'किसी को मियां-तियां या पाकिस्तानी कहने पर केस नहीं चला सकते', मुस्लिम शख्स की याचिका पर बोला सुप्रीम कोर्ट
मुस्लिम सरकारी कर्मचारी ने कहा कि आरोपी ने बहस के दौरान उन पर धर्म आधारित टिप्पणी कर उन्हें अपमानित किया और भड़काने की कोशिश की। 2020 में सरकारी कर्मचारी ने दर्ज करवाया था केस।

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति को 'मियां-तियां' और 'पाकिस्तानी' कहने के आरोपी को राहत दी है। कोर्ट ने धार्मिक भावना आहत करने के आरोप में दर्ज केस निरस्त कर दिया है। जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने इस तरह की बात कहने को असभ्यता कहा है, लेकिन उसके चलते मुकदमा चलाने को सही नहीं माना है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, 'इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी को मियां-तियां या पाकिस्तानी कह कर अपमानित करना असभ्यता है, लेकिन यह धारा 298 (धार्मिक भावना को चोट पहुंचाने की नीयत से कुछ कहना) की श्रेणी में नहीं आएगा। झारखंड के बोकारो के रहने वाले याचिकाकर्ता को जिस केस में राहत मिली है, उसे 2020 में एक मुस्लिम सरकारी कर्मचारी ने दर्ज करवाया था।
बोकारो सेक्टर 4 थाने में दर्ज यह एफआईआर चास के सब डिविजनल ऑफिस में उर्दू ट्रांसलेटर और क्लर्क के पद पर काम कर रहे कर्मचारी ने दर्ज करवाई थी। कर्मचारी ने कहा था कि वह एडिशनल कलेक्टर के आदेश पर आरटीआई आवेदन का जवाब व्यक्तिगत रूप से पहुंचाने गया था। आरोपी ने बहुत बहस करने के बाद दस्तावेज स्वीकार किए। उस दौरान उसने धर्म आधारित टिप्पणी कर उसे अपमानित किया और भड़काने की कोशिश की।
पुलिस ने इस मामले में आईपीसी की धारा 353 (बल का इस्तेमाल कर सरकारी कर्मचारी को काम से रोकना), 504 (शांति भंग करने के उद्देश्य से किसी को अपमानित करना) और 298 (धार्मिक भावना को चोट पहुंचाने की नीयत से कुछ कहना) की धाराएं लगाई थीं. लगभग 80 साल की उम्र वाले आरोपी को बोकारो की निचली अदालत से लेकर झारखंड हाई कोर्ट तक राहत नहीं मिली। अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में बल प्रयोग या शांति भंग जैसी कोई बात सामने नहीं आती। जहां तक 'मियां-तियां' कह कर अपमान की बात है, उसके आधार पर भी धारा 298 लगाना सही नहीं था।