कानून इसलिए तोड़ दिया क्योंकि पेड़ काटने की अनुमति मुश्किल भरी थी
कान्हा की नगरी वृंदावन में सैकड़ो की संख्या में बड़े-बड़े दरख़्त बिल्डर्स के गठजोड़ ने बेखौफ होकर इसीलिए कटवा दिए क्योंकि शायद ये लोग जानते थे कि कानून तोड़ने से कहीं अधिक मुश्किल था सुप्रीम कोर्ट से पेड़ काटने की परमिशन लेना।
मथुरा| कान्हा की नगरी वृंदावन में सैकड़ो की संख्या में बड़े-बड़े दरख़्त बिल्डर्स के गठजोड़ ने बेखौफ होकर इसीलिए कटवा दिए क्योंकि शायद ये लोग जानते थे कि कानून तोड़ने से कहीं अधिक मुश्किल था सुप्रीम कोर्ट से पेड़ काटने की परमिशन लेना। पेड़ काटने के अपराध में किसी ऐसी कठोर सजा का प्रावधान नहीं है जिसकी वजह से ये लोग खौफ खाते।
सैकड़ों वृक्षों की बलि लेने वालों की तीन दिन बाद भी पहचान नहीं हो सकी है। वन विभाग की ओर से पुलिस में सबसे पहले रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। अब मथुरा वृंदावन विकास प्राधिकरण, विद्युत विभाग ने भी रिपोर्ट दर्ज करा दी है। एक मुकदमा पुलिस ने अपनी ओर से भी लिखा है। गेंद अब पुलिस के पाले में है।
वृंदावन ही नहीं समूचे ब्रज के लोग इस बर्बरतापूर्ण कृत्य से आहत हैं। हर कोई चाहता है कि दोषियों को ऐसा दंड मिले कि भविष्य में कोई इस तरह का कृत्य करने की हिम्मत भी ना कर सके।
अब तक की प्रगति रिपोर्ट को देखकर ऐसा लगता है कि प्रशासनिक तंत्र इस मामले के ठंडा होने का इंतजार कर रहा है। अभी लोगों में भारी गुस्सा है इसलिए आनन फानन में एफआईआर समेत अन्य कार्यवाही की जा रही है।
अब तक दर्ज हुए चार मुकदमों में वन विभाग ने जहां पेड़ काटने की रिपोर्ट लिखाई है तो पुलिस ने चोरी की रिपोर्ट दर्ज की है। मथुरा वृंदावन विकास प्राधिकरण की ओर से इस बात की रिपोर्ट लिखाई गई कि संबंधित जमीन और सड़क के बीच में लगाई गई फेंसिंग को पेड़ काटने के दौरान हटाया गया। विद्युत विभाग की ओर से दर्ज रिपोर्ट में संबंधित क्षेत्र के तार काटकर विद्युत आपूर्ति भंग करने का उल्लेख है।
सरकारी विभागों की ओर से दर्ज कराए गए मुकदमे अपना दामन बचाने की कोशिश ज्यादा नजर आती है। सभी संबंधित विभागों को पता है कि यह प्रकरण बहुत जल्द टीटीजेड अथॉरिटी के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचना है। सुप्रीम कोर्ट को लेकर ही हर विभाग खौफजदा है।
जिस 35 एकड़ प्राइवेट जमीन से पेड़ काटे गए, वह कोलकाता के डालमिया परिवार की है। यह तो तय है कि पेड़ कटवाने के लिए डालमिया परिवार तो वृंदावन आया नहीं होगा। यह कृत्य तो स्थानीय भू माफिया सरीखे लोगों का किया हुआ है जिन्हें कानून का खौफ कतई नहीं रहा होगा।
पेड़ काटने में नहीं है कठोर सजा
पचास पचास पुराने पीपल, बरगद, नीम, कदंब समेत अन्य वृक्षों को कटवाने वालों ने कानून तोड़ने का रास्ता इसलिए चुना क्योंकि वे जानते थे कि इस अपराध में कठोर सजा का प्रावधान नहीं है। जुर्माना या फिर बहुत मामूली सजा होती है। इसमें भी बचने की पूरी पूरी गुंजाइश होती है क्योंकि सजा के स्तर तक पहुंचाने वाली एजेंसियां ही केस को कमजोर कर देती हैं। शायद इसीलिए पूरे इरादे के साथ यह अपराध करने का दुस्साहस किया गया।
बिल्डर्स और माफिया के गठजोड़ ने इस बर्बर कृत्य के लिए आधी रात के बाद का समय चुना। जब सभी लोग सो चुके थे तब वहां दर्जनों की संख्या में जेसीबी और पोकलेन मशीन पहुंचीं। साजिश के तहत क्षेत्र की विद्युत आपूर्ति भंग की गई। अंधेरा होते ही मशीनों के दैत्याकार पंजे एक-एक कर पेड़ों को जमींदोज करने लगे। पेड़ों की कटाई के दौरान 35 एकड़ जमीन की प्लॉट के चारों तरफ बाउंसर भी तैनात किए गए थे ताकि आसपास की बस्ती का कोई व्यक्ति वहां पहुंचकर काम में रुकावट पैदा ना कर सके। मतलब माफिया ने फूलप्रूफ प्लान बनाकर इसे अंजाम तक पहुंचाया।
अपनी गर्दन बचाने के लिए सरकारी विभाग भले ही मुकदमा दर्ज कर खुद को बेदाग बताने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ब्रज के लोग इस बात को शायद ही मानेंगे कि बगैर संबंधित विभागों की मिलीभगत के इतने सारे पेड़ कट गए।
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