एचएमटी की टिक-टिक क्या रुकी ठहर गया 146 परिवारों के लिए समय

कभी कलाई पर सोना, कंचन जैसी घड़ियों को सजाने वाले हाथ आज न्यायालय में हाथ उठाए खड़े हैं। घड़ी की टिक-टिक क्या रुकी , उनके लिए तो काल का पहिया ही ठहर गया। सरकारों से गुहार कर हारने के बाद अब वे न्यायालय की शरण में हैं।

Sep 28, 2024 - 14:21
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एचएमटी की टिक-टिक क्या रुकी ठहर गया 146 परिवारों के लिए समय


नैनीताल। समय के साथ कदमताल करने वाली एचएमटी घड़ी कहीं खो गई है। वे हाथ जो कभी इस घड़ी की सुइयों को हर डायल पर सजाते थे। वे आंखें जो कभी घड़ी के छोटे बड़े काग व्हील को इस अंदाज से सेट करती थीं कि एक सेकेंड का भी अंतर न आए। कभी न रुकने वाले काग व्हील को डायल के अंदर सेट करने वाले उन लोगों का जीवन ठहर गया है।

वे आंखें पथरा गई हैं। सुइयों को डायल पर सजाने वाले हाथ झुर्रियों से भर गए हैं। पर उन्होंने समय से हाऱ नहीं मानी है। हार मानें भी कैसे। वही हाथ तो समय दर्शाने वाली उन घड़ियों को कलाई तक ले जाने में  दिन-रात एक कर दिया करते थे। अब भी वे संघर्ष कर रहे हैं  एचएमटी के प्रबंधन से। 

एक समय था जब कलाई पर एचएमटी की घड़ी शान का प्रतीक होती थी। शादियों में जंवाई राजा को एचएमटी की सोना घड़ी दी जाती थी। सोना, कंचन, पायलट, रजत, कोहिनूर जैसे एचएमटी के बहु प्रचलित माडल का  स्थान अब देश-विदेश की दूसरी घड़ियों ने ले लिया है। 

भारत में एचएमटी की घड़ी का निर्माण करने वाली पांच फैक्टरियां थीं। उनमें से पांचवीं फैक्ट्री उत्तराखंड के नैनीताल जिले के रानीबाग क्षेत्र में थी। पहाड़ के विकास पुरुष के नाम से मशहूर स्व. नारायण दत्त तिवारी ने पहाड़ों से युवाओँ का पलायन रोकने के लिए 1982 में इस फैक्ट्री की नींव रखी थी।

1985 में जब यह फैक्ट्री खुली तो इस फैक्ट्री ने 1200 लोगों को रोजगार दिया। सोना, कंचन, आस्ट्रा जैसे क्लासिक माडल वाली रिस्ट वाच की इस फैक्ट्री को प्रबंधन ने 29 नवंबर 2016 की रात को बिना किसी को नोटिस दिए बंद कर दिया और सभी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया। उनको फंड ग्रेच्युटी आदि भी नहीं दी गई। 

इन कर्मचारियों में बहुत से कामगार उत्तराखंड के बाहर के थे। उन्होंने कुछ सालों तक इंतजार किया, धरना प्रदर्शन किया और हार मानकर चले गए। कुछ समय से हार गए और ईश्वर को प्यारे हो गए। 

लेकिन अभी भी 146 कर्मचारी ऐसे हैं जो अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। यह 146 परिवार धरना प्रदर्शन करते-करते हार गए तो उन्होंने न्यायालय की शरण ली। अभी भी वे 146 परिवार अपने हक की मांग के लिए उच्च न्यायालय में लड़ रहे हैं। सरकारें आई और सरकारें गईं। सभी सरकारों से उन्होंने गुहार लगाई किंतु उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। आशा है उच्च न्यायालय से शायद उन्हें उनका हक वापस मिल सके।  
  

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