकों को यह तो सिखाया जाता है कि नये नये उपकरणों की मदद से किस तरह किसी को ठीक किया जा सके। किंतु कोई यह नहीं सिखाता कि  उस समय क्या किया जाए जब मरीज का बचना पूरी तरह असंभव हो।

यही कारण है कि हम  मरीज को लगातार दवाएं देते रहते हैं जबकि हम जानते हैं कि सही होने की कोई संभावना नहीं है। 
उसके बाद भी हम उसे आईसीयू में रखकर सभी टेक्नीकल सपोर्ट देकर रखे  रहते हैं जबकि आईसीयू के उस टेक्नीकल सपोर्ट का लाभ उस मरीज को मिलना चाहिए जिसके सही होने की संभावना हो। 


डा. भटनागर के अनुसार इस पोलिसी के लागू होने के बाद मरीज और उसके परिवार के लोग सभी च्वाइस कर सकेंगे। अगर उन्हें बता दिया जाए कि मौत से बचना असंभव है।  डा.भटनागर के अनुसार हम वह सबकुछ करेंगे जो मरीज के सुधार के लिए जरूरी है पर वह नहीं करेंगे जिससे उसका कष्ट और लंबा खिंच जाए।

उन्होंने कहा कि चिकित्सकों को यह पहलू पढ़ाया ही नहीं जाता है। वह यूजी और पीजी में चिकित्सा का यह पहलू पाठ्यक्रम में शामिल कराने की कोशिश कर रही हैं।


इस प्रस्ताव की गाइड लाइन के अनुसार चार परिस्थितियां होना जरूरी है जब लाइफ सपोर्ट हटाना चाहते हों। यदि किसी व्यक्ति को ब्रेन डेथ घोषित कर दी गई हो या डाइगनोसिस के अनुसार कई चिकित्सकों की राय हो कि मरीज को किसी भी तरह के इलाज से कोई फायदा नहीं होगा।

 पर यह सब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बताए गए प्रोसीजर के अनुसार होगा। मंत्रालय ने देश के चिकित्सकों से मध्य अक्टूबर तक इस मसौदे पर अपनी राय देने के लिए कहा है।


आईएमए कोचीन के पूर्व अध्यक्ष डा. राजीव जयदेवन कहना है कि आईसीयू केयर उसी स्थिति में जरूरी है जब मरीज की जान को गंभीर खतरा हो। जैसे हार्ट अटैक, स्ट्रोक, लिवर फेल्योर, रोड ट्रोमा, निमोनिया और सर्प दंश।

ऐसी स्थितियों में आईसीयू का ट्रेन्ड स्टाफ, चिकित्सक लाइफ सपोर्ट यंत्र मरीज की जान बचा सकते हैं। लेकिन कैंसर से मरणासन्न व्यक्ति,

लंबे समय से बिस्तर पर पड़े एडवांस्ड डाइमेंशिया के मरीज को इन लाइफ सपोर्ट इंस्ट्रूमेंट से भी कुछ मदद नहीं मिल सकती। आईसीयू महंगा होता है साथ ही आईसीयू की उपलब्धता उन लोगों को मिलनी चाहिए जिनको इससे फायदा हो सके। 
 

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow