सात नदियों वाले आगरा की प्यास बुझा रहा बुलंदशहर
विश्व नदी दिवस पर विशेष : इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहा जाएगा। जिस जिले में सात-सात नदियां बहती हों। उस जिले में पानी 130 किमी दूर बुलंदशहर के पालड़ा फाल से लाया जाए। यमुना जल में प्रदूषण इतना कि नहाने की तो छोड़िए , यमुना जल फसलों की सिंचाई के लायक भी नहीं
रामकुमार शर्मा
आगरा। यमुना चंबल सहित सात नदियों का शहर आगरा प्यासा है। एक समय था जब यहां बहने वाली नदियों की कलकल को देखते हुए मुगल बादशाहों ने आगरा को अपनी राजधानी बनाया। यमुना नदी का जल मार्ग व्यापार का प्रमुख साधन था।
आज हालत यह है कि शहर की प्यास बुझाने के लिए 130 किमी दूर बुलंदशहर के पालड़ा फाल से गंगाजल लाया गया है।
बात यदि यमुना जल की जाए तो एक समय था जब यही पानी पेयजल के रूप में शहर में सप्लाई किया जाता था। आज यह पानी इतना प्रदूषित हो चुका है कि पीने की बात तो छोड़िए यह पानी नहाने के काबिल भी नहीं रहा।
पिछले साल हुए वाटर साइंस के एक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि यमुना नदी सबसे अधिक प्रदूषित दिल्ली के निजामउद्दीन रीजन तथा आगरा रीजन में है। आगरा में यमुना जल में सात लाख से लेकर दो करोड़ अस्सी लाख कोलीफार्म बैक्टीरिया हैं।
ज्ञात हो कि कालीफार्म बैक्टीरिया मानव मल में पाए जाते हैं। इसका सीधा मतलब यमुना में सीवेज का गिरना है। यमुना जल का पीएच, बीओडी, सीओडी मानक से कई गुना अधिक हैं।
यही नहीं इंडस्ट्रियल वेस्ट यमुना में बहाए जाने के कारण यमुना जल में हेवी मेटल जैसे क्रोमियम, कैडमियम, जिंक, मरकरी, लैड, बेरियम, सेलिनियम, थैलियम और आर्सेनिक की मात्रा मानक से कई गुना अधिक है। अध्ययन में कहा गया है कि नहाने को भी भूल जाइए, इस पानी से जिन फसलों या सब्जियों की सिंचाई की जाएगी, वे भी प्रदूषित होंगी।
बात करते हैं उन सात नदियों की जो आगरा से होकर बहती है। यमुना नदी नगला अकोस से आगरा की सीमा में प्रवेश करती है और बटेश्वर होती हुई इटावा की ओर चली जाती है।
1024 किलोमीटर लंबी चंबल नदी केवल 33 किलोमीटर लंबाई में उत्तरप्रदेश में बहती है। बाह, पिनाहट होते हुए यह नदी इटावा के पचनदा में यमुना में मिल जाती है।
तांतपुर-जगनेर में किवाड़ नदी सोनी खेरा से निकलकर राजस्थान में बहने के बाद वापस आगरा में जगनेर के पास देवरी में प्रवेश करती हुई उटंगन नदीं में मिलती है। बारिश के दिनों मे ही इस नदी में पानी नजर आता है।
खारी नदी फतेहपुर सीकरी के तेरहमोरी बांध से निकल कर मलपुरा, सैंयां, इरादतनगर होते हुए बाह-फतेहाबाद रोड पर अरनौटा के पास उटंगन नदी में मिलती है। यह नदी भी बारिश के मौसम को छोड़कर पूरे साल सूखी रहती है।
जिसे शहर के लोग झरना नाला के नाम से जानते हैं, असल में यह करबन नदी है। जो बुलंदशहर की खुर्जा तहसील से अलीगढ़, हाथरस होते हुए एत्मादपुर तहसील में झरना नाला के नाम से यमुना नदी में मिल जाती है।
उटंगन नदी को राजस्थान में गंभीर नदी कहा जाता है। आगरा में इसे उटंगन कहते हैं। करौली के पास हिंडौन की अरावली की पहाड़ियों से निकलकर यह नदी आगरा में खेरागढ़ व फतेहाबाद होते हुए यमुना में मिलती है।
जयपुर की बैराठ पहाड़ियों दौसा, भरतपुरजिले से रूपवास होकर सैंया में प्रवेश करने वाली नदी को बाणगंगा भी कहा जाता है। कुछ लोग इसे उटंगन नदी ही मानते हैं। यह फतेहाबाद में यमुना में मिलती है।
पर्यावरण विद ब्रज खंडेलवाल का कहना है कि राष्ट्रीय नदी आयोग बनाकर ही इन नदियों का संरक्षण किया जा सकता है। सबसे पहली जरूरत उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में बहने वाली नदियों को आपस में जोड़ने की है।
यदि यह नदियां आपस में जुड़ जाएं तो इनमें हर समय पानी रहेगा। साथ ही नदियों में होने वाले प्रदूषण को रोकना जरूरी है वरना सभी नदियां प्रदूषित हो जाएंगी।
यमुना व चंबल सहित सभी नदियों से सिल्ट को निकालना जरूरी है ताकि नदियां गहरी हो जाए और बरसात का पानी इन नदियों में रुके। इन सातों नदियों का यदि संरक्षण किया जाए तो आगरा जिले को पानी की समस्या से निजात मिल सकती है।
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