क्यों चर्चा में है सेंट मार्टिन द्वीप, क्या है अहमियत?
नई दिल्ली। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे के बाद अचानक सेंट मार्टिन द्वीप की चर्चा दुनिया भर में होने लगी है। शेख हसीना ने आरोप लगाया था कि यदि इस द्वीप को अमेरिका को उन्होंने दे दिया होता तो उनकी कुर्सी नहीं जाती। बताया जाता है कि इस द्वीप की रणनीतिक स्थिति को देखते हुए पाकिस्तान और म्यांमार की दिलचस्पी भी इस द्वीप में है। आखिर सेंट मार्टिन द्वीप की क्या विशेषता है, इसका हम विश्लेषण करते हैं।
सेंट मार्टिन द्वीप बांग्लादेश के निकट बंगाल की खाड़ी में स्थित है। यह बांग्लादेश के काक्स बाजार से नौ किमी की दूरी पर है। यह बांग्लादेश का एकमात्र कोरल आईलैंड है। इस द्वीप की लंबाई 7.3 किमी है, जो समुद्रतल से महज 3.6 मीटर ऊंचा है। बताया जाता है कि पांच हजार साल पहले यह टेकनाफ प्रायद्वीप का हिस्सा था, जो समय के अंतराल में समुद्र में डूब गया था। लेकिन 450 साल पहले यह फिर समुद्र के ऊपर निकल आया।
इस द्वीप पर सबसे पहले अरब के व्यापारियों ने अड्डा जमाया और यहां बसने लगे। यह 18वीं सदी की बात है। अरब के व्यापारियों ने प्रारंभ में इसका नाम जजीरा रखा। बाद में इसका नाम नारिकेल जिंजिरा या नारियल का द्वीप रखा गया। वर्ष 1900 में ब्रिटेन ने इस पर कब्जा कर लिया। चित्तगांव के तत्कालीन ब्रिटिश डिप्टी कमिश्नर मार्टिन के नाम पर इसका नाम सेंट मार्टिन कर दिया गया।
1947 में भारत के विभाजन के समय यह द्वीप पाकिस्तान के पास चला गया। पाकिस्तान से अलग होने के बाद इस पर बांग्लादेश का अधिकार हो गया। इस द्वीप की बंगाल की खाड़ी में काफी रणनीतिक महत्व है। यहां से दक्षिण एशियाई देशों पर अमेरिका सीधी नजर रख सकता है। इसके साथ ही म्यांमार और पाकिस्तान भी इसे अपने लिए अहम समझता है। बंगाल की खाड़ी में वैसे तो पाकिस्तान की कोई खास दखलंदाजी नहीं है लेकिन वह यहां से चीन के साथ करीबी संबंध बढा सकता है। इसके साथ ही चीन की दिलचस्पी इसलिए है कि वह अमेरिका को यहां आने से रोक सकता है। यदि ये देश यहां पहुंच जाते हैं तो भारत को मुश्किलें पेश आ सकती हैं।
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