हरियाणा में भाजपा के 47 बागियों का लड़ना गले नहीं उतर रहा
-एस पी सिंह- चंडीगढ़। हरियाणा के विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा के 47 बागी प्रत्याशी मैदान में हैं। कुल 90 सीटों में से 47 यानि आधे से ज्यादा। क्या मतलब हो सकता है इसका। आप सोच रहे होंगे कि टिकट न मिलने पर भाजपा के नेता बागी होकर चुनाव लड़ रहे हैं। कुछ प्रत्याशियों तक तो यह सही हो सकता है, लेकिन अधिकांश बागी भाजपाईयों के बारे में शायद यह सच नहीं है।
राजनीति के गलियारों से छन-छन कर आ रही खबरों को सच मानें तो यह भाजपा की चुनावी रणनीति का एक हिस्सा है। दर्जनों की संख्या में जो भाजपा नेता पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं, वे भाजपा के नेताओं की सहमति से ही चुनाव मैदान में डटे हुए हैं।
दरअसल लगातार दस साल सत्ता में रहने के बाद भाजपा को इस बार सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है। यहां तक कि भाजपा समर्थक मतदाताओं में भी एंटी इनकंबेंसी देखने को मिल रही है।
भाजपा नेतृत्व के सामने यह चुनौती थी कि अपने समर्थक मतदाताओं को कांग्रेस के पाले में जाने से कैसे रोका जाए। इसका एक तोड़ यह निकाला गया कि खतरे वाली कुछ सीटों पर अपने ही लोगों को निर्दलीय रूप से चुनाव मैदान में उतार दिया जाए।भाजपा के रणनीतिकारों की सोच है कि जो वोटर भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी को वोट नहीं देना चाहते, उनके वोट बागी भाजपा प्रत्याशी को मिल जाएं। इस प्रकार इन मतदाताओं को कांग्रेस के पाले में जाने से रोका जा सकता है।
भाजपा सांसद नवीन जिंदल की मां सावित्री जिंदल हिसार जिले की एक विधानसभा सीट से भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ बागी होकर चुनाव लड़ रही हैं। यह सही है कि सावित्री जिंदल वरिष्ठ नेता हैं। कांग्रेस से कई बार विधायक चुनी गई हैं और हुड्डा सरकार में मंत्री भी रही हैं। कुछ समय पहले ही सावित्री जिंदल के पुत्र नवीन जिंदल ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा की टिकट पर हरियाणा से लोकसभा का चुनाव लड़ा था और वह सांसद भी चुन लिए गए हैं।
ऐसे में क्या यह बात गले उतरती है कि सावित्री जिंदल अपने बेटे के पॉलिटिकल करियर को दांव पर लगाकर भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी खिलाफ चुनाव लड़ें। सावित्री जिंदल के निर्दलीय चुनाव लड़ने का मतलब यह है वह कांग्रेस के मतों में विभाजन करेंगी और इसका लाभ भाजपा उठाने की कोशिश करेगी।
सावित्री जिंदल समेत कुल 47 बागी भाजपा नेता पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ विभिन्न सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं। 20 साल तक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे रामविलास शर्मा ने भी इस बार टिकट न मिलने पर निर्दलीय तौर पर अपनी सीट से नामांकन कर दिया था। इससे भाजपा में खलबली मच गई थी। इसका गलत संदेश जा रहा था। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने रामविलास शर्मा को मनाकर अंततः चुनाव मैदान से हटा लिया है। अन्य बागी प्रत्याशियों के बारे में इस तरह के प्रयास भाजपा नेताओं की तरफ से नहीं किए गए।
क्या इससे यह संकेत नहीं मिलता कि बागियों में से तमाम प्रत्याशी भाजपा नेतृत्व के इशारे पर ही अपने समर्थक मतदाताओं को कांग्रेस की ओर जाने से रोकने के लिए ही चुनाव मैदान में हैं। यह चर्चा इसलिए भी जोर पकड़ती जा रही है क्योंकि पहली बार भाजपा के इतने ज्यादा बागी प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं।