आगरा क्लब विवाद ऐसा उलझा कि सुलझ ही नहीं पा रहा
शहर के डेढ़ सौ साल पुराने प्रतिष्ठित और एतिहासिक आगरा क्लब में वार्षिक सभा के दौरान उठा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। बैठक पर बैठक हो रही हैं, लेकिन उलझन सुलझ नहीं रही। अब पांच अक्टूबर को होने वाली बैठक पर सभी की नजरें हैं।
आगरा। अभी तक सर्व सहमति से चलने वाला शहर का ऐतिहासिक आगरा क्लब इस बार ऐसे विवादों में फंस गया है कि मामला निपट ही नहीं पा रहा है। 30 सितंबर के बाद क्लब की अध्यक्षता एयर कमोडोर के पास आनी है, लेकिन अभी तक सब कुछ अनिश्चित सा दिख रहा है। अब क्लब की आगामी पांच अक्टूबर को बुलाई गई अगली बैठक पर सभी की नजर है।
क्लब की तीन दिन पहले हुई वार्षिक सभा में बैलेटिंग कमेटी और मैनेजमेंट कमेटी के लिए आठ-आठ डाइरेक्टर चुने जाने की प्रक्रिया हुई थी। बैलेटिंग कमेटी के लिए नौ नामांकन आए थे। एक नामांकन वापस होने के बाद बैलेटिंग कमेटी के आठों डाइरेक्टर निर्विरोध चुन लिए गए थे।
मैनेजमेंट कमेटी के चार डाइरेक्टर्स पर है विवाद
विवाद खड़ा हुआ मैनेजमेंट कमेटी के लिए आठ डाइरेक्टर्स की चुनाव प्रक्रिया के दौरान। मैनेजमेंट कमेटी में एयरफोर्स और आर्मी के दो-दो डाइरेक्टर चुन लिए गए। सिविल मेंबर्स कोटे से तीन डाइरेक्टर चुने जाने थे और एक डाइरेक्टर जिला प्रशासन का चुना जाना था। चुनाव के वक्त सदस्यों को पता चला कि प्रशासन की ओर से कोई नामांकन ही नहीं था। इस पर प्रशासन कोटे के डाइरेक्टर की जगह एक सिविल मेंबर का नामांकन दाखिल करा दिया गया। क्लब संविधान के प्रावधान के अनुसार सिविल मेंबर्स कोटे के तीन डाइरेक्टर होते हैं। सिविल मेंबर्स की ओर से जिन्होंने तीन नामांकन दाखिल किए थे, उनकी निर्धारित फीस समय पर जमा नहीं हुई थी।
इसी आधार पर ज्यादातर सदस्यों ने मांग की कि सिविल मेंबर्स की ओर से दाखिल चारों नामांकनों को खारिज कर नए सिरे से नामांकन मांगे जाएं। अधिकांश सिविलियन मेंबर्स, प्रशासन और एयरफोर्स के सदस्य इस मांग पर एकमत थे, लेकिन आर्मी की ओर से इन्हीं नामांकनों से चुनाव की बात कही जा रही थी। इस बात को लेकर बैठक में खूब हंगामा हुआ। बगैर निर्णय के बैठक खत्म हो गई। अब आज की स्थिति में ये साफ नहीं है कि सिविल मेंबर्स कोटे के चार डाइरेक्टर्स का चुनाव मान लिया गया है या फिर अटक गया है।
प्रशासन को क्यों अनदेखा किया गया?
इधर प्रशासन की ओर से बैठक में पहुंचे एडीएम प्रोटोकाल और एडीएम सिटी की आपत्ति थी कि क्लब के जब क्लब के संविधान में दोनों कमेटियों में प्रशासन के एक-एक डाइरेक्टर का प्रावधान है तो उनके कोटे से सिविल मेंबर का नामांकन क्यों स्वीकार कर लिया गया। बताया जा रहा है कि तत्कालीन डीएम के तबादले की वजह से प्रशासन की ओर से क्लब डाइरेक्टर के लिए नाम प्रस्तावित नहीं किये जा सके थे।
वार्षिक सभा में डिसिप्लेन कमेटी क्यों नहीं बनी?
वार्षिक सभा में 12 बिंदुओं को सदस्यों के विचारार्थ रखा गया था। पिछली वार्षिक सभा के मिनिट्स पर ही बहस शुरू हो गई थी। सदस्यों को इस बात पर भी आपत्ति थी कि पिछली बैठकों जो सात सुझाव सदस्यों ने दिए थे, उन्हें मूर्तरूप नहीं दिया गया। डाइरेक्टर्स रिपोर्ट पर भी सदस्यों ने आपत्तियां उठाईं। एक मांग यह भी उठी कि क्लब के आडिट के लिए एक्सटर्नल आडीटर्स को भी मौका मिलना चाहिए। डिसिप्लेन कमेटी का चुनाव वार्षिक सभा में न कराने पर भी सदस्यों को आपत्ति थी। सदस्यों का कहना था कि डिसिप्लेन कमेटी ऐसी होनी चाहिए जो क्लब के पदाधिकारियों के दबाव से मुक्त हो।
सबसे ज्यादा बवाल हुआ क्लब के पदाधिकारियों का कार्यकाल एक वर्ष से दो वर्ष करने के प्रस्ताव का। बैठक में मौजूद दो तिहाई सदस्यों ने इसे एकमत से खारिज कर दिया। सदस्यों का कहना है कि आर्मी के सदस्य क्लब पर इस साल भी एकाधिकार बनाए रखने के लिए यह प्रस्ताव लाए हैं। प्रशासन, सामान्य सदस्यों के अलावा एयरफोर्स ने भी इसका कड़ा विरोध किया तो यह प्रस्ताव पास नहीं हो सका।
वार्षिक सभा में उठे विवादों के बाद दूसरे दिन फिर से क्लब की बैठक बुलाई गई। इस बैठक में भी खूब गर्मागर्मी हुई। सिविल मेंबर डाक्टर कौशल नारायण शर्मा, प्रदीप वार्ष्णेय, प्रमोद खंडेलवाल और मुकेश जैन ने सिविलियन कोटे से डाइरेक्टर के लिए भरे गए चारों नामांकनों को खारिज कर फिर से चुनाव की मांग की। मुकेश जैन ने कुछ बोलने की कोशिश की तो उन्हें यह कहते हुए रोक दिया गया कि आप कारपोरेट मेंबर हो, आपको बोलने का अधिकार नहीं। इस पर मुकेश जैन बैठक का बहिष्कार कर बाहर निकलने लगे। जाते-जाते उन्होंने कैमरे के सामने अपनी बात कहने की कोशिश की, लेकिन उन्हें फिर से रोक दिया गया।
शुक्रवार की बैठक इसलिए नहीं हो पाई
विवाद के निपटारे के लिए बीते शुक्रवार को सायं साढ़े छह बजे एक बार फिर क्लब की बैठक बुलाई गई थी। दरअसल इस विवाद के बीच नवागत जिलाधिकारी अरविंद मलप्पा बंगारी ने आगरा क्लब के मौजूदा अध्यक्ष को एक पत्र भेजकर कहा कि क्लब में सब कुछ संविधान के अनुसार होना चाहिए। कोई परंपरा भी नहीं टूटनी चाहिए। दरअसल प्रशासन इस बात से क्षुब्ध था कि बैलेटिंग और मैनेजमेंट कमेटी से प्रशासन बाहर हो गया था जबकि संविधान के अनुसार दोनों कमेटियों में प्रशासन का एक-एक डाइरेक्टर होना चाहिए। जिलाधिकारी के पत्र के बाद क्लब में फिर हलचल हुई। कल शाम की बैठक इसी का प्रतिफल थी, लेकिन यह बैठक इसलिए नहीं हो पाई क्योंकि एयरफोर्स के सदस्यों ने किसी वजह से आने में असमर्थता जता दी थी। प्रशासन की ओर से एडीएम सिटी पहुंचे थे, लेकिन पांच मिनट बैठकर वे भी वापस लौट गए।
अब नजर पांच अक्टूबर की बैठक पर
अब पांच अक्टूबर को अगली बैठक बुलाई गई है। समझा जाता है कि इस बैठक में कोई न कोई समाधान निकल आएगा। यह भी तय माना जा रहा है कि सिविल कोटे के जिन चार डाइरेक्टर्स के चुनाव को चुनौती दी जा रही है, वह नए सिरे से चुने जा सकते हैं। प्रशासन के दो डाइरेक्टर भी दोनों प्रमुख कमेटियों में रखे जाने का रास्ता निकाला जा रहा है। ऐसा मान लिया गया है कि प्रशासन के नाराज होने से क्लब का संचालन आसान नहीं रह जाएगा।
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