सर्दी में ठाकुर बांकेबिहारी उठा रहे केसर-मेवा के भोग पदार्थों का आनंद, मौसमी इत्रों से मालिश
वृन्दावन। भक्ति संसार में भाव सेवा के अनूठे केंद्र के रूप में प्रसिद्ध श्रीधाम वृन्दावन के विभिन्न मंदिर - देवालयों के साथ-साथ भोले भाले ब्रजवासियों के निज निवासों में इन दिनों अपने आराध्य प्रभु की शीतकालीन सेवाओं का दौर चल रहा है। इसी क्रम में जन-जन के आराध्य ठाकुर श्री बाँकेबिहारी जी महाराज सर्दीले मौसम में केसर और मेवाओं द्वारा निर्मित भोग पदार्थों का आनंद उठा रहे हैं। ठाकुर जी की मौसमी इत्रों से मालिश हो रही है।
श्रीहरिदास पीठाधीश्वर इतिहासकार आचार्य प्रहलाद बल्लभ गोस्वामी ने इस अनूठी भावसेवा के संदर्भ में बताया कि सर्दी के प्रभाव से स्वामी हरिदास महाराज के लाड़ले ठाकुर बाँकेबिहारी महाराज को बचाने के लिए उनके रसिक समाजी सेवायतों द्वारा तमाम तरह के प्रयत्न किये जा रहे हैं। इन मौसमी यत्नों में जहां नित्यप्रति आराध्य को गर्म कपड़ों से बनी सुन्दर सजीली पोषाकें पहनाई जा रहीं हैं, वहीं तप्त (गर्म) तासीर वाले दिव्य पदार्थ भोग में निवेदित किये जा रहे हैं।
भगवान को सर्वोत्तम किस्म की मेवाओं व केसर से बने पदार्थ विशेष रूप से भोग में परोसे जा रहे हैं। ठाकुरजी को सुबह-शाम अर्पित किये जाने वाले मलयागिरी चंदन के टीके, भोग व माखन-मिश्री में प्रचुर मात्रा में केसर मिलाया जा रहा है।
इतिहासकार गोस्वमी कहते हैं कि ठाकुर श्रीबाँके बिहारी जी महाराज की दैनिक सेवाओं में उनकी किशोरायु स्वरूप सेवा का विशेष ध्यान रखते हुए ही सम्पूर्ण सेवाएं सम्पादित हो रही हैं। इनमें ठंड के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए आराध्य को गर्मियों की बनिस्पत सुबह देर से जगाते हैं और रात्रि में जल्दी शयन करा देते हैं। दोनों समय पोषाक के साथ ठाकुर बाँके बिहारी जी को पशमीना की शाल धारण कराई जा रही है। आराध्य प्रभु की शयनशैया पर भी हल्के सूती चादर, गद्दों की जगह अब शैमल की रुई के शनील चढ़े गद्दे, सात तकिये लगाकर ठाकुर जी को शनीली रजाई औढ़ाई जा रही है।
श्रीहरिदास पीठाधीस्वर के अनुसार आराध्य को प्रातः काल श्रृंगार भोग में दौलत की चाट, केसर-मेवा मिश्रित मूंग की दाल का हलवा, माखन-मिश्री व रात्रि में केसरिया दूध भोग निवेदित किया जा रहा है। नित्यानी भोग प्रसाद में केसर, काजू, किसमिस, चिरोंजी, पिश्ता, बादाम, अखरोट इत्यादि मेवाओं का प्रयोग किया जा रहा है।
रात में ठाकुर जी के शयनोपरांत शयन कक्ष में चांदी के कटोरदान में में 8 मेवा मिश्रित लड्डू, चार पान के बीड़ा और चांदी के लोटे में स्वच्छ गुनगुना यमुनाजल रखा जाता है। इसके वारे में तथ्य - भावना है कि यदि रात में यदि ठाकुरजी की आंखें खुल जाए और उन्हें भूख-प्यास लगे तो वह परेशान न हों और उन्हें वहीं भोग सामिग्री उपलब्ध हो जाये।
मालिश में हो रहा मौसमी इत्रों का उपयोग
सेवायत आचार्य प्रहलाद बल्लभ गोस्वामी के मुताबिक ठाकुर श्रीबांके बिहारी महाराज की वर्ष भर मौसम पर आधारित उत्तम प्रकार के इत्रों से मालिश की जाती है। ठंड के मौसम में सुबह, दोपहर, शाम तथा रात में कुल चार बार हिना, केसर, ऊद, मस्क आदि इत्रों से ठाकुरजी की मालिश की जा रही है। आराध्य की सेवाओं हेतु उनके असंख्य भक्त व सेवायत जनों द्वारा काबुली मेवा, कश्मीरी केसर, कर्नाटकी चंदन और कनोजिया इत्र मंगाया जाता है।
What's Your Reaction?