खस्ताहाल आगरा: नेता मौज में, नागरिक सोच में, कैसा विकास और किसका विकास?

शाही विरासत और विश्वविख्यात स्मारकों का शहर आगरा आज अव्यवस्थित शहरीकरण और बदहाल प्रशासन की मार झेल रहा है। स्मार्ट सिटी बनने का सपना साकार होने के बजाय शहर बदइंतजामी, अतिक्रमण और बुनियादी सुविधाओं की कमी से कराह रहा है।

Jan 31, 2025 - 12:43
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खस्ताहाल आगरा: नेता मौज में, नागरिक सोच में, कैसा विकास और किसका विकास?

-बृज खंडेलवाल-

कभी मुगल साम्राज्य की राजधानी रहा  आगरा आज बिगड़ती यातायात व्यवस्था, जल संकट, बढ़ते प्रदूषण और अराजक शहरीकरण का शिकार बना हुआ है। बढ़ती आबादी और अनियंत्रित विस्तार के कारण नागरिक सुविधाएं चरमरा गई हैं। स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी उपेक्षा ने स्थिति और दयनीय बना दी है।

आगरा में कई स्थानीय निकाय कार्यरत हैं, लेकिन समन्वय के अभाव में विकास कार्य ठप पड़े हैं। न तो हेरिटेज सिटी बनने की योजना साकार हुई और न ही स्मार्ट सिटी बनने की दिशा में ठोस कदम उठाए गए।

कभी शहर की जीवनरेखा रही यमुना आज सूखती जा रही है, जिससे न केवल आगरा का पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो रहा है, बल्कि ताजमहल की नींव भी खतरे में है। अपशिष्ट और औद्योगिक प्रदूषण ने नदी को जहरीला बना दिया है, लेकिन राजनैतिक नेतृत्व और प्रशासन बेखबर है।

स्थानीय व्यापारी कहते हैं कि पर्यटन पर अत्यधिक निर्भरता के कारण आगरा में औद्योगिक विकास नहीं हो पाया। आईटी हब, विनिर्माण उद्योग और कौशल विकास केंद्रों के विकसित न होने से बेरोजगारी बढ़ रही है। शहर को आर्थिक विविधीकरण की सख्त जरूरत है

एक लंबे समय से स्थानीय संगठन मांग कर रहे हैं कि सशक्त शहरी विकास प्राधिकरण का गठन कर समन्वित विकास योजनाएं लागू की जाएं। यमुना पुनर्जीवन परियोजना के तहत नदी में जल प्रवाह बहाल किया जाए। अतिक्रमण पर सख्त कार्रवाई और सार्वजनिक स्थानों का संरक्षण किया जाए। बेहतर सार्वजनिक परिवहन विकसित कर ट्रैफिक जाम और प्रदूषण को नियंत्रित किया जाए।

इसके साथ ही पर्यावरण संरक्षण की योजनाएं लागू कर प्रदूषण कम किया जाए। शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार कर जनता को बुनियादी सुविधाएं प्रदान की जाएं। यदि प्रशासन और नागरिक एकजुट होकर ठोस कदम उठाएं तो आगरा अपने गौरव को फिर से प्राप्त कर सकता है। वरना, यह ऐतिहासिक शहर अपनी पहचान और विरासत दोनों खोने की कगार पर है।

ये सवाल अक्सर किया जाता है कि क्यों आधुनिकता की दौड़ में स्मार्ट सिटी आगरा दिन व दिन पिछड़ता जा रहा है। जवाब सिंपल है। राजनैतिक नेतृत्व विकास को दिशा और गति देने में कामयाब नहीं हुआ है। इच्छा शक्ति की घोर कमी है। व्यक्तिगत स्वार्थ हावी हैं।

स्थानीय निवासी डॉ. अनुभव कहते हैं कि शहर का बुनियादी ढांचा अपनी सीमा तक फैला हुआ है, नागरिक सुविधाएं लगातार बढ़ती आबादी के साथ तालमेल बिठाने में विफल हो रही हैं। पानी की कमी और बड़े पैमाने पर अतिक्रमण से लेकर बिगड़ते वायु प्रदूषण और अपर्याप्त स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं तक, आगरा की समस्याएं गहरा रही हैं, लेकिन जन प्रतिनिधियों को चिंता नहीं है।

डॉ. हरेंद्र बताते हैं, "जैसे-जैसे आगरा की आबादी बढ़ती जा रही है, अवैध बस्तियां और झुग्गियाँ तेज़ी से फैल रही हैं, जिससे पहले से सीमित संसाधनों पर और दबाव पड़ रहा है। सार्वजनिक स्थानों, सड़कों और यहां तक कि विरासत क्षेत्रों पर अतिक्रमण बढ़ गया है, जिससे शहर के सौंदर्य और कार्यात्मक परिदृश्य में गिरावट आ रही है।"

उचित शहरी परिवहन योजना की कमी के कारण आगरा की सड़कें यातायात से जाम हो जाती हैं। अतिक्रमण, बेतरतीब पार्किंग और खराब रखरखाव वाली सड़कें समस्या को और बढ़ा देती हैं। ऑटो-रिक्शा और निजी वाहनों पर शहर की निर्भरता अराजकता को बढ़ा रही है, जिसके परिणामस्वरूप यात्रा का समय लंबा होता है, ईंधन की बर्बादी होती है और प्रदूषण बढ़ता है।

वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन, निर्माण धूल और औद्योगिक प्रदूषकों के कारण शहर की वायु गुणवत्ता खतरनाक दर से खराब हो रही है। अनियमित औद्योगिक इकाइयां लगातार चल रही हैं, जिससे वातावरण में जहरीले पदार्थ निकल रहे हैं। इससे न केवल आगरा के निवासियों का स्वास्थ्य खतरे में है, बल्कि इसके विश्व प्रसिद्ध स्मारकों का क्षय भी तेजी से हो रहा है," ये कहना है रिवर कनेक्ट कैंपेन के जुगल किशोर का।

व्यवसाई राहुल राज सुझाव देते हैं "इलेक्ट्रिक बसों, समर्पित बस लेन और पैदल यात्री-अनुकूल क्षेत्रों सहित एक अच्छी तरह से एकीकृत सार्वजनिक परिवहन प्रणाली विकसित की जानी चाहिए। बेहतर यातायात प्रबंधन प्रणाली भीड़भाड़ और प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकती है।"

संभावनाएं और अवसर अनेक हैं, लेकिन राजनैतिक नेतृत्व प्रभावहीन होने की वजह से विकास को दिशा नहीं मिल रही है। जब कर्मठ कार्यकर्ता जमीन से जुड़े पुरुषोत्तम खंडेलवाल को विधायक के रूप में चुना गया तो शहरवासियों को उम्मीद की किरण दिखाई दी थी। लेकिन यमुना बैराज, हाई कोर्ट बेंच आदि मुद्दों पर उनकी चुप्पी रहस्य को गहरा रही है।

कुछ बड़ी उम्मीदें योगेंद्र उपाध्याय से भी थीं कि आगरा विश्वविद्यालय का कायाकल्प होगा। नवीन जैन तो खुद मेयर रहकर आगरा की समस्याओं से अच्छी तरह वाकिफ थे, पर राज्यसभा में आगरा की वेदना को प्रभावी तरीके से उठाने की कोशिश भी नहीं कर रहे हैं।

नगरवासी बार-बार पूछ रहे हैं कि भाजपा की झोली में इतने सारे विधायक और सांसद डालने के बाद भी आगरा की आवाज दबी हुई और लड़खड़ाती सी क्यों है। विपक्ष के सांसद तो न राम के रहे हैं, न सफलता के सुमन खिला सके हैं। फेलियर चहुंमुखी है। समूचा राजनैतिक नेतृत्व आगरा की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा है।

SP_Singh AURGURU Editor