बुद्धिमान जानवरों के साथ सह अस्तित्व का तरीका निकालना ही होगा
आज यानि एक सितम्बर को दुनिया भर में प्राइमेट दिवस मनाया जा रहा है। भारत में भी वन्य जीव प्रेमी इस दिवस की सार्थकता बताते हुए इस बात पर जोर दे रहे हैं कि मानव-प्राइमेट संघर्ष खत्म होना ही चाहिए।
आगरा। आज यानि 1 सितम्बर को 'विश्व प्राइमेट दिवस' मनाया जा रहा है। इसी सिलसिले में वाइल्ड लाइफ एसओएस ने शहरीकरण, आवास अतिक्रमण और आधारभूत सुविधाओं के विकास के कारण तेज हो रहे मानव-प्राइमेट संघर्ष के मुद्दों पर ध्यान आकर्षित किया है। जैसे-जैसे प्राकृतिक आवास सिकुड़ते जा रहे हैं और उनके स्थान पर कंक्रीट संरचनाएं बन रही हैं, इन अनुकूलनीय प्राणियों के जीवन पर खतरा बढ़ रहा है।
भारत, जो 22 प्राइमेट प्रजातियों का घर है, ने बढ़ते तौर पर एक चिंताजनक प्रवृत्ति देखी है जिसमें बंदर, लंगूर समेत कुछ अन्य प्रजातियां शहरी वातावरण में रहना सीख गई हैं। ये 'सामाजिक' प्राइमेट शहरों में एक आम दृश्य बन गए हैं, जो अपने दैनिक जीवन के रूप में सड़कों, बिजली लाइनों और इमारतों का बड़े आराम से इस्तेमाल करते करते हैं।
हालांकि, जंगलों से शहरों में प्रवास इनमें से कई बंदरों के लिए घातक साबित हुआ है। इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि इन प्राइमेट्स को अक्सर शहरी निवासियों द्वारा एक उपद्रव के रूप में देखा जाता है। वाइल्डलाइफ एसओएस ने विभिन्न घावों और चोटों वाले ऐसे कई बंदरों का इलाज और पुनर्वास किया है, जिसमें विद्युत प्रवाह और सड़क दुर्घटनाओं जैसे हादसों के कारण गंभीर चोट खाये बन्दर शामिल हैं।
वाइल्डलाइफ एसओएस ऐसे शहरी इलाकों में पनाह लेने वाले बंदरों को बचाने और उनका पुनर्वास करने के प्रयासों में जुटा हुआ है। संगठन न केवल घायल बंदरों को बचाता और उनका इलाज करता है, बल्कि जब भी संभव हो बंदरों के शिशुओं को उनकी माताओं के साथ पुनर्मिलन करने का भी काम करता है।
जहां पुनर्मिलन संभव नहीं है, वाइल्डलाइफ एसओएस ने कई शिशु बंदरों को सफलतापूर्वक हाथ से पाला है, उन्हें जीवित रखने के लिए आवश्यक देखभाल और पोषण प्रदान किया है।
वाइल्डलाइफ एसओएस के संरक्षण परियोजनाओं के निदेशक - बाईजू राज एमवी ने कहते हैं, "इलेक्ट्रोक्युशन या बिजली के तारों से चोटिल होना शहरी बस्तियों में रहने वाले बंदरों के लिए चोट का एक प्रमुख कारण है। ऐसी ही एक घटना में, दो शिशु बंदर 'अबू' और 'ज़ोई' की माँ की इलेक्ट्रोक्युशन से मृत्यु हो गई। वाइल्डलाइफ एसओएस ने शिशुओं को बचाया और अब उनकी मनोवैज्ञानिक और शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए निरंतर देखभाल की जा रही है।
वाइल्डलाइफ एसओएस की सह-संस्थापक और सचिव, गीता सेशमणि ने बताया कि "प्राइमेट संरक्षण के लिए संगठन का काम बचाव कार्यों से भी आगे रहता है। वाइल्डलाइफ एसओएस वन्यजीवों को खतरों और सह-अस्तित्व के महत्व के बारे में समझाने वाले सामुदायिक जागरूकता अभियान करता रहता है। हम इन प्राइमेटों के विस्थापन को कम करने के लिए प्राकृतिक आवासों के संरक्षण पर भी ज़ोर देते हैं।"
वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक और सीईओ, कार्तिक सत्यानारायण का कहना है कि इस अंतर्राष्ट्रीय प्राइमेट दिवस पर वाइल्डलाइफ एसओएस लोगों से मानव-बंदर संघर्ष के मूल कारणों की आवश्यकता को पहचानने का आग्रह करता है। जैसे-जैसे शहरीकरण प्राकृतिक आवासों पर अतिक्रमण करता जा रहा है, यह आवश्यक है कि हम इन बुद्धिमान जानवरों के साथ सह-अस्तित्व का तरीका खोजें।
What's Your Reaction?