कांग्रेस ने नहीं दिया भाव, अब सपा दिखा रही ताव
पहले मध्य प्रदेश और अब हरियाणा में सपा को कांग्रेस द्वारा एक भी सीट न दिए जाने की प्रतिक्रिया अब यूपी में दस सीटों पर होने वाले उप चुनाव में दिख सकती है। सपा की ओर से संकेत दिए जाने लगे हैं कि उसकी कांग्रेस के साथ पैक्ट में किसी प्रकार की रुचि नहीं है।
लखनऊ। आपको ध्यान होगा कि जब हरियाणा के विधान सभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों के चयन का दौर चल रहा था, तब aurguru.com ने 31 अगस्त 2024 को 'कांग्रेस को यूपी में कुछ लेना है तो दूसरे राज्यों में सपा को भी देना पड़ेगा' शीर्षक एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। यह रिपोर्ट सपा द्वारा कांग्रेस से हरियाणा में मांगी जा रही सीटों को लेकर थी। कांग्रेस ने तब सपा को भाव नहीं दिया था और अब जब यूपी के उप चुनाव होने हैं, सपा ताव दिखाने लगी है।
लोकसभा चुनाव में यूपी में कांग्रेस को साथ लेकर चली समाजवादी पार्टी की इच्छा थी कि कांग्रेस उसे हरियाणा में कम से कम पांच सीटें दे। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा और उनके सांसद बेटे दीपेंद्र हुड्डा ने यह कहकर सपा को ठेंगा दिखा दिया था कि सपा का हरियाणा में क्या आधार है जो उन्हें सीटें दी जाएं। सपा द्वारा महाराष्ट्र में भी 12 सीटों पर दावा ठोका जा रहा है। सपा ने इसकी अपेक्षा भी कांग्रेस से ही की है, लेकिन महाराष्ट्र में भी सपा की उम्मीदें पूरी होती नहीं दिख रही हैं। इससे पहले मध्य प्रदेश के चुनाव में भी कांग्रेस ने सपा को ठेंगा दिखा दिया था।
कांग्रेस के इस रवैये को देख अब समाजवादी पार्टी भी उत्तर प्रदेश के उप चुनाव को लेकर कांग्रेस पर आंखें तरेरने लगी हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के नजदीकी सूत्र कहने लगे हैं कि हरियाणा और दूसरे राज्यों में सपा के पास कुछ नहीं है तो फिर यूपी में भी तो कांग्रेस के पास कुछ नहीं है। संकेत साफ है कि यूपी में दस सीटों पर होने जा रहे उप चुनाव में सीटों के बंटवारे पर कांग्रेस को आइना दिखाएगी। बता दें कि उत्तर प्रदेश में मिल्कीपुर, मझवां, मीरापुर, सीसामऊ, कटेहरी, कुंदरकी, करहल, खैर, गाजियाबाद, फूलपुर विधान सभा सीटों पर जल्द ही उप चुनाव होने हैं। कांग्रेस दस में से पांच सीटें समाजवादी पार्टी से मांग रही है। कांग्रेस ने हरियाणा में जो व्यवहार सपा से किया है, उससे सपा नेतृत्व आहत है और यूपी की दस सीटों के उप चुनाव में सपा नेतृत्व भी कांग्रेस के लिए सीटें छोड़ने के मूड में नहीं है।
अखिलेश यादव के नजदीकी नेता अब यह बात भी खुलकर कहने लगे हैं कि दूरगामी लिहाज से कांग्रेस के साथ पैक्ट सपा के हित में नहीं है। इसमें सपा के अंदर का डर साफ दिखता है। 1984 के चुनाव बाद से प्रदेश के मुस्लिम मतदाता कांग्रेस से दूरी बनाए हुए हैं। अयोध्या का विवादित ढांचा ढहने के बाद तो मुस्लिमों ने कांग्रेस से और ज्यादा दूरी बना ली थी। इससे पहले तक मुस्लिम कांग्रेस का वोट बैंक था। इसी प्रकार कांग्रेस के दूसरे बड़े वोट बैंक दलितों को कांग्रेस के हाथ से बसपा ले उड़ी थी।
कांग्रेस अपने इस पुराने वोट बैंक की वापसी को लेकर ही प्रयासरत है। इसी क्रम में उसने लोकसभा चुनाव में सपा से पैक्ट किया और राज्य में छह सीटें जीत लीं। बता दें कि 2022 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को महज दो प्रतिशत वोट मिले थे। सपा के साथ आने के बाद कांग्रेस का वोट बैंक बढ़ गया। सपा जिस दूरगामी परिणाम की बात कह रही है, उसमें यही डर छिपा हुआ है कि मुस्लिम वोट बैंक फिर से कांग्रेस के पाले में न चला जाए।
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