aurguru news: आगरा कालेज में खेल, 1.70 करोड़ के टायलेट में 17.43 करोड़ का झोल
आगरा। शहर का प्रमुख महाविद्यालय आगरा कालेज पिछले कुछ माह अशांत रहने के बाद फिलहाल तो शांत है लेकिन क्या यह तूफान से पहले की शांति है। यह बात इसलिए कही जा रही है कि भले ही हाईकोर्ट के दखल से अनुराग शुक्ला प्राचार्य पद पर फिर से काबिज हो गए हैं, लेकिन शासन शांत नहीं बैठा है।
शहर का प्रमुख महाविद्यालय आगरा कालेज प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री योेगेंद्र उपाध्याय और कालेज के प्राचार्य प्रो. अनुराग शुक्ला के बीच पिछले कुछ महीनों के दौरान चली रस्साकसी के बाद फिलहाल तो शांति है, लेकिन सवाल ये है कि क्या ये स्थायी शांति है। कहीं यह तूफान से पहले की शांति तो नहीं है। मंत्री पद से प्रो. शुक्ला को हटाकर मंत्री योगेंद्र उपाध्याय अपनी ताकत दिखा चुके हैं, लेकिन हाईकोर्ट के जरिए प्रो. शुक्ला फिर से प्राचार्य की कुर्सी पर काबिज होकर मंत्री को खुला चेलैंज दे चुके हैं। संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले दिन प्राचार्य प्रो. अनुराग शुक्ला के लिए मुश्किल भरे हो सकते हैं क्योंकि उनके खिलाफ वित्तीय घपलों के सबूत मिल चुके हैं। वित्तीय घपलों में एक बात यह भी सामने आ रही है कि प्रो. शुक्ला ने पिछले दो साल के दौरान निर्माण कार्य के नाम पर कालेज के बैंक खातों से 18.5 करोड़ रुपये निकाले। जब दिखाए गए निर्माण कार्य की जांच हुई तो पता चला कि महज 1.70 करोड़ रुपये से टायलेट बनाए गए थे।
प्राचार्य प्रो. अनुराग शुक्ला के खिलाफ शिकायतें इस साल के प्रारंभ में सामने आई थीं। 25-26 अप्रैल को उच्च शिक्षा निदेशक ने आकर आकर स्वयं जांच की। आगरा कालेज की मैनेजमेंट कमेटी ने भी अपने स्तर से जांच कराई। तीसरी जांच तब हुई जब प्रो. शुक्ला पद से हट चुके थे और उनकी कुर्सी पर प्रो. सीके गौतम बैठ चुके थे। प्रो. गौतम ने चार शिक्षकों की जांच कमेटी बनाई थी।
आगरा कालेज में चल रही रस्साकशी के इस मैच में एक ओर प्राचार्य प्रो. अनुराग शुक्ला हैं तो दूसरी ओर इसी कालेज से राजनीति का ककहरा सीखने वाले प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय। दोनों के बीच विवाद की शुरुआत कुछ माह पहले हुई। उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय इसी महाविद्यालय के पूर्व छात्र हैं। अपने छात्र जीवन में उपाध्याय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं। किसी भी छात्र के लिए अपने कालेज में सम्मान पाना गौरव की बात होती है। योगेंद्र उपाध्याय कालेज के बुलावे पर किसी कार्यक्रम में भाग लेने के लिए आगरा कालेज पहुंचे तो कालेज प्रशासन ने उनकी कार के लिए कालेज का मुख्य दरवाजा नहीं खोला। दरवाजे पर कुछ देर खड़े रहने पर भी जब दरवाजा नहीं खुला तो मंत्री ने खुद को अपमानित महसूस किया और वह वापस लौट गए।
बस यहीं से उच्च शिक्षा मंत्री और प्राचार्य के बीच ठन गई। बताते हैं कि प्राचार्य ने उच्च शिक्षा मंत्री के कहने पर कुछ छात्रों को प्रवेश भी नहीं दिया था। अपने गृह जनपद और अपने ही पूर्व कालेज में उनकी बात को अनसुना कर दिया जाए, शायद उच्च शिक्षा मंत्री को बहुत नागवार गुजरा। इस बीच उच्च शिक्षा मंत्री को कालेज के कुछ ही शिक्षकों ने ही महाविद्यालय में हुए आर्थिक घपले की शिकायत देकर बताया कि इसमे प्राचार्य की सीधे तौर पर संलिप्तता है।
बताया जाता है कि उच्च शिक्षा मंत्री ने जब इस शिकायत की जांच करायी तो प्राचार्य की नियुक्ति का आधार बने दस्तावेजों में भी गड़बड़ी पाई गई। उच्च शिक्षा मंत्री ने मामले की जानकारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी दी। जांच रिपोर्ट के आधार पर प्राचार्य प्रो. अनुराग शुक्ला को उनके पद से हटा दिया गया। उच्च शिक्षा मंत्री की रजामंदी से कालेज की पदेन अध्यक्ष आयुक्त रितु माहेश्वरी ने अंग्रजी विभागाध्यक्ष प्रो. सीके गौतम को प्राचार्य का चार्ज दे दिया।
प्रदेश सरकार के इस आदेश के खिलाफ प्रो. शुक्ला ने उच्च न्यायालय में अपील की तथा सरकार के आदेश को स्टे कर दिया। इस आदेश के अनुपालन में प्रो. सीके गौतम को चार्ज छोड़ना पड़ा तथा उच्च शिक्षा मंत्री की नाराजगी के बावजूद प्रो. अनुराग शुक्ला पुनः प्राचार्य की कुर्सी पर काबिज हो गए।
कालेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. सीके गौतम ने औरगुरू नेटवर्क को बताया कि अपने अल्प कार्यकाल के दौरान जब उन्होंने प्रो. शुक्ला की नियुक्ति का आधार बने दस्तावेजों की जांच कराई तो नौ दस्तावेज फर्जी पाए गए। उन पर आर्थिक घपले का आरोप भी सही पाया गया। इसकी रिपोर्ट वह शासन को सौंप चुके हैं।
मंत्री और प्राचार्य का यह विवाद आगरा से लेकर लखनऊ और प्रयागराज तक चर्चाओँ में है क्योंकि कालेज प्राचार्य प्रो. अनुराग शुक्ला ने उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय से खुद की जान को खतरा बताया है। प्रो. शुक्ला ने इस बारे में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर कहा है कि उच्च शिक्षा मंत्री उन्हें मरवा सकते हैं।
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