हरियाणा के सैकड़ों निर्दलीयों में 91 हैं खास, ये गुल जरूर खिलाएंगे
हरियाणा का चुनाव इस बार कई कई मायने में रोचक है। यहां के बड़े नेताओं ने तमाम सीटों पर अपने ही समर्थकों को बागी के तौर पर उतार रखा है जो किसी को जिताने और किसी को हराने की रणनीति है।
एसपी सिंह
चंडीगढ़। हरियाणा विधानसभा चुनाव के मैदान में यूं तो निर्दलीयों की संख्या सैकड़ों में है, लेकिन इनमे से 91 निर्दलीय उम्मीदवार चर्चा में हैं। राजनीतिक पंडित भी मान रहे हैं कि ये कुछ न कुछ गुल खिलाएंगे। इसकी वजह ये है कि ये निर्दलीय बड़े कद वाले हैं। कोई पूर्व मंत्री है तो कोई पूर्व विधायक। कोई किसी बोर्ड या निगम का चेयरमैन रह चुका है।
सबसे बड़ी बात कि ये निर्दलीय किसी न किसी बड़े राजनीतिक दल से जुड़े रहे हैं और इस बार टिकट न मिलने पर बागी होकर चुनाव लड़ रहे हैं। कुछ लड़ रहे हैं तो कुछ लड़ाए जा रहे हैं। इन्हें लड़ाने के पीछे भी दूर की सोच है। इनमें से बहुतेरे निर्दलीय जीतेंगे भी और जो नहीं जीतेंगे वे किसी दूसरे की हार और जीत की वजह बनेंगे। यह भाजपा ही नहीं कांग्रेस की भी रणनीति है।
राज्य के गठन के बाद से ही हरियाणा की राजनीति में शायद ही कोई ऐसा चुनाव रहा हो जिसमें निर्दलीयों ने अपना लोहा ना मनवाया हो। इस बार के चुनाव में दलीय बागियों की संख्या पिछले चुनाव की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही है। निर्दलीयों में से 47 भाजपा के बागी हैं तो 41 प्रत्याशियों ने कांग्रेस से बगावत कर अपने बूते चुनाव लड़ने की ठानी है।
हालांकि इन दो बड़े दलों के अलावा भी राज्य की राजनीति में कुछ ऐसे दिग्गज हैं जो हवा किसी भी पार्टी की हो, वे अपना चुनाव निकाल लेते हैं। हरियाणा की राजनीति के जानकार वरिष्ठ पत्रकार सूरजमल कहते हैं, 'हरियाणा में इस बार भी निर्दलीय जीत कर आएंगे। राज्य की 38 सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी सीधे तौर पर असर डाल रहे हैं।'
हरियाणा में इस बार चुनाव मैदान में निर्दलीय के तौर पर ताल ठोक रहे प्रमुख प्रत्याशियों में भाजपा सांसद नवीन जिंदल की मां सावित्री जिंदल, पूर्व मंत्री छत्रपाल और बच्चन सिंह आर्य, अंबाला से सरवरा, फरीदाबाद से ललित नागर, बल्लभगढ़ से शारदा राठौर समेत कई और ऐसे नाम हैं जो हरियाणा में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं।
पूर्व मंत्री गोपाल कांडा ने भी अपनी पार्टी बनाई हुई है और वह अपने गृह जनपद में अपने भाई तथा परिवार के अन्य लोगों को हर बार चुनाव लड़ाते हैं। गोपाल कांडा स्वयं भी इस बार चुनाव मैदान में हैं। कांडा अब तक चुनाव जीतते भी रहे हैं।
हरियाणा कांग्रेस में भूपेंद्र हुड्डा और शैलजा कुमारी के गुटों की खींचतान जगजाहिर है। इस बार के चुनाव में हुड्डा ज्यादातर सीटों पर अपने समर्थकों को टिकट दिलाने में सफल रहे हैं। शैलजा समर्थकों को 13 सीटों पर टिकटें मिली हैं। बताया जा रहा है कि इन 13 सीटों पर भी हुड्डा समर्थक निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। इससे शैलजा क्षुब्ध हैं क्योंकि पार्टी के बागी शैलजा समर्थक प्रत्याशियों के लिए खासी चुनौतियां पैदा कर रहे हैं।
हुड्डा ने इस रणनीति के साथ अपने लोगों को शैलजा समर्थकों के खिलाफ मैदान में उतारा है कि अगर शैलजा के पास विधायक ही नहीं होंगे तो वह मुख्यमंत्री पद पर दावा कैसे कर पाएंगी।
भाजपा की नजर भी हरियाणा की 15 ऐसी सीटों पर है जहां निर्दलीय दमदारी से अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं। सूचनाएं तो यहां तक हैं कि भाजपा इन निर्दलीयों को वित्तीय मदद भी कर रही है।
बता दें कि हरियाणा में निर्दलीय हमेशा 6 से 10 सीटें तक जीतते रहे हैं और चुनाव बाद बनने वाली सरकारों में इन निर्दलीयों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पिछले चुनाव में भाजपा जब 40 सीटों पर सिमट गई थी तो जेजेपी भाजपा को समर्थन देने के लिए मजबूर इसलिए हो गई थी क्योंकि उसे डर था भाजपा उसके विधायकों को तोड़ ना ले। जेजेपी के भाजपा से अलग होने के बाद भी पहले खट्टर और फिर सैनी सरकार इसीलिए बची रही क्योंकि उसे निर्दलीयों का समर्थन प्राप्त था।
इसी प्रकार 2009 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 40 सीटें मिली थीं। तब कांग्रेस ने अपनी सरकार बनाने के लिए पूर्व सीएम भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई की पार्टी के 6 में से पांच विधायक तोड़ लिए थे।
कांग्रेस और भाजपा की ओर से सारी चुनावी बिसातें यह सोचकर बिछाई जा रही हैं कि चुनाव के बाद के नतीजों में ऊंच-नीच हो, तब भी अपनी सरकार बना लें। इसी रणनीति के चलते इस बार के चुनाव में निर्दलीय महत्वपूर्ण हो गए हैं।
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