वैज्ञानिकों ने टेस्ट ट्यूब में तैयार किए पशुओं के भ्रूण, अब देशी गाय-भैंसें भी देंगी भरपूर दूध

भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक ने अभिनव प्रयोग में कामयाबी पा ली है, जिसमें कम दूध देने वाली गायें और भैंसें अब ज्यादा दूध दिया करेंगी। वैज्ञानिक पांच देशी गायों और भैंसों सरोगेसी मदर बना रहे हैं, जिनसे मिलने वाले बच्चे बड़े होकर उम्मीद से ज्यादा दूध देंगे।

Oct 13, 2024 - 12:29
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वैज्ञानिकों ने टेस्ट ट्यूब में तैयार किए पशुओं के भ्रूण, अब देशी गाय-भैंसें भी देंगी भरपूर दूध

- बरेली के आइवीआरआइ में नस्ल सुधार के लिए तैयार किए गए हैं टेस्ट ट्यूब बेबी 
- कम दूध देने वाली देसी गाय-भैंस से तैयार होंगी अधिक दूध देने वाली प्रजातियां

आरके सिंह 
बरेली। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंस्थान संस्थान (आइवीआरआइ) के वैज्ञानिकों ने ऐसा काम कर दिखाया है कि अब कम दूध देने वाली देसी गाय और भैंसें भी भरपूर दूध दिया करेंगी। दरअसल वैज्ञानिकों ने कृत्रिम भ्रूण प्रयोगशाला में गाय-भैंस के 'टेस्ट ट्यूब बेबी' तैयार किए हैं। इन्हें कम दूध देने वाली देसी गाय-भैंसों के गर्भाशय में सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित भी किया जा चुका है। नए साल से सरोगेसी मदर्स (गाय-भैंस) से बच्चे मिलने शुरू हो जाएंगे। 

आइवीआरआइ के निदेशक डा. त्रिवेणी दत्त ने बताया कि राष्ट्रीय गोकुल मिशन के अंतर्गत संस्थान को साढ़े छह करोड़ रुपये भारत सरकार से मिलने वाले हैं। इसके बाद सरोगेसी मदर के प्रोजेक्ट को और विस्तार दिया जाएगा। इस प्रक्रिया को गांवों तक पहुंचाया जाएगा ताकि कम दूध देने वाली गाय-भैंसों की उपयोगिता बनी रहे। नस्ल सुधार कर अधिक दुग्ध उत्पादन हो सकेगा। 

आइवीआरआइ बरेली के वैज्ञानिक डा. एमएच खान, डा. ब्रजेश कुमार, विक्रांत सिंह चौहान, एके पांडेय ने  सरोगेसी मदर्स परियोजना पर काम शुरू किया है। वैज्ञानिकों ने संयुक्त रूप से बताया कि साहीवाल गाय हो या मुर्रा भैंस, ऐसी प्रजातियां प्रतिदिन 15 से 25 लीटर तक दूध देती हैं। इन प्रजातियों से अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए टेस्ट ट्यूब बेबी फार्मूले पर काम किया गया। 

साइंटिस्ट ने इन प्रजातियों की गाय-भैंस और अच्छी प्रजाति के बछड़ों का सीमन लेकर फर्टिलाइजेशन के लिए सीओ-2 इंक्यूवेटर मशीन में 24 घंटे तक रखा। यह मशीन 38.05 तापमान पर काम करती है। फर्टिलाइजेशन होने के बाद इसे आठ दिन टेस्ट ट्यूब में रखा गया। इसके बाद भ्रूण को विकसित करने के लिए कम दूध देने वाली गाय-भैंसों के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया गया। पहले चरण में पांच गाय-भैंसों में इस तरह का प्रत्यारोपण किया जा चुका है।

संस्थान के निदेशक डा. त्रिवेणी दत्त की मानें तो जीवित पशुओं में आइवीआरआइ बरेली में पहली बार यह प्रयोग हो रहा है। सरोगेसी मदर के गर्भाशय में पलने वाले बच्चे के जींस अधिक दूध देने वाली गाय और भैंस के ही होंगे। सामान्य तौर पर किसी भी प्रजाति की गाय नौ माह नौ दिन और भैंस दस माह दस दिन में बच्चा देती है। यानि, स्वाभाविक गर्भधारण से साहीवाल गाय या मुर्रा भैंस वर्ष में एक बार ही बच्चा देगी, जबकि इस अवधि में उससे 18-20 बार सीमन लिया जा सकता है। 

टेस्ट ट्यूब प्रक्रिया अपनाए जाने पर इन उच्च प्रजाति की गाय-भैंसों का गर्भाशय खाली रखा जा सकता है। उनसे वर्ष भर में 18-20 बार सीमन लेकर कम दूध वाली गाय-भैसों के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर बच्चे लिए जा सकते हैं। निदेशक डा. दत्त के अनुसार, इन्हें पैदा कम दूध देने वाली गाय-भैंसें करेंगी मगर, अनुवांशिक गुण अधिक दूध देने वाली गाय-भैंस के ही रहेंगे।

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