राम जन्म होते ही अयोध्या धाम में बदल गया सीता धाम
आगरा। मंगलमय परिवार द्वारा सीता धाम (कोठी मीना बाजार मैदान) पर श्रीराम कथा के दूसरे दिन श्रीराम जन्म की लीला हुई। शंखनाद और जयश्रीराम के उद्घोषों के बीच ढोलक-मंजीरों की भक्तिमय स्वरलहरियों पर गूंजती बधाईयों ने ऐसा माहौल पैदा कर दिया मानों अयोध्या धाम हो। गुब्बारों और पुष्पों से सजे कथा स्थल में श्रीराम के जन्म के उत्सव में भक्त खूब झूमते गाते नजर आए। कथा स्थल सीता धाम में हर तरफ सिर्फ भक्ति के रंग बिखरे नजर आ रहे थे।
-श्रीराम कथा के दूसरे दिन राम जन्म के समय शंखनाद, ढोलक-मंजीरों की स्वरलहरियों पर नाचते रहे श्रद्धालु, बधाईयां गाकर खूब लुटाए गए उपहार
उपहार के रूप में लुटाए गए खेल खिलौनों और टॉफियों को भक्तों ने माथे से लगाकर प्रसाद रूप में अपने-अपने पल्लू से बांध लिया। श्रीराम कथा में आज संतश्री विजय कौशल जी महाराज ने श्रीराम जन्म की कथा का वर्णन किया।
संत श्री विजय कौशल महाराज ने नौमी तिथि मधुमास पुनीता.... चौपाई के माध्यम से श्रीराम के प्राकट्य की कथा का भावमयी वर्णन करते हुए कहा कि श्रीराम का प्राकट्य होते ही देवता आकाश से पुष्प बरसाने लगे, अयोध्या में हर तरफ खुशियां छा गईं। शिवजी भी दर्शन करने पहुंचे। दोपहर 12 बजे सूर्यकुल में भगवान का प्राकट्य होने पर दर्शन की लालसा में सूर्यदेव अपने रथ के साथ एक माह तक अयोध्या में ठहरे रहे।
विजय कौशल महाराज ने कथा में आगे कहा कि इस बात पर रूखे चंद्रमा को नारायण ने द्वापर में रात बजे और चंद्र कुल में जन्म लेने की वचन दिया। श्रंगी ऋषि वशिष्ठ बुलावा, पुत्र काम शुभ यज्ञ करावा... चौपाई के माध्यम से कहा कि यज्ञ भी शुभ और अशुभ दो प्रकार के होते हैं। अपने कल्याण के साथ लोग दूसरे के शुभ के लिए भी यज्ञ करते हैं। राम-रावण के युद्ध के समय रावण ने शुभ यज्ञ कराया था। श्रंगी ऋषि के गमन के साथ ही अयोध्या में मंगल शकुन होने लगे।
कथा विराम के उपरान्त आरती कर सभी भक्तों ने प्रसाद ग्रहण किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से मंगलमय परिवार के अध्यक्ष घनश्याम दास अग्रवाल, महामंत्री राकेश अग्रवाल, महेश गोयल, महावीर मंगल, मुख्य यजमान सलिल गोयल, कमलनयन फतेहपुरिया, हरिमोहन मित्तल, विनोद गोयल, मुकेश गोयल, अशोक गर्ग, पीके भाई, रूपकिशोर ग्रवाल, दीप सिंघल, दिलीप अग्रवाल, विजय गोयल, शिवशंकर, जितेन्द्र गोयल, विजय बंसल, महेश गोयल, अजय अग्रवाल, रवि मेघदूत, हेमन्त भोजवानी, गौरव बंसल, रुपकिशोर ग्रवाल, संजय गोयल आदि उपस्थित थे।
भगवान को खोजा नहीं पुकारा जाता है...
आगरा। संत विजय कौशल महाराज ने श्रीहरि के भक्त अर्जुन, प्रह्लाद, ध्रुव, नरसी, द्रौपदी आदि की कथा के माध्यम से बताया कि भगवान के खोजा नहीं पुकारा जाता है। महाभारत के युद्ध का निर्णय तभी हो गया था जब अर्जुन ने नारायणी सेना को छोड़ नारायण को चुना था। अर्जुन युद्ध हारने को तैयार थे लेकिन नारायण को हारने को नहीं।
करहु सदा तिनके रखवारी, जिनि बालक रखिए महतारी... की व्याख्या करते हुए महाराज श्री ने कहा कि अपने भक्तों की रखवाली भगवान एक महतारी की तरह करते हैं। महतारी का अर्थ है जो अपने संतान की मल-मूत्र तक को साफ करे।
जैसी भूमि वैसी फसल होगी
आगरा। वेद की श्रुतियां आज तक जिनके आचरण को गाती चली आ रही है, ऐसे महाराज मनु व सतरूका की कथा के माध्यम से संत विजय कौशल महाराज ने कहा कि दाम्पत्य जीवन शुचिता, पवित्रता और मर्यादा से भरा होगा तभी संतान अच्छी और मन के अनकूल होगी। परन्तु आजकल दाम्पत्य जीवन श्रेष्ठ नहीं, इसलिए मनचाही के स्थान व अनचाही संतान आ रही है। जैसी भूमि वैसी ही फसल होगी।
संतश्री ने कहा कि सद्गुण और सद् विचार मुश्किल से और कम उम्र के लिए और दुर्गुण व दुर्विचार बहुत जल्दी और अधिक उम्र के लिए आते हैं। जब बेटा और बेटी के घरों में संतानें हो जाएं तो व्यक्ति को दखलंदाजी छोड़कर सलाहकार बन जाना चाहिए। तीर्थ में घर बनाने के स्थान पर घर को ही तीर्थ और स्वर्ग बनाने का प्रयास करें। भजन के साथ आचरण का पालन भी आवश्यक है।
रामायण की हर चौपाई है राम मंत्र, समाधि की क्रिया है कथा
आगरा। संत विजय कौशल महाराज ने कहा कि श्रीमद्रामायण को भाव के साथ सुनना और मन से गाना चाहिए। हर चौपाई राम मंत्र है। 20-25 चौपाईयों को छोड़कर हर चौपाई में र और म शब्द है। र के रूप में राम और म के रूप में मां है। कथा समाधि की क्रिया है।
एहि कलि काल न साधन दूजा, योग, यज्ञ, जप, तप व्रत दूजा, रामहि सुमरिए गाइये रामहि संतत सुनि राम गुण गावहि... चौपाई के माध्यम के उन्होंने बताया कि कलयुग में भगवान की लीलाओं के दर्शन करने का इससे सुन्दर मार्ग और कोई नहीं। उन्होंने कहा कि समाधि का अर्थ है आप शरीर रूप में पण्डाल में बैठे हैं, लेकिन मन वहां है जहां का प्रसंग चल रहा है। यही समाधि है।
विश्व मोहिनी से विवाह करने की इच्छा के कारण नारद जी द्वारा नारायण से उनका रूप मांगने की कथा का वर्णन करते हुए कहा कि काम की चार गति हैं। आंखों के माध्यम से काम प्रवेश करता है, फिर मन में और बुद्धि में जाता है और फिर इंद्रियों द्वारा प्रकट होने लगता है, लेकिन नारद जी में काम और क्रोध दोनों प्रबल हुए। क्रोध में भगवान को ही श्राप दे दिया। नारद जी बच गए क्योंकि वह कामोत्तेजना के समय और क्रोध दोनों समय भगवान के ही पास गए। भगवान का नियम है यदि भक्त अपना शुभ और अशुभ दोनों भगवान को अर्पित करेंगे तो हर परिस्थिति में वह भक्त की रक्षा करेंगे।
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