वृंदावन में सैकड़ों वृक्षों की हत्या से हर कोई दुखी, मोरों का तो आशियाना ही छिन गया
वृंदावन में हरे पेड काटने को लेकर ब्रजवासी व पर्यावरण विद आक्रोशित हैं। उनका कहना है कि बृज का मूल स्वरूप नष्ट किया जा रहा है। बेचारे मोरों का तो घर ही उजड़ गया है।
वृंदावन। वृंदावन छटीकरा मार्ग पर तीन सौ से ज्यादा हरे भरे पेड़ों को रात के अंधेरे में काटे जाने से इस धर्म नगरी में शोक जैसा माहौल है। लोग इस सदमे से उबर नहीं पा रहे। गुस्सा इस बात को लेकर है कि अभी तक जिम्मेदारों पर कोई एक्शन नहीं हुआ है।
ब्रज मंडल के हरित कार्यकर्ताओं ने इस मामले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक ज्ञापन भेजकर इस गंभीर मुद्दे की ओर ध्यान आकर्षित किया है।
ज्ञापन में कहा गया है कि वैष्णोदेवी मंदिर के पास पर्यावरण के साथ बर्बरता का यह कृत्य उस क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन और सांस्कृतिक विरासत को खतरे में डालने वाला है, जो कभी अपने मंदिरों, घुमावदार गलियों (कुंज गलियों) और पक्षियों और जानवरों को आकर्षित करने वाली हरी-भरी हरियाली के लिए जाना जाता था।
वरिष्ठ पत्रकार बृज खंडेलवाल और पर्यावरणविद् डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य का कहना है कि इस बर्बर कृत्य के पीछे अपराधी भू-माफिया और डेवलपर्स हैं, जो दीर्घकालिक परिणामों की परवाह किए बगैर अपने लाभ के लिए सोचते हैं।
वृंदावन के हरित कार्यकर्ता मधु मंगल शुक्ला, जिनकी इस विषय पर याचिका इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित है, का कहना है कि कार्रवाई करने का समय अभी है। हमारी विरासत आज हमारे द्वारा लिए गए निर्णयों पर निर्भर करेगी।
फ्रेंड्स ऑफ वृंदावन संस्था के संयोजक जगन्नाथ पोद्दार ने कहा कि इस घटना को पर्यावरण की रक्षा और श्रीकृष्ण भूमि के सांस्कृतिक परिदृश्य को परिभाषित करने वाले मूल्यों को बनाए रखने की हमारी प्रतिबद्धता में एक महत्वपूर्ण मोड़ बनने दें। वृंदावन में पेड़ों की सामूहिक कटाई सिर्फ़ पर्यावरण से जुड़ा मुद्दा नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संकट भी है।
पेड़ हमेशा से वृंदावन की पहचान का अभिन्न हिस्सा रहे हैं, जो प्रकृति और आध्यात्मिकता के बीच दिव्य संबंध का प्रतीक हैं। इन पेड़ों का खत्म होना विरासत का नुकसान है। सदियों से पूजनीय रही इस भूमि की आत्मा पर आघात है। पेड़ प्रेमी जनार्दन शर्मा ने कहा, "मैं इस साइट पर सैकड़ों मोरों को उनके आवास से वंचित देखकर बेहद दुखी हूं। स्थानीय कार्यकर्ताओं का कहना है कि पेड़ों की कटाई के दौरान कई पक्षी भी मर गए। "उन्होंने अपना आशियाना खो दिया है।"
लखनऊ के पर्यावरणविद साथी राम किशोर चाहते हैं कि सरकार इस संकट का तुरंत और दृढ़ संकल्प के साथ जवाब दे। पेड़ों की सामूहिक कटाई के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान करने और उन्हें जवाबदेह ठहराने के लिए तत्काल कार्रवाई की जरूरत है। ग्रीन कार्यकर्ता पद्मिनी अय्यर कहती हैं कि बार-बार पर्यावरण के साथ होने वाली बर्बरता को रोकने के लिए जागरूकता बढ़ाने और जन समर्थन जुटाने के लिए सामुदायिक भागीदारी बहुत ज़रूरी है।
जैव विविधता विशेषज्ञ डॉ. मुकुल पंड्या कहते हैं कि वृंदावन के पवित्र वृक्षों का नरसंहार एक चेतावनी है, जो हमें पर्यावरण की रक्षा करने और उसे संजोने की हमारी ज़िम्मेदारी की याद दिलाता है।
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