aurguru news:तिथि अष्टमी भाद्रपद जन्मे कृष्ण मुरार, प्रकटे आधी रात को सोये पहरेदार
तिथि अष्टमी भाद्रपद, जन्मे कृष्ण मुरार। प्रकटे आधी रात को, सोये पहरेदार ।। बेडी टूटी हाथ की, खुले बंधन पांव। प्रभु की लीला देखिये, सुंदर गोकुल गांव।।
किशन चतुर्वेदी
मथुरा। भाद्रमास कृष्णपक्ष की अष्टमी की मध्यरात्रि, ग्रह नक्षत्रों का अद्भुत संयोग, भक्तों को अजन्मे कान्हा के आगमन सुखद अहसास करा रहे थे। हजारों की संख्या में श्रद्धालु श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर के अंदर थे तो उससे कई गुना ज्यादा भीड़ जन्मस्थान के बाहर इस बात का इंतजार कर रही थी कि वह किसी तरह मंदिर के अंदर प्रवेश कर सकें। घडी की सूई टिकटिक कर 12 के निशान की ओर बढ रही थी। इसी गति से श्रद्धालुओं की अधीरता भी अपने चरम पर पहुंच रही थी। जो श्रद्धालु भगवत भवन के अंदर थे वह किसी तरह इस क्षण तक भागवत भवन के अंदर ही टिके रहने चाहते थे। जीवन में ऐसा आद्भुत संयोग शायद फिर कभी उन्हें मिले यही उनके दिमाग में चल रहा होगा तभी तो कदम थे कि आगे बढने को तैयार नहीं हो रहे थे। जैसे जैसे भगवान के अवतरण बेला निकट आ रही थी भागवत भवन में भीड का दबाव बढ रहा था। सेवायत और सुरक्षाकर्मी किसी के भी पैर भागवत भवन के अंदर जमने नहीं दे रहे थे। इसी जद्दोजहद में वह अद्भुत, चमत्कारिक और आलौकिक क्षण आ गया जिसकी प्रतिक्षा पूरा विश्व कर रहा था, धीरे धीरे भागवत भवन में भगवान के श्रीविग्रह और श्रद्धालुओं के बीच दीवर बनी खादी की वह झीनी चादर खिसकने लगी, भक्त अब हिलने को तैयार नहीं थे, अचानक शंखनदा शुरू हो गया। पांच मिनट तक पूरा मंदिर परिसर शंख की सैकडों ध्वनियों से गुजायमान रहा। यह इस बात की उद्घोष था कि अजन्मे भगवान श्रीकृष्ण प्रथ्वी पर अवतरित हो चुके हैं। श्रद्धालुओं के हाथ आसमान की ओर झूल रहे थे। भागवत भवन सहित पूरा जन्मस्थान और जन्मस्थान की ओर जानेवाली हर सडक पर मौजूद श्रद्धालुओं की भीड मथुरा में भगवान के अवतरण की साक्षी बन खुद को ध्यन मान रही थी। इससे पहले जन्म महाभिषेक का मुख्य एवं आलौकिक कार्यक्रम रात्र करीब 11 बजे से श्रीगणेश नवग्रह आदि पूजन से शरू हुआ। 12 बजे भगवान के प्राकट्य के साथ ही संपूर्ण मंदिर परिसर में शंख, ढोल, नगाडे, झांझ, मजीरे और मृदंग एवं हरिबोल की करतल ध्वनि के साथ असंख्य भक्त जन, संत नाच उठे। भगवान के जन्म की प्राकट्यआरती रात 12ः10 मिनट तक चली। रजत जडित कामधेन के दूध से भगवान के विग्रह का अभिषेक हुआ।
श्रीकृष्ण जन्मभूमि के संपूर्ण परिसर को अद्भुत कलात्मकता से सजाया गया था। साजसज्जा ऐसी कि श्रद्धालु अभिभूत हो उठे। भगवान की प्राकट्य भूमि एवं कारागार के रूप में प्रसिद्ध गभ्रगृह की सज्जा भी चित्तआकर्षक थी। पत्र, पुष्प, रत्न प्रकृति, वस्त्र आदि के अद्भुत संयोजन से बनाये गये पुष तेजोमहल बंगले में विराजमान हो ठाकुर जी ने श्रद्धालुओं को बडे ही मनोहारी स्वरूप में दर्षन दिये। पत्र, पुष्प, काष्ठ आदि से निर्मित इस बंगले की छठा और कला अनूठी थी। षनिवार को प्रातः दिव्य षहनाई एवं नगाडों के वादन के साथ भगवान की मंगला आरती के दर्षन हुए। तदोपरांत भगवान का पंचामृत अभिषेक किया गया एवं ठाकुर जी के प्रिय स्त्रोतों का पाठ एवं पुष्पार्चन हुआ। प्रातः दस बजे पुष्पांजलि का कार्यक्रम श्रीकृष्ण जन्मभूमि के सिद्ध लीलामंच पर संपन्न हुआ।
ब्रज के घर घर में अवतरित हुए कान्हा
विश्व भले ही भगवान श्रीकृष्ण को गीता के महान उपदेशों के लिए जानता हो, ब्रज में तो वह पांच हजार साल बाद भी कान्हा हैं, ब्रजवासियों के लाला हैं। इसी वात्सल्य भाव से ब्रजवासी अपने भगवान की पूजा अर्चना करते हैं और इसी वात्सल्य भाव से दुलारते हैं। दुनियां ने यह भी देखा कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण ने कंस के कारागार में जन्म लिया, लेकिन कान्हा तो हर ब्रजवासी के आंगन में अवतरित हुए।
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