aurguru news:हरियाणा के समर में मुश्किल में भाजपा, कांग्रेस पटकने को तत्पर

हरियाणा के विधान सभा चुनाव में इस बार रोचक मुकाबला होने जा रहा है। भाजपा सत्ता बचाने को प्रयासरत है तो कांग्रेस की कोशिश है कि भाजपा को सत्ता से बाहर कर राज्य की सत्ता हासिल कर ले। अन्य राजनीतिक पार्टियां भी चुनाव मैदान में दांव-पेंच चल रही हैं।

Aug 27, 2024 - 13:08
Aug 27, 2024 - 14:30
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aurguru news:हरियाणा के समर में मुश्किल में भाजपा, कांग्रेस पटकने को तत्पर

-एसपी सिंह-
चंडीगढ़। हरियाणा में वर्ष 2014 में भाजपा ने पहली बार अपनी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। 2019 के चुनाव बीजेपी में अकेले बहुमत पाने से चूक गई, लेकिन फिर भी उसने राज्य में जेजेपी के साथ गठबंधन कर सरकार बना ली। इस प्रकार भाजपा लगातार दस साल तक हरियाणा की सत्ता पर काबिज रह चुकी है। अब 2024 में हरियाणा में नई सरकार का गठन होना है। राज्य में विधान सभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। इस चुनाव में बीजेपी के समक्ष अपनी सरकार को बनाए रखने की चुनौती है तो कांग्रेस सत्ता की चाभी हासिल करने के लिए तत्पर नजर आ रही है। मुख्य मुकाबला इन्हीं दो पार्टियों के बीच होने के आसार नजर आ रहे हैं। हालांकि चुनाव के मैदान में आम आदमी पार्टी, इनेलो-बसपा गठबंधन और जेजेपी के पहलवान भी दांवपेंच आजमाते दिखेंगे। यह चार अक्टूबर को ही पता चल पाएगा कि ये दल कितना कमाल दिखा पाएंगे।
पंजाब से अलग होकर बने हरियाणा की सत्ता में राज्य का गठन होने के बाद से ही जाटों का बोलबाला रहा है। प्रदेश की कुल आबादी में जाट समाज की हिस्सेदारी 22 से 25% के बीच मानी जाती है। इसी आधार पर राज्य बनने के बाद से हरियाणा में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अधिकांशतः कोई न कोई जाट नेता विराजमान होता रहा है। 2014 में विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग का ऐसा फार्मूला तैयार किया कि उसे अपने बूते पर राज्य में पूर्ण बहुमत मिल गया। बीजेपी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपने वरिष्ठ नेता मनोहर लाल खट्टर को बैठाया। इसके बाद 2019 के चुनाव में भी बीजेपी ने सरकार तो बना ली लेकिन पूर्ण बहुमत न होने के कारण उसे सरकार गठन में जेजेपी (जननायक जनता पार्टी) का सहयोग लेना पड़ा। जेजेपी हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के बड़े बेटे डाक्टर अजय चोला चौटाला की पार्टी है। 2019 के चुनाव में जेजेपी ने विधानसभा की दस सीटें जीती थीं। बीजेपी ने अपनी सरकार बनाने के लिए डॉक्टर अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत चौटाला को डिप्टी सीएम पद दिया। भाजपा के दस वर्ष के शासनकाल में राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी गैर जाट के पास रही। 

-सत्ता विरोधी लहर से जूझ रही भाजपा-
बीजेपी लगातार तीसरी बार सरकार बनाने के इरादे के साथ मैदान में उतर रही है। लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही भाजपा ने मनोहर लाल खट्टर को हटाकर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया है। भाजपा की इसके पीछे की सोच पिछड़ा समाज को गोलबंद करने की है। यह चुनाव भी बीजेपी नायब सिंह सैनी के चेहरे के साथ लड़ रही है। इस चुनाव में बीजेपी के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उसे दस साल सरकार चलाने के बाद सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है। माना जा रहा है कि जाट सीएम न बनाने के कारण जाट तो पहले ही भाजपा से दूर हो चुके हैं, अन्य वर्गों में भी सरकार को लेकर असंतोष के स्वर सुनाई पड़ रहे हैं। सत्ता विरोधी लहर से निपटना भाजपा के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। बीजेपी की कोशिश यही है कि 2004 की तरह गैर जाटों की सोशल इंजीनियरिंग बनाकर चुनावी वैतरणी पर कर ली जाए। भाजपा यह भी जानती है यह बहुत आसान नहीं है क्योंकि हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में राज्य की दस में से पांच सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस को सफलता मिली है। लोकसभा चुनाव के नतीजों से भी यही संकेत मिला है कि विधान सभा चुनाव में कांग्रेस अपनी मुख्य प्रतिद्वंद्वी बीजेपी को बहुत कड़ी टक्कर देने जा रही है। 

-बेटे की ताजपोशी चाहते हैं भूपेंद्र हुड्डा-
हरियाणा में विधानसभा चुनाव की कमान कांग्रेस की ओर से यूं तो कई नेता संभाल रहे हैं, लेकिन इनमें सबसे बड़ा नाम हैं पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा। कांग्रेस जाट मतदाताओं के अलावा दलित और मुस्लिम मतदाताओं पर फोकस किए हुए है। इन तीनों वर्गों के वोट लगभग 50% होते हैं। कांग्रेस की रणनीति है कि 50% वोट वह खुद हासिल करे जबकि शेष 50% मतदाताओं तक भाजपा समेत अन्य सारी पार्टियां सिमट जाएं। जैसी कांग्रेस की रणनीति है, अगर वैसा ही हुआ तो हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनने में कोई अड़चन नहीं आनी चाहिए। चुनाव में कांग्रेस को भाजपा के प्रति सत्ता विरोधी लहर का फायदा तो मिलता दिख रहा है, लेकिन कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती राज्य के कांग्रेस नेताओं के बीच की गुटबंदी है। हरियाणा कांग्रेस में एक नहीं, कई गुट हैं। एक गुट का नेतृत्व भूपेंद्र सिंह हुड्डा कर रहे हैं तो दूसरे ताकतवर गुट की नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा हैं। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और राहुल गांधी के विश्वासपात्र रणदीप सुरजेवाला राज्य में कांग्रेस के तीसरे गुट की अगुआई करते हैं। हालांकि यह भी सत्य है कि मतदाता जब बदलाव का मन बना लेते हैं तो गुटबाजी इसमें आड़े नहीं आती। तीनों गुटों में भूपेंद्र सिंह हुड्डा सब पर भारी नजर आते हैं। हुड्डा की कोशिश है कि वे अपने ज्यादा से ज्यादा विधायकों को चुनाव जिताकर सीएम की कुर्सी पर अपने बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा की ताजपोशी करा दें। 

-इनेलो-बसपा गठबंधन भी है मैदान में-
कांग्रेस के लिए इंडियन नेशनल लोकदल और बसपा का गठबंधन चुनौती पैदा कर सकता है। इनेलो के संस्थापक ओम प्रकाश चौटाला हरियाणा की राजनीति में बड़ा नाम है। वे कई बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। जाटों के भी बड़े नेता रहे हैं। हालांकि अधिक आयु होने के कारण ओमप्रकाश चौटाला इस चुनाव में शायद ही प्रचार करते दिखें, लेकिन इस समय इनेलो की कमान संभाल रहे उनके छोटे पुत्र अभय चौटाला यह कोशिश जरूर करेंगे कि वे ओमप्रकाश चौटाला के पत्रों और रिकॉर्डेड वीडियो के जरिए मतदाताओं तक उनका संदेश पहुंचाएं। बता दें कि इनेलो राज्य की 53 और बसपा 37 विधानसभा सीटों पर मिलकर चुनाव रहे हैं। इनेलो की कोशिश है कि बसपा के जरिए दलित वोटों को पार्टी से जोड़ा जाए। अगर बसपा दलित वोटों का बंटवारा कराने में सफल होती है तो यह निश्चित रूप से कांग्रेस के लिए परेशानी वाली बात होगी। हरियाणा की राजनीति की जानकार वरिष्ठ पत्रकार सूरजमल का मानना है कि इनेलो और बसपा का गठबंधन कोई खास चमत्कार नहीं दिखाने वाला क्योंकि जाटों के बीच इनेलो और दलितों में बसपा की पकड़ पहले जैसी नहीं है। यह दोनों ही वर्ग कांग्रेस की ओर झुके दिखाई दे रहे हैं। 

-जेजेपी पिछला प्रदर्शन दोहरा पाएगी?-
पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के बड़े पुत्र डॉ. अजय चौटाला अपनी पार्टी जेजेपी के उम्मीदवार सभी 90 सीटों पर उतारने जा रहे हैं। डॉ. अजय चौटाला और उनके पुत्र पूर्व उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला इस चुनाव में क्या पिछली बार जैसी सफलता हासिल कर पाएंगे, यह 4 अक्टूबर को नतीजे आने के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा। इतना जरूर है कि अगर जेजेपी ने जाट वोटों का बंटवारा किया तो कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी होंगी। 

-आप की पांच गारंटियों की भी परख होगी-
आम आदमी पार्टी ने भी हरियाणा की सभी 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस समय जेल में हैं। उनकी गैर मौजूदगी में पार्टी के वरिष्ठ नेता संदीप पाठक एवं अन्य नेता हरियाणा में चुनाव की कमान संभाले हुए हैं। पार्टी की ओर से पांच गारंटियां देकर लोगों को लुभाने की कोशिश की जा रही है। फ्री बिजली, फ्री पानी, महिलाओं के खाते में हर महीने एक हजार रुपये जैसी ये वही गारंटियां हैं जिनके सहारे आम आदमी पार्टी ने दिल्ली और पंजाब में अपनी सरकारें बनाई हैं। चार अक्टूबर को जारी होने वाले चुनाव के नतीजे बताएंगे कि हरियाणा के लोगों ने अरविंद केजरीवाल की गारंटियों पर कितना भरोसा किया। 

-वोट मुख्यमंत्री के लिए पड़ने हैं-
यहां यह बात गौर करने की है कि हरियाणा विधानसभा के चुनाव में जो राजनीतिक दल मैदान में उतरने जा रहे हैं, उन सारी पार्टियों ने हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में भी भागीदारी की थी। लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस को छोड़कर अन्य सभी पार्टियों का सूपड़ा साफ हो गया था। लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पीएम मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनाने के नाम पर वोट मांगे थे। तब भी भाजपा राज्य की दस में से पांच सीटों पर ही सिमट गई जबकि 2019 के चुनाव में भाजपा ने राज्य की सभी दस लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी। 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी के चेहरे के बाद भी भाजपा का पांच सीटों पर हारना क्या यह संकेत नहीं देता कि राज्य में भाजपा के खिलाफ लहर है। विधान सभा चुनाव में तो मुख्यमंत्री के नाम पर वोट पड़ने हैं। तो क्या विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के लिए पड़ने वाले वोटों में भाजपा को पटकनी तो नहीं दे देगी? इस सवाल का जवाब विधानसभा चुनाव के नतीजों में छिपा हुआ है।

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SP_Singh AURGURU Editor