बसपा छोड़ने के बाद कुछ को मुकाम मिला तो कुछ अधर में

2007 में यूपी में अपने बूते सरकार बनाने वाली बसपा इस समय अपने बुरे दौर से गुजर रही है। 2017 तक आगरा में बसपा का जलवा था। बड़े बड़े चेहरे पार्टी में थे, लेकिन 2017 के बाद बसपा के अधिकांश स्थानीय बड़े नेता एक-एक कर पार्टी छोड़ गए। इनमें से कुछ को मुकाम मिला है तो कोई दूसरे दलों में साइड लाइन हैं।

Oct 2, 2024 - 14:53
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बसपा छोड़ने के बाद कुछ को मुकाम मिला तो कुछ अधर में

एसपी सिंह
आगरा। बसपा के पीक टाइम में विधायक समेत अन्य उच्च पदों पर रहे कई नेता दूसरे दलों में शामिल होने के बाद या तो साइड लाइन या फिर विलुप्त से हो गए हैं। हां, कुछ नेताओं ने मुकाम भी हासिल किया है। इन नेताओं के पार्टी छोड़ने से जहां जिले में बीएसपी कमजोर हुई है, वहीं इन नेताओं को भी ठोस मुकाम हासिल नहीं हो पा रहा। जिस उम्मीद में इन्होंने बसपा को बाय-बाय कहा था, वह पूरी नहीं हो सकी है। 

इनमें से कई नेता 2017 में यूपी की सत्ता में आने के बाद भाजपा में शामिल हुए थे। इन नेताओं को उम्मीद थी कि वे बसपा सरकार के समय जैसा रुतबा भाजपा में भी हासिल कर लेंगे, लेकिन ऐसा हो न सका। बसपा के तीन पूर्व नेता अवश्य भाजपा में आने के बाद विधायक बनने में सफल रहे हैं, लेकिन कई अधर में लटके हुए हैं। भाजपा में आने के बाद कई नेता विधायक बनना तो दूर, संगठन में भी जगह नहीं बना पाए हैं। बसपा छोड़कर सपा में आए नेताओं का भी यही हाल है। 

दूसरे दलों में शामिल होने के बाद हाशिए पर आए इन पूर्व बसपा नेताओं के अपनी मूल पार्टी में फिर से वापसी के कोई आसार भी नजर नहीं आ रहे। बसपा नेतृत्व अभी तक यह अहसास कराता रहा है कि नेताओं के पार्टी छोड़कर जाने से उसके जनाधार पर कोई असर नहीं पड़ता, इसलिए पलायन करने वाले नेताओं की वापसी की कोई कोशिश नेतृत्व की तरफ से भी नहीं हो रही। एक-दो नेताओं को छोड़ दें तो आगरा में बड़े कद का कोई नेता बसपा में नहीं बचा है। 

2002 में पहली बार चखा जीत का स्वाद

बसपा ने आगरा में 2002 के विधान सभा चुनाव में पहली बार जीत का स्वाद चखा था। इस चुनाव में आगरा कैंट से चौधरी बशीर ने बसपा के टिकट पर विधान सभा का चुनाव जीता था। दो साल बाद ही चौधरी बशीर बसपा छोड़कर सपा में शामिल हो गए थे। इससे बसपा खाली हाथ रह गई थी। 2007 के विधान सभा चुनाव में बसपा ने यूपी में अपने बूते पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। आगरा जिले से भी बसपा को बड़ी सफलता मिली थी। पार्टी ने जिले की नौ में से छह सीटों पर जीत दर्ज कर आगरा की राजनीति में इतिहास कायम कर दिया था। 

2007 में बसपा ने लगाई थी लंबी छलांग

उस चुनाव में आगरा पश्चिम से गुटियारी लाल दुबेश, आगरा छावनी से जुल्फिकार अहमद भुट्टो, एत्मादपुर से नरायन सिंह सुमन, फतेहपुरसीकरी से सूरज पाल सिंह, खेरागढ़ से भगवान सिंह कुशवाह, बाह से मधुसूदन शर्मा बसपा के विधायक चुने गए थे। आगरा पूर्व से जगन प्रसाद गर्ग, फतेहाबाद से डा. राजेन्द्र सिंह (भाजपा) और दयालबाग से डा. धर्म पाल सिंह (जनमोर्चा) विधायक निर्वाचित हुए थे। बाद में डा. धर्म पाल सिंह के बसपा में शामिल होने के बाद बसपा विधायकों की संख्या सात हो गई थी।

2012 में भी बरकरार रखी थीं छह सीटें

बसपा 2012 का विधान सभा चुनाव हार गई थी, लेकिन उस चुनाव में भी आगरा जिले में उसे मतदाताओं का भरपूर प्यार मिला। इस चुनाव में नए परिसीमन के बाद कुछ विधान सभा सीटों के नाम बदल गए थे। आगरा पूर्व की जगह आगरा उत्तर, आगरा पश्चिम की जगह आगरा दक्षिण हो गई थी। इसी प्रकार दयालबाग सीट का नाम आगरा देहात हो गया था। आगरा कैंट और आगरा देहात सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई थीं। 2012 में आगरा दक्षिण और बाह सीट पर बसपा हार गई, लेकिन नई सीट आगरा देहात जीत ली। आगरा देहात से कालीचरन सुमन के अलावा एत्मादपुर से डा. धर्म पाल सिंह, फतेहपुरसीकरी से सूरजपाल सिंह, खेरागढ़ से भगवान सिंह कुशवाह, फतेहाबाद से छोटेलाल वर्मा और आगरा कैंट से गुटियारीलाल दुबेश बसपा के विधायक चुने गए थे। 

बसपा सरकार में बने थे कई एमएलसी

2007 और 2012 के विधान सभा चुनाव में आगरा की विधान सभा सीटों से चौधरी बशीर, जुल्फिकार अहमद भुट्टो, गुटियारी लाल दुबेश, सूरज पाल सिंह, भगवान सिंह कुशवाह, धर्म पाल सिंह, नरायन सिंह सुमन, छोटेलाल वर्मा, मधुसूदन शर्मा बसपा के टिकट पर विधायक चुने गए। इसके अलावा बसपा सरकार के समय वीरू सुमन, सुनील चित्तौड़, धर्म प्रकाश भारतीय, प्रताप सिंह बघेल एमएलसी बने थे। बसपा के वरिष्ठ नेता गोरेलाल को यूपी अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था जबकि पंचशील गौतम को भी दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री के पद से नवाजा गया था। 

अब इनमें से चंद नेता ही बसपा में बचे हैं। ज्यादातर दूसरे दलों में जा चुके हैं। विधायक बनने के बाद चौधरी बशीर ने सबसे पहले बसपा छोड़ी थी और वे सपा के साथ जाकर राज्यमंत्री का पद हासिल करने में सफल रहे थे। आगरा कैंट से उनकी जगह लाए गए जुल्फिकार अहमद भुट्टो ने पांच साल विधायक रहने के बाद भी बसपा से अपनी निष्ठा बनाए रखी। वे 2012 और 2017 का चुनाव आगरा दक्षिण से लड़े, लेकिन सफलता नहीं मिली। भुट्टो तकनीकी तौर पर अभी बसपा में ही माने जा सकते हैं, लेकिन वे राजनीतिक गतिविधियों से दूरी बना चुके हैं और अपने व्यवसाय पर फोकस कर रहे हैं। 

गुटियारी भाजपा में आकर खाली हाथ

गुटियारी लाल दुबेश लगातार दो बार विधायक रहे और 2017 के विधान सभा चुनाव के समय बसपा छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया। वे अब भी भाजपा में ही हैं। उन्होंने कैंट सीट से टिकट मांगी लेकिन सफलता नहीं मिली। 2012 में आगरा देहात से विधायक बने कालीचरन सुमन भी इस समय बसपा से अलग होकर भाजपा के साथ कदमताल कर रहे हैं। बसपा से अलग होने के बाद वे पहले रालोद में गए थे, लेकिन रालोद का टिकट न मिलने पर भाजपा में आ गए। 

धर्मपाल और कुशवाह को मिला मुकाम
भगवान सिंह कुशवाह 2017 का चुनाव खेरागढ़ से हार गए थे। बेवजह उन्हें बसपा से निकाल दिया गया था। इसके बाद उन्होंने बसपा में शामिल होने की कोई कोशिश भी नहीं की। 2022 के चुनाव से पहले वे भाजपा में आ गए और खेरागढ़ से बीजेपी का टिकट हासिल करने में भी सफल रहे। जीत भी गए। इसी प्रकार 2017 के चुनाव में एत्मादपुर से हारने के बाद डा. धर्मपाल सिंह का जुड़ाव तो बसपा से ही था, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने बसपा छोड़ दी। यही स्थिति सूरजपाल सिंह की भी थी। 

2019 में तीन पूर्व विधायकों ने छोड़ी थी बसपा
जानकारों की मानें तो धर्मपाल सिंह और सूरजपाल सिंह ने फतेहपुरसीकरी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी, लेकिन वे पार्टी की अपेक्षाओं को पूरा न कर सके। क्षुब्ध होकर इन्होंने बसपा छोड़ी और 2019 के चुनाव में सीकरी से कांग्रेस के टिकट पर लड़ रहे राज बब्बर के साथ आ गए। इन दोनों नेताओं के अलावा भगवान सिंह कुशवाह भी राज बब्बर से जुड़े थे। 

राज बब्बर की बुरी हार के बाद ये तीनों नेता दोराहे पर खड़े थे क्योंकि कांग्रेस में उन्हें अपना कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा था। सबसे पहले सूरज पाल सिहं ने भाजपा में एंट्री की। चुनाव से पहले भगवान सिंह कुशवाह भी भाजपा में आ गए। ऐन चुनाव के मौके पर धर्म पाल सिंह ने भी भाजपा का दामन थाम लिया। ये तीनों ही नेता अपनी-अपनी विधान सभा सीटों से टिकट के दावेदार थे। चुनाव प्रक्रिया से ठीक पहले सूरज पाल सिंह का आकस्मिक निधन हो गया। खेरागढ़ से भगवान सिंह कुशवाह और एत्मादपुर से धर्मपाल सिंह भाजपा टिकट हासिल कर विधायक बनने में सफल रहे। 

कई गए और फिर लौट आए

चौधरी बशीर 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान एक बार फिर बसपा से जुड़ चुके हैं। वे बसपा के टिकट पर फिरोजाबाद सीट से चुनाव लड़े थे। पूर्व एमएलसी वीरू सुमन एक बार अलग होने के बाद फिर से बसपा से ही जुड़ गए हैं। बसपा में शामिल होकर एत्मादपुर से विधायक और कैबिनेट मंत्री पद तक पहुंचे नरायन सिंह सुमन अब दुनिया में नहीं हैं। कोविड काल में उनका निधन हो गया था। अंतिम सांस लिए जाने के समय तक वे बसपा से अलग थे। 

बसपा सरकार में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री पंचशील गौतम भाजपा में तो हैं लेकिन उनकी स्थिति गुमनामी जैसी है। एक समय बसपा सुप्रीमो मायावती के बेहद करीबी रहे पूर्व एमएलसी सुनील चित्तौड़ बसपा से अलग होने के बाद नगीना से सांसद चुने गए चंद्र शेखर आजाद के साथ कदमताल कर रहे हैं। धर्मप्रकाश भारतीय ने बसपा से अलग होने के बाद कोई दूसरा दल नहीं पकड़ा। वे बौद्ध महासभा के साथ सामाजिक कार्यों में जुटे हुए हैं। पूर्व एमएलसी प्रताप सिंह बघेल और वरिष्ठ नेता गोरेलाल की निष्ठा अभी भी बसपा के साथ बनी हुई है। 

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SP_Singh AURGURU Editor