मिल्कीपुर विधान सभा सीट का उप चुनाव नाक का सवाल बना सपा-भाजपा के लिए, जानिए क्यों?

यूपी के मिल्कीपुर विधान सभा सीट का उप चुनाव भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के लिए नाक का सवाल बन गया है। इस सीट पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के रणकौशल की परीक्षा होनी है।

Aug 28, 2024 - 13:39
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मिल्कीपुर विधान सभा सीट का उप चुनाव नाक का सवाल बना सपा-भाजपा के लिए, जानिए क्यों?

- राजेश स्वरूप-
अयोध्‍या। लोकसभा चुनाव में अयोध्या (फैजाबाद) सीट पर हार की टीस भाजपा को अभी तक साल रही है। भाजपा अपनी हार का हिसाब अयोध्या से सटी मिल्कीपुर विधान सभा सीट पर कब्जा कर चुकाना चाहती है। 

अयोध्या में राम मंदिर बनने के बाद भाजपा इसके सहारे न केवल यूपी बल्कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में लोकसभा चुनाव के बहुत अच्छे नतीजों की उम्मीद कर रही थी, लेकिन सबसे बड़ा झटका यूपी में ही लगा। पार्टी 80 में से 33 सीटों पर सिमट गई। फैजाबाद सीट पर हार भाजपा के लिए असहनीय रही। विपक्ष ने इसे अयोध्या की हार के रूप में प्रचारित किया। हालांकि लोकसभा चुनाव में अयोध्या विधान सभा सीट पर भाजपा जीती थी। 

अब इस जख्म पर मरहम लगाने का मौका भाजपा द्वारा मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में ढूंढ़ा जा रहा है। मिल्कीपुर से विधायक रहे अवधेश प्रसाद के फैजाबाद से सांसद बन जाने की वजह से यह सीट खाली हुई है। लिहाजा इस सीट पर चुनाव रोचक होना तय है। सवाल यह है कि क्या मिल्कीपुर पर सपा का दबदबा बना रहेगा या भाजपा इसे जीतकर हिसाब बराबर कर लेगी। 

मिल्कीपुर में जल्द होने जा रहे उपचुनाव में भाजपा की ओर से कमान स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संभाल रखी है। पार्टी ऐसे प्रत्याशी को तलाश रही है जो जातीय समीकरणों में फिट बैठ सके। भाजपा इस सीट को लेकर कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि स्वयं मुख्यमंत्री यहां का दौरा कर चुके हैं। देखना यह है कि भाजपा फैजाबाद की हार का बदला ले पाती है या नहीं। 

उधर समाजवादी पार्टी को भी अहसास है कि इस बार का मुकाबला बहुत कड़ा होना है। सपा की ओर से सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे को प्रत्याशी घोषित किया जा चुका है। सांसद पुत्र को टिकट दिए जाने पर मिल्कीपुर से विरोध के स्वर भी उठे थे, लेकिन सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सभी से बातचीत कर उनकी नाराजगी दूर करने की कोशिश की है। 

इतिहास की नजरों से देखें तो मिल्कीपुर में अब तक हुए दो उपचुनावों में सपा को ही जीत मिली है, लेकिन भाजपा इस बार बिल्कुल भी रियायत के मूड में नहीं है। सपा का दबदबा खत्म करके भाजपा यहां हर हाल में कमल खिलाना चाहती है।
अवधेश प्रसाद 2022 में मिल्कीपुर से विधायक चुने गए थे। 2024 में पीडीए गठबंधधन के तहत सपा ने उन्हें फैजाबाद लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया। अवधेश ने लगातार दो बार के बीजेपी सांसद लल्लू सिंह को शिकस्त दी। 

लोकसभा चुनाव में अवधेश प्रसाद को 5,54,289 और लल्लू सिंह को 4,99,722 वोट मिले। इस लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाली पांच विधानसभा सीटों में से चार पर अवधेश प्रसाद को बढ़त मिली, जबकि लल्लू सिंह केवल एक विधानसभा सीट अयोध्या पर बढ़त हासिल कर सके। 
बीजेपी मिल्कीपुर विधान सभा सीट हर कीमत पर जीतना चाहती है। भाजपा ऐसा उम्मीदवार उतारना चाहती है, जो सियासी समीकरण में फिट बैठे और हार का हिसाब बराबर करे। मिल्कीपुर विधानसभा सीट के जातीय समीकरण को देखें तो सबसे ज्यादा करीब 65 हजार यादव मतदाता हैं। इसके बाद करीब 60 हजार पासी, 50 हजार ब्राह्मण, 35 हजार मुस्लिम, 25 हजार ठाकुर, गैर-पासी दलित 50 हजार, मौर्य 8 हजार, चौरसिया 15 हजार, पाल 8 हजार, वैश्य 12 हजार के करीब हैं। इसके अलावा 30 हजार अन्य जातियों के वोट हैं।

मिल्कीपुर के सियासी समीकरण को देखें तो यादव, पासी और ब्राह्मण वोटर अहम भूमिका में हैं। सपा इस सीट पर यादव-मुस्लिम-पासी समीकरण के सहारे जीत दर्ज करती रही है तो बीजेपी सवर्ण और दलित वोटों को साधकर जीतने में सफल रही है। मिल्कीपुर सुरक्षित सीट होने के बाद से दो बार सपा जीती है और एक बार बीजेपी ने कब्जा जमाया था। सपा से अवधेश प्रसाद जीतते रहे हैं तो 2017 में बीजेपी से बाबा गोरखनाथ चुने गए थे। 
2022 के चुनाव में सपा के अवधेश प्रसाद को 103,905 वोट मिले थे और बीजेपी के गोरखनाथ को 90,567 वोट मिले थे। मिल्कीपुर विधानसभा सीट 1967 में वजूद में आई थी। इसके बाद हुए चुनावों में कांग्रेस, जनसंघ और सीपीआई, बीजेपी, बसपा और सपा यहां जीत हासिल करने में कामयाब रहीं। इस सीट पर सबसे ज्यादा सपा और लेफ्ट 4-4 बार जीतने में सफल रहे। कांग्रेस तीन बार, बीजेपी दो बार, जनसंघ और बसपा एक-एक जीते। 
मिल्कीपुर सीट साल 2008 के परिसीमन के बाद अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हुई। मिल्कीपुर से विधायक रहते हुए लोकसभा पहुंचने वाले मित्रसेन यादव पहले और अवधेश प्रसाद दूसरे नेता हैं। मिल्कीपुर में पहली बार वर्ष 1998 में विधानसभा उपचुनाव हुआ था, जब मित्रसेन यादव सपा से विधायक रहते हुए लोकसभा सदस्य बने थे। इसके बाद उपचुनाव में सपा के रामचंद्र यादव विधायक चुने गए। उन्होंने भाजपा प्रत्याशी डॉ. बृजभूषण मणि त्रिपाठी को 4132 वोटों से हराया था। 

यहां दूसरी बार उपचुनाव 2004 में हुआ। तब सपा के तत्कालीन विधायक आनंदसेन यादव विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर बसपा में शामिल हो गए थे। इसके बाद उपचुनाव हुए तो सपा के रामचंद्र यादव फिर विधायक बने। उन्होंने बसपा प्रत्याशी आनंदसेन यादव को करीब 35 हजार वोटों से मात दी थी।

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SP_Singh AURGURU Editor