पीलीभीत टाईगर रिजर्व आइए, गांव वालों संग रहिए, आनंद आएगा!
पीलीभीत टाईगर रिजर्व अब आसपास के गांवों के लोगों के जीवन में खुशहाली लाने जा रहा है। जिन बाघों को लेकर वन कर्मियों और ग्रामीणों के बीच संघर्ष होता रहता था, वे अब घुले मिले दिखेंगे। दरअसल सरकार ने पर्यटकों से जोड़कर गांववासियों के लिए स्वरोजगार की एक अच्छी योजना तैयार की है।
आरके सिंह
बरेली। पीलीभीत टाईगर रिजर्व के बाघों और गांव वालों के बीच अब संघर्ष की नौबत नहीं आएगी। यही बाघ आसपास के गांव वालों के जीवन में खुशहाली लाने वाले हैं। सरकार ने ऐसी योजना पर अमल शुरू कर दिया है जो लोगों को रोजगार देगी। बाघों को देखने पहुंचने वाले पर्यटक उनके रोजगार का जरिया बनेंगे।
देश के किसी भी टाइगर रिजर्व में इस तरह की यह पहली योजना है, जिसमें रिजर्व के आसपास के गांवों में आर्थिक समृद्धि लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इस योजना से पीलीभीत टाईगर रिजर्व के स्टाफ और ग्रामीणों के मघ्य बेहतर सम्बन्ध होंगे। लगातार संवाद रहने से वन्य जंतुओं के हमले काम होंगे।
पीलीभीत टाईगर रिजर्व की पहचान आज देश में नंबर एक टाईगर रिजर्व के रूप में हो रही है। मुख्य वन संरक्षक विजय सिंह ने बताया कि पीलीभीत टाईगर रिजर्व में जाने वालों में अस्सी प्रतिशत टूरिस्ट को बाघ देखने को मिलते हैं। यही लोग पीलीभीत टाईगर रिजर्व ब्रांड एम्बेसडर बनकर उभरे हैं।
यहां इस समय बाघों की संख्या 71 है। पीलीभीत टाईगर रिजर्व को कैट समेत तीन अवार्ड मिल चुके हैं। टाईगर रिजर्व के पड़ोसी गांव वालों को स्वरोजगार की योजना भी शुरू कर दी गयी है, जिसके तहत बीस महिलाओं को सिलाई मशीन उनके जीवकापार्जन के लिए दी गयी हैं।
मुख्य वन संरक्षक कहते हैं, हमारा प्रयास होगा कि हम पर्यटन को स्थानीय रोजगार से जोड़ें। इसके लिए हम प्रयास कर रहे हैं कि पर्यटक होम स्टे में रुकें। इसके तहत वह ग्रामीणों को प्रेरित करेंगे कि वह देसी हट (झोपड़ी) तैयार कराएँगे। झोपड़ी में रोशनी के लिए सौर ऊर्जा लाइट, लेटने के लिए चारपाई, खाने के बर्तन, चूल्हे की रोटी, पतीली की दाल, चावल, मट्ठा, सासों का साग, शुद्ध गन्ना का रस आदि व्यंजन पर्यटकों को परोसे जाएंगे।
साथ ही पर्यटकों को स्थानीय सामान खरीदने को प्रेरित करेंगे। यह सामान वाहन की महिलायें और पुरुष बनाएंगे। उदाहरण के तौर पर घास (कांस) की डलिया, बैठका (पूजा में बैठने का बिछौना), नई डिजायन के कपड़े आदि। नए के डिजायन के कपड़े सिलने का प्रशिक्षण बेहतर कम्पनियों से दिलाया जाएगा। होम स्टे में पर्यटकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी ग्रामीणों को ही दी जाएगी। उससे उनको पैसे भी मिलेंगे।
पर्यटकों को लुभाने के लिए स्थानीय संस्कृति से भी अवगत कराने की योजना है। लोक संस्कृति, नृत्य मंचन से भी धन आएगा। श्री सिंह ने बताया कि वन्य जंतुओं को बीमारी से बचाने के लिए आसपास के गांवों के पालतू जानवरों को मुफ्त में वेक्सिनेशन भी कराई जाएगी।
उनका प्रयास है कि ग्रामीणों को दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में बढ़ाने के लिए बड़ी डेरियों से वार्ता हो रही है। वह दिन दूर नहीं जब क्षेत्र के 72 गांवों के दुग्ध उत्पादकों की सुविधा के लिए बरेली या पीलीभीत में चिलिंग प्लांट लगेगा।
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