आत्महत्या के बारे में धारणा बदलें, आरंभिक संकेतों को पहचान कर रोकी जा सकती है जनहानि
आज विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस है। चिकित्सकों का कहना है कि आत्महत्या के बारे में धारणा का बदलना जरूरी है। यदि किसी व्यकित की बातों को सुना जाए और आरंभिक संकेतों को समझा जाए तो आत्महत्या को रोका जा सकता है।
रामकुमार शर्मा
आगरा। क्या आपको पता है कि हमारे देश में भी आत्महत्या करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। 2018 की तुलना में 2022 में खुद अपनी जान देने वालों की संख्या 27 प्रतिशत बढ़कर एक लाख इकहत्तर हजार हो गई।
प्रसिद्ध मनोरोग चिकित्सक डा. केसी गुरुनानी का कहना है कि हर आत्महत्या करने वाला डिप्रेशन में हो यह जरूरी नहीं है। आत्महत्या करने वाले लोग गुस्से और आवेश में यह कदम उठाते हैं।
डा. गुरुनानी का मानना है कि आज के प्रतियोगी और भौतिकवादी संसार में हर बच्चे की आकांक्षाएं बढ़ गई हैं। सहने की शक्ति कम हो गई है। वे सबकुछ तुरंत पाना चाहते हैं। चाहे वह धन हो, क्लास में प्रथम आने की चाह हो या अथवा किसी साथी का साथ। उन्हें हर कीमत पर वह सब चाहिए जिसकी कामना वे करते हैं।
जब ऐसा नहीं होता तो वह पहले निराश होते हैं फिर गुस्से में भर जाते हैं और आवेश में आकर आत्महत्या जैसा घातक कदम उठा लेते हैं। कुछ लोग तो आत्महत्या से पहले रील भी बनाते हैं। सोशल मीडिया ने एक नया टूल उनके हाथ में दे दिया है।
डा. गुरुनानी के अनुसार प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवाओं पर कोचिंग सेंटर उनकी क्षमता से अधिक भार डाल देते हैं। जब वह परफार्म नहीं कर पाते तो हीन भावना से भर जाते हैं। इस प्रकार के मामलों में साथ में पढ़ने वाले दोस्त बेहतर मदद कर सकते हैं।
यदि वह क्लास नहीं अटैंड कर रहा। किसी से बात नहीं कर रहा। मेस में भी नियमित भोजन नहीं कर रहा तो इसकी सूचना काउंसलर को और पेरेंट्स को दी जानी चाहिए।
एसएन मेडीकल कालेज के मनोरोग चिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष डा. विशाल सिन्हा मानते हैं कि आत्महत्या को रोका जा सकता है। अगर उसके संकेत कोई समझ सके। इस साल इस दिवस की थीम भी चेंज द नरेटिव है।
यह धारणा कि कमजोर लोग, हारे हुए लोग आत्महत्या करते हैं, गलत है। कुछ लोग जब इस तरह की बात करते हैं तो घर के लोग या दोस्त ज्ञान देने लगते हैं कि आत्महत्या कमजोरी है, साहसी बनो, सामना करो। इस प्रकार की बातें नहीं करनी चाहिए। वरन उस व्यक्ति की बातों को सुनना चाहिए।
डा. सिन्हा ने बताया कि हर उम्र के लोग आत्महत्या से पहले अलग तरह के संकेत देते हैं। बुजुर्ग जब आत्महत्या करने की सोचते हैं तो प्रोपर्टी का बंटवारा करने लगते हैं, अथवा वसीयत लिखने की कहते हैं। दूर के रिश्तेदार से मिलने की इच्छा जताते हैं।
मिडिल एज के लोग आत्महत्या से पहले ज्यादा प्रीमियम वाली बीमा पालिसी लेने की कोशिश करते हैं। पत्नी अथवा बच्चों को अपने इनवेस्टमेंट के बारे में , अपनी पैत्रक या खुद की प्रोपर्टी के बारे में अचानक बताना शुरू कर देते हैं।
कम उम्र के लोग अचानक चिड़चिड़े हो जाते हैं। अकेले रहने लगते हैं। बेवजह गुस्सा करने लगते हैं। अधिकतर आत्महत्या करने वाले युवा आत्महत्या से पहले गूगल अथवा अन्य किसी सर्च इंजन पर आत्महत्या के तरीके भी देखते हैं।
मातापिता को चाहिए कि बच्चे के व्यवहार में बदलाव आने पर उसका मोबाइल, लेपटाप अथवा टेब चेक करें कि कहीं इस प्रकार का कोई कंटेंट तो बच्चा नहीं देख रहा है।
डा. सिन्हा का कहना है कि आत्महत्या करने वाले लोगों में से साठ से सत्तर प्रतिशत लोग अपनी बात रखने की कोशिश करते हैं। किंतु जब कोई उन्हें नहीं समझ पाता तब वे यह कदम उठा लेते हैं।उनकी बातों को सुना जाए तो उनको ऐसा कदम उठाने से रोका जा सकता है।
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