हरियाणा में कांग्रेस ने आप को 'जैसे को तैसा' तर्ज पर दिया जवाब
कई दौर की वार्ताओं के बावजूद अंततः हरियाणा में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच चुनावी समझौता नहीं हो पाया। दोनों दलों ने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। कांग्रेस ने आखिर क्यों नहीं दिया आम आदमी पार्टी को भाव।
-एसपी सिंह-
चंडीगढ़। हरियाणा में विधान सभा चुनाव को लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का समझौता नहीं हो पा रहा। दोनों ही दलों की ओर से प्रत्याशियों की घोषणा होने के बाद तो कम से कम यही लगता है कि दोनों दल अलग-अलग लड़ेंगे, लेकिन एक सवाल यह भी है क्या अभी भी टाइम है? नामांकन की अंतिम तारीख 12 सितंबर है। नाम वापसी की तारीख तक भी दोनों दलों के बीच समझौते की क्या किसी प्रकार की गुंजाइश बची हुई है? हरियाणा में कांग्रेस द्वारा आप को ठेंगा दिखाने से राजनीतिक हलकों में एक सवाल यह भी तैर रहा है कि क्या कांग्रेस ने आप से स्थायी रूप से दूरी बनाने का मन बना लिया है?
गठबंधन को आतुर आप को भाव नहीं मिला
हरियाणा में दोनों दलों के बीच की आज की स्थिति को देखकर हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में पंजाब में दोनों के बीच समझौते की बातें यादव आती हैं। लोकसभा चुनाव में आप ने दिल्ली में तो कांग्रेस के लिए तीन सीटें छोड़ दी थीं, लेकिन पंजाब में ठेंगा दिखा दिया था। पंजाब में आप को अपने बूते चुनाव लड़ने और जीतने का पूरा भरोसा था। वहां कांग्रेस समझौते को आतुर थी और आप उसके प्रस्ताव को ठुकरा रही थी। आज हरियाणा में आम आदमी पार्टी चुनावी गठबंधन के लिए आतुर है और कांग्रेस उसे ज्यादा भाव नहीं दे रही। आप ने कांग्रेस से राज्य में दस सीटें मांगीं और कांग्रेस तीन सीटों से आगे नहीं बढ़ी।
इधर वार्ताएं, उधर कांग्रेस के प्रत्याशी
आम आदमी पार्टी इस समय बुरे दौर से गुजर रही है। पार्टी के सर्वमान्य नेता अरविंद केजरीवाल शराब घोटाले को लेकर जेल में हैं। पार्टी उनके बगैर ही हरियाणा के चुनावी समर में उतरने जा रही है। समझा जाता है कि अरविंद केजरीवाल की सलाह पर ही आप के सांसद राघव चड्ढा और संजय सिंह ने कांग्रेस से हरियाणा में चुनावी समझौते की बातचीत चलाई। हरियाणा कांग्रेस के नेता चुनाव समझौते के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने बातचीत का दौर जारी रखा। इससे आप को उम्मीद बंधी रही। उधर कांग्रेस अपने प्रत्याशियों को चयनित कर उनके नाम भी घोषित करती रही।
जब आप का टूट गया धैर्य
कांग्रेस की ओर से प्रत्याशियों की दूसरी सूची जारी होने के बाद आम आदमी पार्टी का धैर्य जवाब दे गया। दरअसल कांग्रेस ने राज्य की उन सीटों पर भी अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए, जिन पर लड़ने की इच्छा आम आदमी पार्टी जता रही थी। इसके बाद आनन-फानन में आप की ओर से भी राज्य की 20 सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए गए। शेष सीटों पर भी जल्द उम्मीदवार घोषित करने की बात आप के नेताओं ने कही है।
कांग्रेस अपने बूते सरकार बनाने को आश्वस्त
हरियाणा में इस बार के चुनाव में कांग्रेस को अपना पलड़ा बहुत भारी दिख रहा है। सत्ता विरोधी लहर का फायदा कांग्रेस को मिल सकता है। कांग्रेस नेता सरकार बनाने को लेकर आश्वस्त हैं, इसलिए उन्हें नहीं लगता कि चुनावी सफलता के लिए कांग्रेस को आप की जरूरत है। वैसे भी पिछले विधान सभा चुनाव में आप को केवल एक प्रतिशत वोट मिले थे। हाल के लोकसभा चुनाव में भी आप राज्य की चार विधान सभा सीटों पर ही आगे रही थी। इस सबके बावजूद कांग्रेस नेतृत्व चाहता था कि भाजपा विरोधी मतों का बंटवारा न हो, इसीलिए आप से वार्ताएं भी चलती रहीं। आप जो सीटें मांग रही थी, वह कांग्रेस देना नहीं चाहती थी। कांग्रेस ने इन पर उम्मीदवार उतारे तो तमतमाई आप ने भी यह कहते हुए अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए कि उन्हें हल्के में न लिया जाए।
आप को जो बिगाड़ना था, बिगाड़ चुकी
शायद अब कांग्रेस नेतृत्व को यह लगने लगा है कि आम आदमी पार्टी को उसका जितना नुकसान करना था, कर चुकी। पंजाब में आप ने कांग्रेस से समझौता नहीं किया, लेकिन फिर भी कांग्रेस अपने बूते राज्य की सात लोकसभा सीटें जीत गई, जबकि विधान सभा के अपने प्रचंड बहुमत को लेकर नखरे दिखा रही आप महज चार सीटों पर ही जीत पाई। यही नहीं, दिल्ली में आप से चुनावी समझौता करने का कोई लाभ भी कांग्रेस को नहीं मिला। कांग्रेस को अभी तक यही डर सताता रहता था कि आप उसके वोट बैंक में सेंध लगाएगी, लेकिन पंजाब के लोकसभा चुनाव नतीजों ने कांग्रेस का यह डर लगता है समाप्त कर दिया है।
हरियाणा में आप से समझौता न करने की कांग्रेस की एक वजह यह भी हो सकती है कि आप के नेता बहुत पहले कह चुके हैं कि हम दिल्ली विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के साथ चुनावी समझौता नहीं करेंगे। ऐसे में कांग्रेस को क्या पड़ी, जो वह हरियाणा में आप को पैर जमाने का मौका दे। अब देखना यह है कि चुनाव में क्या वाकई ये दोनों दल एक-दूसरे के प्रति ताल ठोकते दिखाई देंगे, या फिर नाम वापसी की तारीख तक दोनों के बीच सीटों को लेकर कोई सहमति बन पाती है या नहीं।
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