हरियाणा के चुनाव मैदान में चौटाला के दो बेटे लड़ा रहे पंजा

हरियाण का विधान सभा चुनाव इस बार कई मायनों में रोचक होने जा रहा है। यहां के चुनावी समर में भाजपा और कांग्रेस तो आमने-सामने हैं ही, पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के दो बेटे भी एक-दूसरे से दो-दो हाथ करते नजर आने वाले हैं।

Aug 30, 2024 - 12:22
Aug 30, 2024 - 14:01
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हरियाणा के चुनाव मैदान में चौटाला के दो बेटे लड़ा रहे पंजा

एसपी सिंह-
चंडीगढ़। हरियाणा के विधान सभा चुनाव में कई बार मुख्यमंत्री पद संभाल चुके इनेलो के संस्थापक ओम प्रकाश चौटाला के दो बेटे चुनाव मैदान में एक-दूसरे से पंजा लड़ाते नजर आएंगे। चौटाला के दोनों बेटे डा. अजय चौटाला और अभय चौटाला भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों की लिस्ट का इंतजार कर रहे हैं। दोनों की ही नजर इस बात पर है कि भाजपा और कांग्रेस इस बार अपने कितने विधायकों की टिकट काटती है। अजय और अभय ऐसे ही विधायकों को अपने पाले में लाने की फिराक में हैं। 

- हरियाणा में बड़ा नाम हैं ओम प्रकाश चौटाला- 

हरियाणा की राजनीति में ओम प्रकाश चौटाला एक बड़ा नाम है। हरियाणा में ताऊ के नाम से मशहूर दिवंगत नेता चौधरी देवीलाल के बड़े बेटे हैं ओम प्रकाश चौटाला। चौधरी देवीलाल ने हरियाणा की राजनीति में फर्श से अर्श तक का सफर तय किया था। चौधरी देवीलाल की विरासत संभालने की बारी आई तो बड़े पुत्र ओम प्रकाश चौटाला को इसे संभालने का मौका मिला। ओम प्रकाश चौटाला ने चौधरी देवीलाल के बाद भी लम्बे समय तक हरियाणा पर राज किया। इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के संस्थापक भी ओम प्रकाश चौटाला ही हैं। 

-चौटाला के जेल जाने से कमजोर हुई इनेलो-

मुख्यमंत्री पद पर रहते हरियाणा में हुए शिक्षक भर्ती घोटाले में ओम प्रकाश चौटाला घिरे तो उनकी राजनीति का पतन शुरू हो गया। इस घोटाले में उन्हें दस साल की सजा हुई। वे जेल चले गए। छोटे पुत्र अभय चौटाला को भी सजा हुई थी। ओम प्रकाश चौटाला के जेल जाने के बाद इनेलो का ताना-बाना बिखरने लगा। ओम प्रकाश चौटाला अब जेल से बाहर आ चुके हैं, लेकिन अब उनका स्वास्थ्य खराब रहता है। वे इस हालत में भी नहीं हैं कि हरियाणा के विधान सभा सक्रिय रूप से भाग ले सकें। 

-इनेलो अब अभय चौटाला के हाथों में- 

ओम प्रकाश चौटाला को बड़ा बेटा होने के नाते चौधरी देवीलाल की विरासत संभालने का मौका मिला था, लेकिन जब ओम प्रकाश चौटाला की विरासत संभालने का सवाल आया तो उनके छोटे पुत्र अभय चौटाला विरासत के दावेदार नजर आए। इससे बड़े पुत्र डा. अजय चौटाला का मन खट्टा हुआ। जब ओम प्रकाश चौटाला और अभय चौटाला जेल में थे, तब डा. अजय चौटाला ने अलग राह पकड़ ली। उन्होंने अपनी नई पार्टी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) बना ली। उधर ओम प्रकाश चौटाला की इनेलो की कमान उनके छोटे बेटे अभय चौटाला के हाथों में आ गई। 

-चमत्कार किया था जेजेपी ने-

पिछले विधान सभा चुनाव में जेजेपी ने हरियाणा में ऐसा कमाल दिखा था कि डा. अजय चौटाला और उनके पुत्र दुष्यंत चौटाला का कद एकाएक राज्य की राजनीति में बहुत बढ़ गया। जेजेपी ने राज्य की 90 में से दस सीटें जीत ली थीं। उधर भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो उसने मजबूरी में जेजेपी को साथ लेकर अपनी सरकार बनाई। डा. अजय चौटाला के पुत्र दुष्यंत चौटाला एक झटके में उप मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए। 

दरअसल जेजेपी ने पिछले विधान सभा चुनाव में उन विधायकों को अपना प्रत्याशी बनाया था, जिनकी टिकटें भाजपा या कांग्रेस ने काट दी थीं। इसी फार्मूले से जेजेपी ने दस सीटें जीत लीं। कुछ तो विधायकों का जनाधार था और कुछ जेजेपी का वोट बैंक। नतीजा जेजेपी की दस सीटों के रूप में सामने आया। 

-कांटों भरी राह है जेजेपी की- 

जेजेपी कई माह पहले भाजपा से गठबंधन तोड़ चुकी है। पार्टी के पास एक बार फिर से पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है। जेजेपी पुराने फार्मूले के तहत ही भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी घोषित होने का इंतजार कर रही है। पार्टी को लगता है कि जिन विधायकों के टिकट कटेंगे, उन्हें अपना उम्मीदवार बनाकर एक बार फिर से सफलता पाई जा सकती है। आजाद समाज पार्टी के जरिए दलितों पर भी जेजेपी की नजर है। हालांकि इस बार राह कांटों भरी है क्योंकि चुनाव के मौके पर जेजेपी के कई विधायक पार्टी छोड़कर दूसरे दलों में शामिल हो चुके हैं। 

-आप अकेले खड़ी दिख रही- 

जेजेपी ने चुनाव में सांसद चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी से चुनाव के लिए गठबंधन किया है। इससे पहले जेजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच भी चुनावी तालमेल की बात चली थी। दोनों दलों के बीच गठबंधन लगभग तय भी हो गया था, लेकिन अचानक न जाने क्या हुआ कि जेजेपी और आप की राहें अलग हो गईं। अब आम आदमी पार्टी अकेले ही चुनाव मैदान में नजर आएगी। 

- इनेलो को बीजेपी-कांग्रेस की लिस्ट का इंतजार- 

इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) भी जेजेपी जैसा ही समीकरण बनाने की कोशिश में है। इनेलो ने अभी केवल उन्हीं सीटों पर प्रत्याशी घोषित किए हैं, जिनका चुनाव लड़ना तय है। अन्य सीटों के प्रत्याशी चयन से पहले इनेलो भी उन विधायकों को साथ जोड़ने की कोशिश में है, जिनके टिकट कटने हैं। इनेलो ने बसपा से पहले ही समझौता कर रखा है। पार्टी अपने समर्थक जाट मतदाताओं के अलावा बसपा के जरिए दलित वोट बैंक को साधना चाहती है। अगर कुछ मौजूदा विधायक पार्टी से जुड़ जाते हैं तो जीत का समीकरण बन सकता है, ऐसा पार्टी के नीति नियंता सोचे बैठे हैं। 

-कुछ और खिलाड़ी भी हैं मैदान में-

हरियाणा की राजनीति में पूर्व मंत्री गोपाल कांडा भी हैं। उनकी अपनी पार्टी है। सिरसा जिले में उनका असर है। जिले की तीन सीटों पर तो गोपाल कांडा, उनके पिता और भाई खुद चुनाव लड़ते रहे हैं। ये परिवार इस बार भी चुनाव मैदान में दिखेगा। हरियाणा की राजनीति में निर्दलीय भी हर चुनाव में अपना जनाधार साबित करते रहे हैं। हर चुनाव में 8 से 10 प्रतिशत निर्दलीय जीतते रहे हैं। 

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SP_Singh AURGURU Editor