चांद कैसे बना था ? चंद्रयान-3 के ने ढूंढा उसका इतिहास

नई दिल्ली। कल भारत में अंतरिक्ष दिवस मनाया जाएगा। यह चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सफलता से ऐतिहासिक लैंडिंग की पहली सालगिरह पर मनाया जाने वाला है। उससे ठीक पहले चंद्रयान-3 के रोवर प्रज्ञान की तरफ से की गईं खोजों पर हुए अध्ययन में इस बात के अहम सुराग मिले हैं कि आखिर चांद बना कैसे होगा।

Aug 25, 2024 - 15:53
Aug 25, 2024 - 16:39
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चांद कैसे बना था ? चंद्रयान-3 के ने ढूंढा उसका इतिहास

इस महत्वपूर्ण खोज ने चंद्रयान-3 की उपलब्धियों में एक और अध्याय जोड़ दिया है। अहमदाबाद स्थित फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी (पीआरएल) और इसरो के वैज्ञानिकों की टीम रोवर पर लगे पेलोड में से एक अल्फा पार्टिकुलर एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS) के जरिए जुटाए आंकड़ों का इस्तेमाल करके दक्षिणी ध्रुव के पास चांद की मिट्टी की बनावट का अध्ययन किया है।
यह विश्लेषण चंद्रमा पर मिट्टी की माप से संबंधित है, जिसे प्रज्ञान रोवर द्वारा सतह पर 100 मीटर की दूरी तय करते हुए कई बिंदुओं पर रिकॉर्ड किया गया। अध्ययन के नतीजे उस सिद्धांत की पुष्टि करते हैं कि चांद की सतह कभी मैग्मा का महासागर थी। चांद की ऊपरी सतह हल्के खनिजों से बनी है, जैसा कि पहले से अनुमान था। मैग्मा चट्टानों का पिघला हुआ रूप है जो अर्ध ठोस होता है। यह खोज नेचर पत्रिका में छपी है। मैग्मा सिद्धांत के मुताबिक, चंद्रमा का निर्माण दो प्रोटोप्लैनेट (ग्रह निर्माण से पहले का चरण) के बीच टकराव के परिणामस्वरूप हुआ था। टक्कर के बाद बड़ा ग्रह पृथ्वी बन गया और छोटा ग्रह चंद्रमा बन गया। इसके अनुसार, दोनों प्रोटोप्लैनेट की टक्कर की वजह से चंद्रमा बहुत गर्म हो गया, जिससे उसका पूरा आवरण पिघलकर मैग्मा महासागर में बदल गया।
अध्ययन में कहा गया है कि जब चंद्रमा का निर्माण हो रहा था, तब वह ठंडा हुआ, कम घनत्व वाले एफएएन सतह पर तैरने लगे, जबकि भारी खनिज नीचे डूब गए और मेटल बन गया, जो कि क्रस्ट (सतह का ऊपरी हिस्सा) के नीचे स्थित है। भारत ने पिछले साल 23 अगस्त को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक उतारा था। इस मिशन के एक साल पूरे होने पर यह नई जानकारी सामने आई है। इससे पहले चांद के इस हिस्से की मिट्टी की जांच कभी नहीं हुई थी क्योंकि दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला 
भारत ही पहला देश है। प्रज्ञान रोवर में लगे अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS) ने यह जानकारी जुटाई है। इससे पता चला है कि चांद की सतह पर फेरोएन एनोर्थोसाइट (FAN) नाम का चट्टान बहुतायत में है। यह खोज लूनर मैग्मा ओशन (LMO) सिद्धांत को मजबूत करती है। LMO सिद्धांत के अनुसार, अरबों साल पहले चांद पूरी तरह से पिघले हुए लावा का गोला था। जैसे-जैसे यह लावा ठंडा हुआ, भारी खनिज नीचे बैठ गए और हल्के खनिज ऊपर तैरते रहे। इससे चांद की ऊपरी परत हल्के खनिजों से बनी।

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SP_Singh AURGURU Editor