भेड़ियों के ग्रुप लीडर को पकड़ लो, बहराइच में आतंक खत्म हो जायेगा
अल्फा भेड़िया को पकड़ने के लिए संबंधित क्षेत्र में आईआर (इंफ्रा रेड) ट्रैप कैमरे लगाए जाएं। पिंजरे में पड्डे या अन्य किसी पशु के बजाय गर्भवती मादा पशु को रखा जाए। उसकी गंध सूंघकर भेड़िया उसके पास जल्दी पहुंचेगा।
-आरके सिंह-
बरेली। बहराइच के भेड़ियों के आतंक की राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हो रही है। भेड़ियों की गतिविधियों पर वन्य जंतु वैज्ञानिक भी नजर ही नहीं रख रहे, अध्ययन भी कर रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि भेड़िये आमतौर पर मनुष्यों पर हमला नहीं करते। उनके झुंड या कुनबे पर कोई हमला कर दे तो अल्फा भेड़िये (मुखिया) के नेतृत्व में वे बदला लेने निकल पड़ते हैं। अल्फा भेड़िया जब तक पकड़ से बाहर रहेगा, उसके समूह के भेड़िये हमले करते रहेंगे। अल्फा भेड़िया (ग्रुप लीडर ) के पकड़ में आते ही बहराइच में उनका आतंक खत्म हो जायेगा।
बहराइच समेत आसपास के जिलों में हुए भेड़िये के हमलों का अध्ययन कर रहे भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान इज्जतनगर के वन्य प्राणी उद्यान के प्रभारी डॉ. अभिजीत पावड़े का सुझाव है कि अल्फा भेड़िया को पकड़ने के लिए संबंधित क्षेत्र में आईआर (इंफ्रा रेड) ट्रैप कैमरे लगाए जाएं। पिंजरे में पड्डे या अन्य किसी पशु के बजाय गर्भवती मादा पशु को रखा जाए। उसकी गंध सूंघकर भेड़िया उसके पास जल्दी पहुंचेगा।
लीडर को घायल देख हमलावर हो रहे भेड़िए
डॉ. अभिजीत पावड़े को इस बात की भी आशंका है कि बहराइच में किसी व्यक्ति ने अल्फा भेड़िये (भेड़ियों का लीडर) पर जानलेवा हमला किया होगा। जख्मी हालत में वह कुनबे में पहुंचा होगा। इसके बाद मनुष्यों से खतरा भांपकर भेड़ियों झुंड ने हमला शुरू किया होगा। इस पर अंकुश लगाने के लिए सभी भेड़ियों को पकड़ने की जरूरत नहीं। अल्फा भेड़िये के पकड़ में आने से हमले थम सकते हैं। डॉ. पावड़े के मुताबिक भेड़िये समूह में रहते हैं। जब मनुष्यों ने इन्हें रोकने का प्रयास किया तो खतरा भांपकर इनमें से कोई भेड़िया दूसरे जिले में पहुंचा होगा। वहां उसका किसी मनुष्य से टकराव हो गया होगा। डॉ. पावड़े के मुताबिक इसमें भेड़िये ने भी जवाबी हमला किया होगा।
प्राकृतिक आवास व बाघों ने शिकार छीने
डॉ. पावड़े ने घटते वन क्षेत्र, बाघों की बढ़ती तादाद को भी भेड़ियों के आक्रामक होने की वजह बताई। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक आवास के साथ बाघों ने उनका शिकार भी छीन लिया। खुद शिकार न बन जाएं, इसलिए भेड़िये जंगल के बाहर निकल रहे हैं। वहां उनका सामना भेड़, बकरियों और मनुष्यों से हो रहा है। भेड़, बकरियों को आहार बनाकर ये अपनी भूख मिटा रहे हैं। वहीं, खतरे का अहसास होने पर वे मनुष्यों पर भी हमला कर रहे हैं।
डेढ़ सौ वर्ष में कई बार आदमखोर हुए हैं भेड़िए
आईवीआरआई के पशु पोषण विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. असित दास ने बताया कि बहराइच और अन्य जिलों में हुई घटनाएं पहली बार नहीं हो रहीं। इससे पूर्व भी डेड़ सौ वर्षों में कई बार भेड़िये आदमखोर हुए हैं। इनमें कई लोगों की जान भी गई। उन्होंने बताया कि वर्ष 1878 में भेड़ियों ने उत्तर प्रदेश में 624 लोगों पर हमला किया। वर्ष 1900 में मध्य प्रदेश (सेंट्रल प्रोविंस) में 285 लोगों पर भेड़ियों का कहर बरपा। वर्ष 1900 में ही बंगाल में 14 लोगों पर हमला हुआ। वर्ष 1910-1915 तक दिल्ली के हजारीबाग में 315 लोगों पर भेड़ियों ने हमला किया। वर्ष 1980-1986 तक हजारीबाग में ही 120 बच्चों पर इन जानवरों ने हमला किया।
What's Your Reaction?